UWC से आये लोगों को भाया बिहार, कहा सत्कार करने वाला राज्य है बिहार

सात दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सस्टेनेबिलिटी कार्यशाला आरा में संपन्न




Patna Now Exclusive

आरा, 26 मार्च (ओ पी पाण्डेय). कभी विश्व के ज्ञान का केंद्र रहने वाला बिहार आज अपने नाम को लेकर कई भ्रांतियों से घिरा हुआ है. बिहार का नाम आते ही एक पूर्वाग्रह सोच की मकड़जाल लोगों को जकड़े हुए है. अपने कई क्षेत्रों में विकास के बाद भी बिहार का नाम सुनकर कोई भी आज से 30 वर्ष पहले का ही बिहार समझता है चाहे वह किसी राजनायक का नाम हो, या किसी भी क्षेत्र के किसी भी मशहूर शख्सियत का नाम. इस बात की चर्चा पिछले दिनों राजधानी पटना में हुए GTRI-3 में भी बड़े व्यापक पैमाने पर हुई थी. चर्चा यही थी कि दुनिया भर में आज बिहारी अपने मेहनत के बदौलत दुनिया के कई कंपनियों से लेकर, ब्युरोकेट्स और कई ब्रांड के नाम में शुमार हैं फिर भी बिहार के नाम आते ही सामने वाला का परसेप्शन चेंज नही होता और इसकी वजह है कि कोई यहाँ आकर उन बदलाव को नही महसूस करता है.

लेकिन बिहार के इस बदलाव को महसूस किया है देश नही बल्कि दुनिया भर से आये 21 लोगों ने, जिन्होंने एक हफ्ते तक यहाँ रहकर न सिर्फ यहाँ की पुरानी पद्धति को सीखा बल्कि बिहार के लोकल आबादी के बीच उनसे मिलने के बाद उनके रहन-सहन ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि वे बिहार के मुरीद बन सुनहरी यादों के साथ अपने देश वापस लौटे हैं.

जी हां ये किसी कहानी का कोई इंट्रो नही बल्कि हक्कीकत है, पिछले दिनों आरा में हुए अपने आप को सीमित संसाधन में जीने की तरकीब सिखाने वाले एक कार्यशाला में आये बच्चों की.

आरा के गोढ़ना रोड स्थित सेंटर ऑफ रेसिलियंस के कार्यालय में पिछले दिनों सात दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सस्टेनेबिलिटी कार्यशाला कुमार प्रशांत के देखरेख में संपन्न हुआ. 18-24 मार्च तक चले इस कार्यशाला में अलग-अलग देशों से आए 21 प्रतिभागियों ने भाग लिया. यह सभी प्रतिभागी UWC (United world Collage) के छात्र थे. इस कार्यशाला में 21 लोगों में 19 छात्र और 2 शिक्षक थे.

बताते चलें कि UWC में पूरे विश्व से अलग-अलग देशों के बच्चों के लिए सीट निर्धारित हैं जहाँ सिंपल स्नातक तक की शिक्षा दी जाती है. इस कॉलेज का मुख्य उद्देश्य पूरे विश्व में आपसी प्रेम और मित्रता के जरिये जीवन के मूल में अपना विकास करना है. इस कॉलेज से पास करने के बाद छात्र प्रकृति को उसके मूल रूप में रखते हुए जीवन की कल्पना कर अपने कार्यों को अंजाम देते हैं.

कार्यशाला के दौरान दुनिया भर से आए लोगों ने सेंटर ऑफ रेसिलियंस के फ्लोटिंग हाउस प्रोजेक्ट पर काम किया. विद्यार्थियों ने पुराने पद्धतियों को प्रयोग करते हुए बांस का घर बनाना सीखा. उसके साथ ही गोबर, मिट्टी और चुने से वैदिक ब्रिक (ईंट) का प्रोटोटाइप बनाना भी सीखा.

