मरे पशुओं की बाढ़ आयी, यही है गंगा की सफाई

गंगा में प्रदूषण से मर रही है मछलियाँ

मैली होती गंगा में नहाने से हिचकिचाते ग्रामीण, खुजली का सताता है डर




मृत पशु से लेकर सफाई पर नहीं हो रहा पुख्ता इंतजाम

Patna now special Report

आरा,22 जनवरी. बिहार में गंगा की सफाई के लिए कई योजनाएं सामने आई है. गंगा सफाई के लिए पिछले चार दशकों से तरह तरह की योजनाएं बनाई गई है, लेकिन जमीनी स्तर पर प्रभावी नहीं होने की वजह से योजनाएं फेल होती गई. वही बिहार के भोजपुर जिले में भी गंगा की सफाई के लिए 2019 में नमामि गंगा परियोजना के तहत जिला गंगा समिति की शुरुआत हुई थी. इससे पहले जिले में गंगा की सफाई के लिए कोई ठोस कदम उठाने का प्रमाण अभी तक नहीं मिल पाया है. हालांकि स्थानीय स्तर पर सामाजिक कार्यकर्ताओं का पर्व-त्यौहारों के अवसर पर अपने जरूरत के हिसाब से सफाई हमेशा देखने को मिली है.

इस योजना के तहत भोजपुर जिले में पिछले छह वर्षों से गंगा जिला समिति कार्य कर रही है. जिला गंगा समिति के अंतर्गत शाहपुर, आरा और बड़हरा में कार्य किये जा रहे है. इस योजना के गंगा की सफाई, घाट का विकास, सीवरेज उपचार, जैविक कृषि को बढ़ावा, जन जागरूकता, पौधरोपण, अपशिष्ट निगरानी जैसे काम किया जा रहे हैं. इसके साथ ही गंगा नदी के आलावा गंगा की सहायक नदियों में अपशिष्ट पदार्थों पर भी निगरानी करने का काम इस योजना के तहत किया जा रहा है,लेकिन यह काम भोजपुर जिले में कितना हुआ है जान कर आप भी दंग रह जायेंगे.

दरअसल आरा शहर से होकर गंगा की सहायक नदी गांगी निकलती है, जिसकी स्थिति बद से बदतर होते जा रही है. गंगी की मौजूदा स्थिति सबसे ख़राब है. इसकी स्थिति नाले से भी ख़राब हो गई है. अगर शहर के हर घर से निकलने वाली नली का पानी, शहर के हर बड़े नाले का पानी गांगी नदी में जा कर गिरता है. इतना ही नहीं जब भी आप नदी के पास जाइएगा तो आपको मरे हुए जीव जंतु से लेकर पशु तक दिख ही जाएंगे.

गंगा की यह सहायक गांगी नदी करीब 17 किलोमीटर का रास्ता तय करके केशवपुर गंगा नदी में जाकर मिलती है. गंगा से मिलने के दौरान गांगी नदी अपने साथ इस गन्दगी और मरे हुए जीव जंतुओं को भी अपने साथ गंगा में बहा ले जाती है. यह माजरा केवल गांगी नदी के पास का नहीं है. गांगी पहुंचने से पहले बड़का गांव, मझौंवा, मारुती नगर के रास्ते में भी गांगी की यही स्थिति है. उक्त सभी स्थानों पर मरे हुए पशुओं को फेंक दिया जाता है, जिसके बाद वहीं मरे हुए पशु बहते हुए आगे बढ़ते हैं या कई बार कम पानी के वजह से बीच रास्ते में ही दलदल या किनारों में फँसकर महीनों तक महकते रहते हैं जो एक सक्रमण का खतरा उत्पन्न करते हैं. ऐसे फंसे हुए जानवरों के शवों को कई पक्षी या जानवर खाते है.

