आरा से उठी संस्कृत की गूंज – आक्रांत बाबा को भावभीनी श्रद्धांजलि

आक्रांत बाबा की 96वीं जयंती पर स्मृतिग्रंथ का विमोचन

मारुति संस्कृत शोध संस्थान में पंडित ब्राजभूषण मिश्र आक्रांत जी की 96वीं जयंती एवं स्मृतिग्रंथ विमोचन समारोह धूमधाम से सम्पन्न

कार्यक्रम के अध्यक्ष महेश सिंह ने कहा 100 वीं जयंती जरूर मने

आरा, 26 सितम्बर। संस्कृत साधक पंडित व्रजभूषण मिश्र आक्रांत बाबा की धरोहर अब ग्रंथ रूप में सामने आई है। आरा से उठी संस्कृत की गूंज ने आज उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी। होटल आरा ग्रांड में आयोजित इस समारोह में विद्वानों ने न केवल स्मृतिग्रंथ का विमोचन किया, बल्कि आक्रांत बाबा के राष्ट्र निर्माण और संस्कृत शिक्षा में योगदान को भी याद किया।



मारुति संस्कृत शोध संस्थान के तत्वाधान में पंडित व्रजभूषण मिश्र आक्रांत जी की 96वीं जयंती एवं स्मृतिग्रंथ विमोचन समारोह शुक्रवार को होटल आरा ग्रांड में आयोजित किया गया। समारोह में शिक्षा, साहित्य और संस्कृत के क्षेत्र से जुड़े विद्वानों ने भाग लिया।

समारोह की शुरुआत दीप प्रज्वलन एवं हनुमंत वंदना से हुई। हनुमंत वंदना अर्घ्यं ग्रंथ से रचित “नमामि वायुनंदनम्” पूर्णिमा पांडेय ने प्रस्तुत किया। स्वागत गायन का जिम्मा कालिंदी भारद्वाज एवं कल्पना भारद्वाज ने निभाया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. महेश सिंह, पूर्व विभागाध्यक्ष, भूगोल विभाग, जैन कॉलेज, आरा ने की। मुख्य अतिथि प्रो. नंद जी दूबे, पूर्व प्राध्यापक, हिन्दी विभाग, जैन कॉलेज, आरा, विशिष्ट अतिथि प्रो. गौरीशंकर तिवारी, पूर्व प्राध्यापक, संस्कृत विभाग, अतिथि सुरेन्द्र सिंह, पवना निवासी, संयोजक/आयोजक अरविंद मिश्रा एवं शशि रंजन मिश्रा थे।





कार्यक्रम में अतिथियों का माल्यार्पण एवं अंग वस्त्र सम्मान के साथ स्मृतिग्रंथ का विमोचन किया गया।

प्रथम उद्गार में रामेश्वर मिश्रा ने आक्रांत जी की पठन-पाठन पद्धति पर प्रकाश डाला और बताया कि उनके शिक्षण से प्रभावित होकर छात्र अपना विद्यालय बदलते थे। उन्होंने बेलाउर उच्च विद्यालय, बीरमपुर उच्च विद्यालय और हरप्रसाद दास जैन स्कूल में आक्रांत जी के योगदान की विस्तार से चर्चा की।

दूसरे उद्गार में सुरेन्द्र सिंह ने आक्रांत जी द्वारा संपादित पत्रिकाओं का परिचय दिया।

तीसरे उद्गार में राजेन्द्र पाठक ने कहा कि आक्रांत जी ने संस्कृत शिक्षा के नवाचार और चुनौतियों को समेटते हुए नई पीढ़ी को प्रेरित किया।

चौथे उद्गार में राजीव नयन अग्रवाल ने 1965 से आक्रांत जी से जुड़े पारिवारिक और शैक्षणिक अनुभव साझा किए और बताया कि उनके अथक प्रयास से केंद्र सरकार ने रक्षाबंधन के दिन संस्कृत दिवस की छुट्टी घोषित की।

इसी क्रम में पाँचवे उद्गार – दीपक वर्धन, एचओडी इतिहास विभाग, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा,,षष्ठ उद्गार – पुष्प राज सिंह, अधिवक्ता, उच्चतम न्यायालय, सप्तम उद्गार – गौरीशंकर तिवारी, पूर्व प्राध्यापक, संस्कृत विभाग और अष्टम उद्गार – पूर्णिमा पांडेय ने आक्रांत जी पर स्वरचित काव्य पाठ कर किया।




नंदनजी दूबे ने आक्रांत जी को बताया राष्ट्र निर्माता

अध्यक्ष ने मुख्य अतिथि नंद जी दूबे को आमंत्रित किया और उन्होंने राष्ट्र निर्माण में आक्रांत जी के योगदान को रेखांकित किया। मारुति संस्कृत शोध संस्थान के तत्वाधान में पंडित व्रजभूषण मिश्र आक्रांत जी की 96वीं जयंती एवं स्मृतिग्रंथ विमोचन समारोह में नंदनजी दूबे ने आक्रांत जी की विद्वता और राष्ट्र निर्माण में योगदान की सराहना की।

उन्होंने कहा, “आचार्य केवल पढ़ाते नहीं हैं, वे विद्वता पढ़ाते हैं और राष्ट्र को गढ़ते हैं। सरकारें आएंगी जाएंगी, लेकिन राष्ट्र का निर्माण केवल आचार्यों के माध्यम से ही संभव है।”

नंदनजी दूबे की यह बातें आक्रांत जी के शिक्षण और संस्कृत शिक्षा के क्षेत्र में उनके अपार योगदान को रेखांकित करती हैं। समारोह में विद्वानों और शिक्षकों ने भी आक्रांत जी के जीवन और कार्यों पर प्रकाश डाला।

समारोह में आक्रांत जी के अव्यवसायिक आलेखों के ग्रंथ रूप में प्रकाशन और स्मृतिग्रंथ विमोचन का भी आयोजन हुआ।

300 प्रतियां मुफ्त बांटी जाएंगी स्मृतिग्रन्थ की प्रतियां


इस अवसर पर आक्रांत जी के लिखे अव्यवसायिक आलेखों को ग्रंथ के रूप में प्रकाशित स्मृतिग्रंथ का विमोचन भी किया गया। उनके पौत्र शशि रंजन मिश्रा ने बताया कि बाबा की रचनाएं साहित्य जगत की अमूल्य धरोहर हैं और अपने पूर्वजों की थाती को अगर हम न बचा पाए तो आने वाली पीढ़ियों को क्या बताएंगे। इसी उद्देश्य से यह काम किया गया है। पहले प्रकाशन में 300 प्रतियों को प्रकाशित किया गया है, जिसे मुफ्त में देश भर में साहित्य प्रेमियों, पुस्तकालयों और संस्कृत विद्वानों के बीच भेजा जाएगा। हालांकि, सर्व भाषा ट्रस्ट प्रकाशन ने ग्रन्थ का मूल्य 1499 रुपए रखा है। ग्रन्थ को छपवाने में परिजनों का बड़ा योगदान रहा है और सबने मिलकर इसे सहयोग देकर पूरा किया है।

कार्यक्रम का समापन धन्यवाद ज्ञापन से हुआ, जिसे शशि रंजन मिश्रा ने प्रस्तुत किया। समारोह में यह स्पष्ट हुआ कि आक्रांत जी न केवल शिक्षाविद थे, बल्कि राष्ट्र निर्माण और संस्कृत शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान अद्वितीय रहा।

आरा से ओ पी पाण्डेय की रिपोर्ट

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