शैलेन्द्र और शाहिर के गीतों को मिलेगी पाठ्यक्रम में जगह !

शाहिर लुधियानवी और शैलेंद्र के गीत पाठ्यक्रम में लाये जाएं – डॉ सागर

कार्यक्रम में छाए रहे गायक शैलेन्द्र, कविता और नाटक की भी हुई प्रस्तुति




खाकी और महारानी के गीतकार डॉ सागर ने कहा गीतकार पर समाज की बड़ी जिम्मेवारी

आरा,20 दिसंबर. “गीत भावनाओ की आवाजाही है. लेखक की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वह बदलते परिवेश के अनुसार लिखे. समाज जिस तरह से बदल रहा है उसी तरह से गीतकार को भी समय और समाज मे आये बदलाव को देखते हुए लिखना चाहिए. सिनेमा समाज का सशक्त आईना है और अपनी आवाज दूर तक पहुँचाने के लिए मैंने फ़िल्मों को चुना क्योंकि इसकी व्यापकता का अंदाजा लगाना मुश्किल है. आज की जेनेरेशन ब्रेकअप को सेलिब्रेट कर रही है इसलिए सईंया जी से आज मेरा ब्रेकअप हो गया लोगों को भा रहा है. सरकार को चाहिए कि शाहिर लुधियानवी और शैलेंद्र के गीत पाठ्यक्रम में शामिल करे.” उक्त बातें बॉलीवुड के मशहूर गीतकार डॉ सागर राज ने कही. वे रविवार को आरा के एक निजी होटल के सभागर में आयोजित आरा साहित्य उत्सव में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे.

बॉलीवुड के मशहूर गीतकारों में से एक डॉ सागर उन लोगों में से हैं जिनकी कलम की लय को सभी गुनगुनाना चाहते हैं. हिंदी और भोजपुरी पर अपनी बराबर पकड़ बनाने वाले डॉ सागर के गीतों को शारदा सिन्हा,कैलाश खेर, श्रेया घोषाल जैसे कई मशहूर गायकों ने गाया है. इनके गीतों की सबसे बड़ी खासियत है कि समाज का हर पहलू झलकता है और शायद यही वजह है कि डॉ सागर लोगों के दिलों पर राज करते हैं. बम्बई में का बा, तितली, सहमी है धड़कन(दास देव), मनवा बहरूपिया (बॉलीवुड डायरी), मोरा पिया मतलब के यार (अनारकली ऑफ आरा), ठोक देंगे कट्टा कपार में (खाकी), करतूतें, तेरा साथ है (जैकलीन आई एम कमिंग), महारानी जैसे वेब सीरीज के लिए लिखे सारे गीत लोगों के जुबान में चढ़े हुए हैं. उन्होंने खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि गीतकार शैलेन्द्र की धरती पर आकर बहुत ही अच्छा लग रहा है. उन्होंने ऐसे आयोजन के लिए आयोजक और आरा वासियों को धन्यवाद दिया और कहा कि फिर आरा आऊँगा.

आरा साहित्य उत्सव का आयोजन आरोह थियेटर,पटना, संकल्प सांस्कृतिक संस्था, बलिया और विनम्रता फाउंडेशन के सामूहिक प्रयास से सम्भव हुआ था. इस उत्सव का मुख्य विषय था ‘सिनेमा और हमारा समाज. ‘कार्यक्रम का उद्घाटन संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ नीरज सिंह ने किया.उन्होंने ऐसे आयोजन की आरा में आयोजन पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि इस आयोजन में डॉ सागर जैसे व्यक्तित्व का आना भी सुखद है. उन्होंने गीतकार शैलेन्द्र की चर्चा करते हुए कहा कि विडंबना है कि आरा के रहने वाले शैलेन्द्र को उनके जिंदा रहने तक हम नही जान सके.

आरा के इस साहित्य उत्सव में जहाँ देश के कई नामी साहित्यकार पहुंचे थे वही देश और विदेशो से लोग ज़ूम के जरिये भी जुड़कर इस विषय पर चर्चा किया. उत्सव में ग्रेटर नोएडा से आयी डॉ विभावरी ने उक्त विषय पर बोलते हुए कहा कि पहले फिल्मों में स्त्री पात्रों को सही नही माना जाता था. पहली बार जब 1913 में फ़िल्म का निर्माण हुआ तो पहली महिला का रोल भी एक पुरुष ने ही निभाया था. लेकिन जब फिल्मों का निर्माण शुरू हुआ तो उसी वर्ष दुर्गा बाई कामत पहली महिला बनी जिन्होंने मोहिनी भस्मासुर में काम किया. उन्होंने फ़िल्म डॉ जी और डार्लिंग की चर्चा करते हुए महिला फिल्मकारों के बारे में बताते हुए कहा कि महिलाएं पर्दे पर ऑब्जेक्टिफाई हैं. जब महिला निर्देशक इस क्षेत्र आयीं तो उन्होंने महिलाओं की सोच को दिखाया तभी
मेघना गुलजार, जूही और अनुकृता श्रीवास्तव जैसी निर्देशक आयीं और लिपिस्टिक अंदर बुर्का जैसी फिल्में पर्दे पर आयीं.