गांगी से आगे चलते हुए यह नदी केशवपुर बड़हरा पुल पर पहुंचती है. वहां भी गांगी जैसी ही स्थिति है. नदी में कई पशु के मृत शरीर पड़े मिलते है, जिसका पानी गंगा में जा गिरता है. साथ ही गंगा नदी में केशवपुर के समीप कई बार गंगा नदी में भी कई मृत पशुओं के शव मिले है, जिसे कौवा या कुत्ता या अन्य जंतु खाते है. इससे गंगा का पानी दूषित हो रहा है. इस दूषित जल पर जमीनी स्तर पर कोई विचार नही किया जाता है बस कागजी स्तर से सफाई की जा रही है.

वहीं आपको बता दें कि भोजपुर जिले के गंगा किनारे लगभग 34 गांव है. जहां जिला गंगा समिति के द्वारा काम हो रहा है, लेकिन यह काम कितना हुआ है यह भी एक पहेली है. इस योजना के तहत गंगा किनारे बसे हर घाट को पक्का बनाना है, लेकिन पिछले छह वर्षों से अब तक जिले का कोई भी घाट पक्का नहीं हुआ है. लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान के तहत गंगा के सतह की सफाई होती है. यह सफाई प्रतिदिन होनी है, लेकिन सफाई प्रतिदिन हो रही है, इसका भी प्रमाण अभी तक सामने नहीं आया है.

वहीं सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट पर कोई पहल नहीं की गई है. गंगा रिवरफ्रंट डेवलपमेंट पर भी अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए है. जैविक खेती को लेकर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठे है. गंगा प्रदुषण में कृषि की भी अहम भूमिका है. किसान खेतों में कई प्रकार के कीटनाशक दवाइयों का इस्तेमाल करते है. गंगा किनारे हो रही खेतों से यह दवाइयों का मिश्रण बाढ़ व बरसात की वजह से गंगा में चला जाता है जिससे गंगा में मछलियों के मरने की संख्या बढ़ी है. ऐसे में कृषि भी गंगा के प्रदुषण की एक बड़ी वजह बनी है. इन प्रदूषणों की वजह से अब जैविक खेती करने की व्यवस्था की जा रही है.

क्या कहते हैं नगर आयुक्त ?

गांगी नदी में मृत पशुओं को फेंकने के मामले में नगर आयुक्त एन. के. भगत ने बताया कि हम लोग यहां के लोगों को कई बार रोकने का प्रयास किए है, लेकिन रात के अंधेरे में लोग पशुओं को मर जाने के बाद फेंक देते है. जबकि अन्य शहरों में पशु मरने के बाद जमीन में दफना देते है. ऐसे में लोगों से कहेंगे गांगी में फेंके नहीं गांगी के किनारे जमीन में दफना दें. वहीं शहर की गंदी नलियों से निकलने वाली गंदगी जो गंगा में गिरती है उसपर नगर आयुक्त ने बताया कि इसके लिए 79 करोड़ का स्ट्रांग ड्रेनेज सिस्टम हमारे यहां स्वीकृत हो चुका है.

उन्होंने बताया कि साथ ही सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगेगा. यह योजना स्वीकृत हो चुका है. जल्द ही काम शूरु हो जाएगा. इस विषय पर थोड़ा सा काम हुआ भी है तो हमारे यहां का जो गंदा पानी जा रहा है उस प्लांट से शुद्ध करके ही पानी फेंका जाएगा. वहीं उन्होंने बताया कि 2024 में यह काम भोजपुर जिले में शुरू की गई थी. इसकी कार्यकारी एजेंसी को पैसा भी ट्रांसफर कर दिया गया है लेकिन 2026 तक यह प्लांट तैयार होने की वे बात बताते हैं. अब सवाल यह है कि क्या निगम क्षेत्र में नगर निगम रात्रि में मवेशियों को ऐसे धड़ल्ले से फेंकने वालों को पकड़ने में विफल है? क्या शहर की सफाई रात्रि में नही होती जो नगर निगम को ऐसे लोग नही दिखते? क्या अरबों रुपये खर्च करने वाले निगम के पास मवेशियों को फेंकने वालों की पहचान करने तक की क्षमता नही है? ये सारे सवाल निगम की कार्यशैली और बजट के पैसों के बारे-न्यारे की प्रत्यक्ष पोल खोलते हैं. हर महीने लगभग पौने तीन करोड़ रुपये खर्च करने वाला निगम जब शहर की गंदगी खत्म नही कर पा रहा है तो गंगा की सफाई पर पलड़ा तो झाड़ेगा ही. वैसे भी निगम के आयुक्त की शुद्धता उनपर लगे कई आरोप बखूबी बता देते हैं.