क्या है फ्लोटिंग हाउस ?
कुमार प्रशांत पिछले 2 सालों से एक ऐसे घर के निर्माण पर काम कर रहे हैं जो पानी पर तैरता रहेगा. ऐसे घर उन बाढ़ वाले इलाके के लिए वरदान होगा जो हर साल प्रकृति के इस प्रकोप का शिकार हो जाते हैं. घर प्राकृतिक चीजों से बना होगा जो बानी बढ़ने के साथ ही पीपा पुल की तरह ऊपर पानी की सतह पर आ जायेगा.

कार्यशाला का आयोजन करने वाले कुमार प्रशांत का गोढ़ना रोड स्थित अपना निवास है और वे अपनी संस्था सेंटर फॉर रेसिलियंस को यही से चलाते हैं. इंजीनियरिंग की शिक्षा लेने वाले प्रशांत ने 4 सालों में 22 देशों की यात्रा अपनी मोटरसाइकिल से अपने साथी बेन रेड हॉवेल के साथ की थी. भारत से स्कॉटलैंड की इस यात्रा में प्रशांत और बेन ने कई देशों में इसी तरह के कई कार्यशाला आयोजित किये थे. प्रशांत वेस्ट मैनेजमेंट करने वाले एक ऐसे शख्स हैं जिन्हें न सिर्फ आरा में बल्कि देश के कई कोने में लोग जानते हैं. प्रशांत ने अपना पूरा घर वेस्ट मेटेरियल से तैयार किया है. वे माहिर हैं उपयोग किये हुए किसी भी वस्तु को पुनः अपनी कल्पनाशीलता में ढाल उसे उपयोग करने में. दूसरे शब्दों में आप इन्हें एक ऐसा कलाकार कह सकते हैं जो ऐसे वस्तुओं को एक नया रूप दे अद्भुत बना देते हैं. प्रशांत के घर मे उपयोग होने वाला हर चीज रिसाइकिल होता है. यहाँ तक कि हर दिन उपयोग होने वाला पानी भी घर के बाहर नही जाता है.

प्रशांत के मुताबिक इस तरह के कार्यशाला से बिहार को लेकर देश के लोगों का नजरिया बदलेगा. इस तरह के कार्यशाला से यह साबित होगा कि बिहार एक शांतिप्रिय, प्रगतिशील और स्वागत करने वाला राज्य है. वह अपने अतिथियों की न सिर्फ गर्मजोशी से स्वागत करता है बल्कि अपनी परंपराओं, मूल्यों और मेहनत के बदौलत अपनी आदर्शता को आज भी कायम किए हुए हैं.

UWC के शिक्षक सानिध्य के मुताबिक UWC के बिहार आने का मुख्य उद्देश्य बिहार के बारे में बने हुए पूर्वाग्रह को तोड़ना था. उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला के बाद वे इसमें काफी हद तक सफल हुए हैं.

कार्यशाला में शामिल निक घना से, ख़लील नाइजीरिया से, विक्टोरिया जर्मनी से , एबिलगे इंडोनेशिया से, मारिया पेरू से, एंड्रिया साउथ अमेरिका से, साना अमेरिका से
और लिसा नीदरलैंड जैसे देश की रहने वाली है. पटना नाउ से बात करते हुए नीदरलैंड के रहने वाली लिसा ने कहा कि बिहार बहुत ही सुंदर और विविधता वाला प्रदेश है. यहां पर लोग काफी मिलनसार और वेलकमिंग है.

छात्रों के चेहरे की मुस्कान और उनके ऊर्जा को देखकर खुशी हो रही थी कि बिहार की ऊर्जा ने इन विदेशी मेहमानों को इतना खुश रखा है जो यहाँ की सुनहरी यादों को ले जाने के बाद पूर्वाग्रह वाले इस भ्रांति को जरूर तोड़ेंगे क्योंकि ये 21 लोग किसी एक देश के नही, अलग-अलग देशों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. इंतजार तो बिहार को भी है उसी पुराने गौरव के क्षण के लौटने का जिसमें दुनिया के लोग सीखने की लालसा लिए यहाँ आते थे.

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