“तेजस्वी से डर गई सरकार, वोटर सूची पर वार: आरा में रामबाबू सिंह के नेतृत्व में सड़कों पर जनता”
“रामबाबू सिंह का एलान: बड़हरा से उठी लोकतंत्र बचाओ की आवाज़”
आरा, 9 जुलाई। बिहार में प्रस्तावित मतदाता पुनरीक्षण प्रक्रिया के खिलाफ महागठबंधन के बिहार बंद का असर मंगलवार को भोजपुर में भी जमकर देखने को मिला। संवाददाता, आराः भोजपुर जिले में चुनाव आयोग के खिलाफ आइएनडीआइए का बंद दोपहर तक असरदार रहा। एक तरफ जहां पटना-डीडीयू रेलखंड पर कार्यकर्ताओं ने कई स्थानों पर ट्रेनों को रोक कर रेल सेवा बाधित किया, वहीं दूसरी तरफ आरा पटना, आरा-अरवल, आरा सासाराम, आरा बक्सर, आरा मौहनियां नेशनल हाईवे को दर्जनों स्थानों पर कार्यकर्ताओं ने सुबह से जाम कर आवागमन ठप कर दिया और आयोग के खिलाफ नारेचाजी करते हुए प्रदर्शन किया। आरा शहर में सुबह से ही भाकपा माले, कांग्रेस और राजद के समर्थक सड़क पर उत्तरकर विभिन्न मार्गों को जाम करने के साथ पूरे शहर घूम घूमकर बंद कराया।
बाजार में सुबह से ही ज्यादातर दुकानें और स्कूल बंदी को लेकर सड़क पर भीड़भाड़ कम चार थी। पटना-डीडीयू रेल खंडपर बस आरा और बिहिया में कार्यकर्ताओं के द्वारा श्रमजीवी एक्सप्रेस, विभूति एक्सप्रेस और फरक्का एक्सप्रेस समेत कई ट्रेनों को रोक कर ट्रेन सेवा बाधित की गई। आरा स्टेशन परिसर से मछगठबंधन के सैकड़ों की संख्या में मार्च निकाला यह माचं नवादा, मठिया, शिवगंज, जेल बजे रोड, गोपाली चौक, टाउन थाना होते हुए अम्बेडकर चौक पहुंचा। जहां कई नेताओं ने सम्बोधित किया।




आरा से लेकर बड़हरा तक सड़कों और रेलवे ट्रैक पर जनसैलाब उमड़ पड़ा। आंदोलन में राजद,माले, कांग्रेस,

रालोजपा,VIP समेत तमाम पार्टियां के नेता सड़कों पर लोकतंत्र को बचाने निकले।
बंदी कार्यक्रम को संबोधित करने वालों में सांसद सुदामा प्रसाद, अगिआंव विधागक शिव प्रकाश रंजन, जिप अध्यक्ष आशा पासवान, पूर्व विधायक अरुण यादव और विजयेंद्र यादव, कांग्रेस नेता श्रीधर तिवारी, वीआईपी जिलाध्यक्ष ओम प्रकाश बिंद, रालोजपा जिलाध्यक्ष राजेश्वर सिंह, राजद के प्रधान महासचिव रामबाबू पासवान, पूर्व विधान पार्षद लालदास राय, श्रीधर तिवारी, अशोक शर्मा, राजद नेता सोनाली सिंह, युवा राजद जिला अध्यक्ष शैलेंद्र कुमार, जिला परिषद भीम यादव, आदिब रिजवी और बड़हरा के युवा राजद नेता रामबाबू सिंह समेत कई चर्चित चेहरे देखे गए। सड़को पर चुनाव आयोग होश में आओ जैसे कई नारे घंटों तेज गर्मी के तापमान को और भी बढ़ाते रहे। शहर के बाईपास, स्टेशन, शिवंगज, गोपाली चौक, टाउन थाना गोलंबर, शहीद भवन से होते हुए अम्बेडकर चौक के पास यह बड़ा काफिला समाप्त हुआ जहां नेताओं ने चुनाव आयोग को ललकारते हुए तुगलकी फरमान को वापस लेने के लिए कहा।
इस आंदोलन का केंद्रबिंदु बने बड़हरा के लोकप्रिय समाजवादी नेता रामबाबू सिंह, जिन्होंने तीखे शब्दों में चुनाव आयोग और केंद्र सरकार पर हमला बोला।
तेजस्वी की लोकप्रियता से घबराकर हो रहा है वोट काटने का षड्यंत्र
रामबाबू सिंह ने आरा में सैकड़ों समर्थकों के साथ सड़क पर उतरकर कहा कि “चुनाव आयोग को अपना तोता बना कर सरकार दलितों, पिछड़ों और किसानों के वोट काट रही है।

क्योंकि उन्हें पता है कि तेजस्वी यादव युवाओं की पहली पसंद बन चुके हैं। हर सर्वे बता रहा है कि बिहार अब तेजस्वी को ताज पहनाना चाहता है।”
उन्होंने कहा कि यह पूरी कार्रवाई एक साजिश है—सरकार जानती है कि आम मतदाता अब उनके झांसे में नहीं आने वाला। बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा और स्वास्थ्य में फेल हो चुकी यह सरकार अब लोकतंत्र पर वार कर रही है।
“जनता इस चाल को जान चुकी है”
रामबाबू सिंह ने कहा कि यह आंदोलन सिर्फ आज का नहीं है। “अगर जरूरत पड़ी तो हम इंडिया गठबंधन के साथियों के साथ सड़क से सदन और न्याय के मंदिर तक जाएंगे।

लोकतंत्र के सबसे बड़े देश में जब वोट जैसे अधिकार से किसी को वंचित किया जाए, तो इससे बड़ा अपराध कुछ नहीं हो सकता।”
भोजपुर और बड़हरा का उठ खड़ा होना, बदलाव का संकेत
रामबाबू सिंह ने चेतावनी भरे लहजे में कहा—“अगर सरकार और चुनाव आयोग ने अपना फैसला वापस नहीं लिया, तो याद रखें, भोजपुर आंदोलनकारियों की धरती है और बड़हरा समाजवादियों की। यहां की जनता अंतिम सांस तक यह लड़ाई लड़ेगी और इस जनविरोधी सरकार को उखाड़ फेंकेगी।”
किसानों और मजदूरों के साथ नाइंसाफी
उन्होंने आगे कहा कि बिहार इस समय बाढ़ से जूझ रहा है, किसान और मजदूर पहले से ही परेशान हैं। ऐसे में 25 दिनों के भीतर अलग-अलग कागज़ की मांग कर वोटर लिस्ट से नाम काटना “लोकतंत्र की निर्मम हत्या है।” उन्होंने तीखा सवाल उठाते हुए कहा—
“2024 के लोकसभा चुनाव में सरकार ने वोटर कार्ड और आधार के जरिए ही सरकार बनाई, और अब वही कागज किसी काम का नहीं रहा? यह दिमाग को झकझोर देने वाला सवाल है।”
बिहार बंद के इस विरोध में रामबाबू सिंह की भूमिका एक दृढ़ और जनप्रिय नेतृत्वकर्ता के रूप में सामने आई। उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि बिहार के वोटर अपने अधिकारों से वंचित नहीं होंगे। यह आंदोलन केवल एक बंद नहीं, बल्कि एक लोकतांत्रिक चेतना का पुनर्जागरण है, जिसकी चिंगारी अब पूरे राज्य में फैल रही है।