कृषि पदाधिकारी ने कहा जैविक खेती के लिए 1500 हेक्टेयर में हो रहा काम

वहीं जब कृषि पदाधिकारी शत्रुध्न साहू से जैविक खेती को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने बताया कि हमारे शाहपुर, आरा और बड़हरा में नमामि गंगा का काम किया जा रहा है, जहां तीनों प्रखंड मिलाकर 15 सौ हेक्टेयर में जैविक खेती करने के लिए प्रयास किया जा रहा है. हमलोग यहां 1967 के साथ जुड़े हुए है. इसमें दो सर्विस प्रोवाइडर सरकार की तरफ से दिया गया है. तो एक हजार हेक्टेयर के लिए आरा और बड़हरा के लिए सिलबायोटेक के द्वारा काम किया जाता है. साथ ही पांच सौ हेक्टेयर शाहपुर वाले क्षेत्र में सतेंद्र ऑर्गेनिक के द्वारा काम किया जा रहा है.

उन्होंने बताया कि नमामि गंगे के तहत तीनों प्रखंड के 16 पंचायत में काम हो रहा है, जिसमें 29 गांव आते है. इसके लिए वर्मी उत्पादन करवाना है. 800 से ज्यादा हमलोगों ने बनाया है. यह तीन साल के लिए बनाया जाता है. एक ही बार हमलोग किसान को पांच हजार रुपया का अनुदान देते है. इस तरह से 75 कलस्टर बना हुआ है. जैविक खेती के लिए हमलोग जैविक खाद और जैविक दवा देते है जो 6500 का होता है. जो अनुदान में देते है. दूसरे साल में भी 10500 रुपया अनुदान दिया जाता है. उन्होंने बताया कि जितने भी कीटनाशक दवाइयां है वे वायु, मिट्टी गंगा सभी के लिए नुकसानदेह है. वहीं छुटे हुए गांव को दूसरे फेज में आने के बाद काम शुरू कर दिया जाएगा.

NMCG मॉड्यूल तैयार करती है : अमित सिंह

वहीं नमामि गंगे योजना को लेकर परियोजना पदाधिकारी अमित सिंह ने बताया कि यह योजना जिलाधिकारी के अंतर्गत काम होती है. एनएमसीजी मॉड्यूल तैयार करती है. एनएमसीजी के तहत लोगों को जन जागरूक करना, गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए कार्य करना, गंगा किनारे गांव में गंगा आरती करना, खेल के तहत गंगा सफाई को लेकर जागरूकता दिखाना, बच्चों को रैली करना, ग्रामीणों को गंगा के बारे में बताना कि गंगा हमारे लिए क्यों जरूरी है, ये सारे कार्य किये जाते हैं. वहीं गंगा को लेकर हम ज्यादातर स्कूलों और कोचिंग संस्थानों में जाते है और गंगा को लेकर प्रतियोगिता कराते है. सालों भर यह गतिविधियां चलती है. इसके साथ ही योग और गंगा उत्सव जैसे कार्यक्रम किए जाते है.

