बाढ़ से लड़ाई का मॉडल: भोजपुर के एम्फीबियस हाउस का सीक्रेट निरीक्षण
गुपचुप पहुंचे मुख्य सचिव, मीडिया से बनाई दूरी!
जानिए बाढ़ से लड़ाई के मॉडल की अंदरूनी कहानी

Patna Now EXCLUSIVE
आरा,21 दिसम्बर(ओ.पी. पाण्डेय)। भोजपुर जिले के मौजमपुर गंगा घाट पर बना एम्फीबियस (Amphibious) हाउस इन दिनों जितना अनोखा है, उतना ही रहस्यमय भी। तीन साल पहले बने फ्लोटिंग हाउस के बाद अब यही निर्माणाधीन एम्फीबियस हाउस वह वजह बना, जिसके लिए बिहार के मुख्य सचिव प्रत्यय अमृत राजधानी पटना से बिल्कुल गुपचुप तरीके से भोजपुर पहुंचे।



इस दौरे को लेकर न कोई आधिकारिक सूचना जारी हुई, न कोई प्रेस नोट और न ही मीडिया को आमंत्रित किया गया। खास बात यह रही कि सिर्फ मुख्य सचिव ही नहीं, बल्कि जिले के किसी भी प्रशासनिक अधिकारी ने मीडिया से कोई बातचीत नहीं की। कैमरे बंद रहे, सवाल अनसुने किए गए।
क्यों गुप्त रखा गया यह दौरा?
सूत्रों के अनुसार, एम्फीबियस हाउस अभी निर्माणाधीन है और इसका औपचारिक उद्घाटन अगले वर्ष प्रस्तावित है। प्रशासन नहीं चाहता कि अधूरे प्रोजेक्ट की सार्वजनिक चर्चा हो या किसी तरह का दबाव बने। इसी कारण इस पूरे निरीक्षण को पूरी तरह गोपनीय रखा गया।


सूत्र यह भी बताते हैं कि मुख्य सचिव का स्पष्ट निर्देश था कि वे इस परियोजना को बिना किसी सरकारी तामझाम के देखना चाहते हैं। इसी क्रम में जिलाधिकारी द्वारा बिछवाया गया रेड कारपेट भी मुख्य सचिव के पहुंचने से पहले हटवा दिया गया।



लेकिन मजेदार बात यह रही कि शाम को इस बात की एक प्रेस रिलीज जरूर जारी की गई जिसमें उनके फ्लोटिंग हाउस घूमने के साथ सारे विभागों के कार्यों की समीक्षा के साथ तमाम जिले के अफसरों की लंबी लिस्ट थी। जब ये सूचना देनी ही थी तो फिर मीडिया से बातचीत से परहेज क्यों? इसका मतलब तो यही है कि मीडिया को सिर्फ सूचनाओं के जरिए इस्तेमाल किया जा रहा है उसकी भागीदारी कही नहीं है। बस प्रशासन और विभागों ने मीडिया को अपने प्रवक्ता की भूमिका का जैसे काम सौंप दिया है। जो दें उसे आप प्रकाशित कर दें।
सिर्फ घर देखने नहीं आए थे मुख्य सचिव
जानकारी के मुताबिक, मुख्य सचिव केवल एम्फीबियस हाउस देखने ही नहीं आए थे, बल्कि मौजमपुर घाट के पास ही उन्होंने अधिकारियों के माध्यम से जिले में संचालित विभागीय परियोजनाओं और विकास कार्यों की भी जानकारी ली। यह पूरा संवाद भी सीमित और अनौपचारिक रहा।






क्या है एम्फीबियस हाउस की खासियत?
फ्लोटिंग हाउस हमेशा पानी पर रहते हैं, जबकि एम्फीबियस हाउस सामान्य दिनों में जमीन पर रहते हैं और बाढ़ आने पर पानी के साथ ऊपर उठ जाते हैं। यही तकनीक इसे बाढ़ग्रस्त इलाकों के लिए लचीला और स्थायी समाधान बनाती है।
कोविड काल से शुरू हुआ सपना
इस नवाचार के पीछे हैं इंजीनियर प्रशांत उपाध्याय। उन्होंने यह विचार कोविड काल में विकसित किया, जब हर साल बाढ़ में हजारों घर डूबते देखे। प्रशांत इस आइडिया को लेकर कई विभागों और अधिकारियों तक पहुंचे, लेकिन आर्थिक सहयोग नहीं मिल सका।

आखिरकार उन्होंने अपने संसाधनों से करीब तीन साल पहले बक्सर में फ्लोटिंग हाउस का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया। हर मौसम में इसकी मजबूती परखी गई। इसी अनुभव के आधार पर अगला कदम बना- एम्फीबियस हाउस। इस घर में रोशनी से लेकर शौचालय तक की व्यवस्था इको-फ्रेंडली तकनीक से की गई है। इस घर की परिकल्पना करने वाले इंजीनियर पशांत ने बताया कि मुख्य सचिव इस मॉडल को देखने के बाद काफी खुश और उत्साहित दिखे। उन्होंने ऐसे और मॉडल विकसित करने की बात कही। इन मॉडलों को बनाने के लिए गांवों में प्रशिक्षण की बात भी उन्होंने की। प्रशांत ने बताया कि हमने सरकार से भोजपुर में एक प्रकृति परक गाँव बसाने के लिए उनसे माँग की है जो भोजपुर में न सिर्फ पर्यटन को बढ़ावा देगा बल्कि हर परिस्थिति में अपने आप स्थिर रखने वाला स्वावलंबी गांव होगा और लोगों को रोजगार के अवसर भी मिलेंगे।
6लाख से 2 लाख तक का सफर
पहला मॉडल करीब 6 लाख रुपये की लागत से तैयार हुआ, जिसे महंगा माना गया। प्रशासनिक सुझाव के बाद प्रशांत ने करीब 2 लाख रुपये में एक किफायती मॉडल तैयार किया। इसके साथ ही एक कम्युनिटी सेंटर मॉडल भी विकसित किया गया, जो बाढ़ के दौरान भी प्रशिक्षण और सामुदायिक गतिविधियों के लिए उपयोगी है।

सरकार की नजर क्यों टिकी है इस मॉडल पर?
सूत्रों की मानें तो यह परियोजना केवल भोजपुर तक सीमित नहीं रह सकती। यदि एम्फीबियस हाउस का यह मॉडल सफल होता है, तो इसे बिहार के अन्य बाढ़ग्रस्त इलाकों में बड़े पैमाने पर लागू किया जा सकता है। यही कारण है कि शीर्ष स्तर पर इसका सीधा और गोपनीय निरीक्षण किया गया।

खामोशी में छिपा बड़ा संकेत
प्रशासन की चुप्पी, मीडिया से दूरी और सादगी भरा निरीक्षण इस बात का संकेत देता है कि एम्फीबियस हाउस को लेकर सरकार गंभीर विचार कर रही है। संभव है कि उद्घाटन के साथ ही यह मॉडल राज्य-स्तरीय योजना का रूप ले।

मौजमपुर गंगा घाट पर खड़ा यह निर्माणाधीन एम्फीबियस हाउस सिर्फ एक ढांचा नहीं, बल्कि बाढ़ से जूझते बिहार के लिए भविष्य की संभावित राह है, जिसे फिलहाल खामोशी में परखा जा रहा है।