वही उतर प्रदेश से आये डॉ चंदन कुमार ने कहा कि वे आयोजक प्रोफेसर निलाम्बुज के मित्र हैं. उन्होंने कहा कि साहित्य के विद्यार्थियों को सिनेमा और पत्रकारिता से काट दिया गया है. पाठ्यक्रम बनाने वाले लोग सिनेमा और पत्रकारिता को भी शामिल करें ताकि क्रिएटिविटी बन सके.

इस मौके पर बलिया से आए आशीष त्रिवेदी ने कहा समाज और सिनेमा ही नही सारी चीजें एक दुसरे से जुड़ी हैं. इन सबमें सिनेमा की जिम्मेदारी ज्यादा हो जाती है. साहित्य दर्पण ही नही होता समाज सबसे डेवलप रूप है. सिनेमा में बदलाव जरूरी है क्योंकि इसे सिर्फ बाजार बना कर बेचा गया है. इसलिए इसमें साहित्य की जरूरत है ताकि सिनेमा का मार्गदर्शन हो सके.

बलिया से आये डॉ संतोष कुमार ने बॉलीवुड सिनेमा के महान गीतकार शैलेंद्र के दर्जनों गीतों, नानी तेरी मोरनी को,कांटों से खींचकर आँचल,आज फिर जीने की तमन्ना है, भैया मेरे राखी के बन्धन, सबकुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी, और तीसरी कसम की गीत दुनिया बनाई तूने जैसे गीतों पर चर्चा करते हुए कहा कि आरा के महान गीतकार ने जगह बनाई उन्हें सरकार को जगह देना चाहिए.

साहित्य उत्सव में आये दिग्गजों को अपनी मधुर आवाज से मंच संचालन करते हुए पटना आकाशवाणी से आयीं ममता साह ने इस कदर बांधे रखा कि कार्यक्रम के अंत तक लोग बरबस बंधे रहे. पहले सेशन के समापन के बाद धन्यवाद ज्ञापन आयोजक प्रो. निलाम्बुज सरोज ने किया.

कार्यक्रम के दूसरे चरण में ज़ूम के जरिये देश विदेश से कई लोग आरा साहित्य उत्सव के इस इस कड़ी में ऑनलाइन जुड़े जिसमें मुख्य वक्ता थे राज शेखर. ऑनलाइन इस सेशन में डॉ. विवेक शुक्ल (डेनमार्क), प्रो. (डॉ.) रवि कुमार (आरा), ‘डॉ. वेदप्रकाश (जापान), प्रो. (डॉ.) बाग प्रताप केसरी (आरा), प्रो. कृष्ण मुरारी सिंह (पटना), डॉ. वंदना भारती (पूर्णिया), डॉ. पूर्ति महौर (आरा), अशीष त्रिवेदी (बलिया)संकल्प सहित्यिक संस्था (बलिया), डॉ. दलपतसिंह राजपुरोजिन (अमेरिका) डॉ. शेफालिका शेखर (मधेपुरा)
और डॉ. सीमा प्रधान (आरा) से जुड़े. सिमेमा और हमारा समाज पर खूब चर्चा हुई.

दूसरे सेशन के बाद सोलो नाटक भगत सिंह का मंचन किया गया जिसे किया बलिया की संकल्प सांस्कृतिक संस्था ने. नाटक में भगत सिंह के रोल में अभनेता व निर्देशक आशीष त्रिवेदी ने शानदार अभिनय से अपने अभिनय का सिक्का दर्शको पर चलाया. नाटक में संगीत और पार्श्व पर सहयोग देने वाले कलाकारों में थे आनंद कुमार चौहान,सोनू साहनी, अखिलेश मौर्या, सुनील चौहान,राहुल चौरसिया,ट्वींकल गुप्ता और मुस्कान गुप्ता. पार्श्व इम्पैक्ट से नाटक और भी दमदार बन पड़ा था. इसके बाद भोजपुरी के लोकप्रसिद्ध युवा गायक शैलेन्द्र मिश्रा ने अपनी अगहन में चइता आ कजरी गावता और हमर सइयां गायक से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया.

कार्यक्रम का चौथा और अंतिम सेशन काव्य पाठ का रहा जिसकी शुरुआत नई उभरती कवयित्री और हाल में अपनी प्रकाशित पुस्तक से लोगों की चहेती बनी ममता दीप ने श्रृंगार रस की दो कविताओं का पाठ कर सबको अपने रस में भिगो दिया उसके बाद चर्चित कवि और लेखक सुमन कुमार ने अपनी दो कविताओं का पाठ किया फिर सिद्धार्थ बल्लभ ने अपनी भ्रम का पाठ तो किया ही दर्शकों के डिमांड पर दो और कविता का पाठ किया. काव्य-पाठ का अंत डॉ सागर की कविता से हुआ.

कार्यक्रम में उपस्थित लोगों में फिल्मकार देवेन्द्र सिंह, मनोज श्रीवास्तव, अशोक मानव, गायक शैलेन्द्र मिश्रा, नाटककार चंद्रभूषण पांडेय, कृष्णेन्दु,खुश्बू स्पृहा, सहित कई साहित्यकार और बुद्धिजीवी उपस्थित थे.

आरा से ओ पी पांडेय की रिपोर्ट

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