अमित सिंह ने बताया कि गंगा सफाई में कई चुनौतियां सामने आती है. सबसे पहले तो आरा मुख्यालय से गंगा की दूरी जो लगभग 17 किलोमीटर है और कहीं कहीं उससे भी ज्यादा है. जैविक खेती की बात आती है तो जब तक लोगों को बताएंगे नहीं आखिर जैविक खेती क्या है तब तक लोग जैविक खेती नहीं करेंगे. हमारे यहां यूरिया ज्यादा मात्रा में खेतों में डाला जाता है जो किसी न किसी वजह से गंगा में चला जाता है. इससे गंगा में रहने वाले जीव को नुकसान होता है. हमारे क्षेत्र में जैविक खेती हो रही है. इस बार 50 किसानों की ट्रेनिंग जैविक खेती को लेकर करानी है. इसके साथ ही अब तक तीनों प्रखंड मिलाकर 15 सौ पेड़ लगाए गए है,जो वन विभाग को जिम्मेदारी दी गई थी. इसमें वन विभाग द्वारा आम, सागवान, अर्जुन, महोगनी का पेड़ लगाया गया है.

DDC ने गिनाए 2023 और 2024 के कार्य

वहीं DDC डॉ. अनुपमा सिंह से मिली जानकारी के मुताबिक राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन जल-शक्ति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा निदेशित सभी कार्य जो जिला गंगा समिति, भोजपुर द्वारा घाट पर योग 2023 और 2024, गंगा उत्सव 2024 में कुल 900 से अधिक लोगों की सहभागिता रही, जिसमें बड़हरा प्रखंड में 200 से अधिक छात्र – छात्राओं ने 11 कि०मी० लम्बी साईकिल रैली के माध्यम से आम जनों का गंगा के प्रति जागरूक करने का कार्य किया. इस कार्यक्रम के माध्यम से जिला स्तर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं पेंटिंग, रंगोली, समान्य ज्ञान प्रतियोगिता जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया गया जिसमें 250 से ऊपर प्रतिभागियों ने भाग लिया.

वहीं जिले के सभी प्रमुख गंगा घाट की समय समय पर साफ सफाई, गंगा-आरती, विशेष अभियान के तहत “एक पेड़ मां के नाम ” 2024 का आयोजन भोजपुर जिले के तीनों गंगा प्रखंडों में किया गया. स्वच्छता ही सेवा 2023 और 2024 महुली गंगा घाट पर जेटी का कार्य शुरू हो गया है एवं ख्वासपुर तथा सिन्हा घाट हेतु प्रस्ताव भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग को भेजा जा चुका है. शाहपुर एवं आरा प्रखंड के सभी गंगा ग्राम पंचायत के ग्रामों को मॉडल घोषित करते हुए MIS पर मार्क कर दिया गया है. बडहरा प्रखंड में कुल 19 ग्रामों के विरूद्ध 14 ग्रामों को मॉडल घोषित हो चुका है.

वहीं कृषि विभाग के द्वारा गंगा ग्राम के युवाओं हेतु जैविक खेती 2023 पर दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जिला के गंगा ग्रामों में समय-समय पर विभिन्न गतिविधियों के तहत खेलों, गंगा चौपाल, चित्रकला प्रतियोगिता, रैली इत्यादि के द्वारा स्थानीय लोगों के बीच जन जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है.

ग्रामीणों को सताता है खुजली का डर, कहते हैं अब नही मिलती हैं गंगा में मछलियां

वहीं ग्रामीणों ने बताया कि पहले गंगा ऐसी नहीं थी. मछली मारने के दौरान मछली मिलती थी, लेकिन अब ज्यादातर मछली मर जाती है. गंगा में प्रदूषण बढ़ गया है. लोग मरे हुए पशुओं को डाल देते है. इसपर रोक लगाना चाहिए. हमलोग पहले नहाते थे, लेकिन अब नहाने नहीं जाते खुजली का डर बना होता है. इसके साथ ही एक व्यक्ति श्राद्धकर्म में पहुंचा था उसने बताया कि पहले गंगा ऐसी नहीं थी, अब नहाने में बहुत समस्या होती है. साफ सफाई कहीं भी नहीं है. गंगा किनारे घाट होना चाहिए जो कहीं देखने को नही मिलता है.

आरा से शुभम कुमार की रिपोर्ट

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