अधिकारी सुस्त तो जनप्रतिनिधि मस्त,वित्तीय हेराफेरी की जांच ठंडे बस्ते में




शिकायतकर्ता को लीपापोती की है आशंका

एक दूसरे के पाले में गेंद डालने का चल रहा खेल

जांच को कुंद करने के नाम पर होती है पंचैती

दरभंगा जिले के बहादुरपुर प्रखण्ड का है मामला

संजय मिश्र, दरभंगा

इंडिया कल्याणकारी स्टेट है. विधायिका देश का नियंता है. कार्यपालिका यानि सरकार नीति बनाती. नीति पर अमल और उसे जमीन पर उतारने का जिम्मा कार्यपालिका के ही अंग यानि ब्यूरोक्रेसी यानि प्रशासन तंत्र का है. प्रशासन को नजर रहती कि जनकल्याण के काम सुचारू चलें. वे जानते कि इसमें व्यवधान से देश की अपेक्षाओं का मकसद पूरा नहीं होगा. काम में अनियमितता पर वे जांच कराते और जरूरी कार्रवाई करते.

फर्ज करिए गड़बड़ी में प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधि की परोक्ष तकनीकी बहाने या सीधे अवांक्षित लाभ के मंसूबे से मिलीभगत हो तो क्या होगा? वही होगा जो दरभंगा जिले के बहादुरपुर प्रखण्ड में घटित हो रहा है. ये तो केस स्टडी बन कर उभरा है. एक पात्र हैं प्रखण्ड प्रमुख, दूसरे हैं बीडीओ. दोनों के संयुक्त हस्ताक्षर से विभिन्न योजनाओं के लिए राशि निकासी होती है. पंचायत समिति के कई सदस्य इसमें हेराफेरी का आरोप लगाते हैं. डीएम से लेकर तत्कालीन मंत्री तक शिकायत जाती है.

अनियमितता हुई या नहीं, हुई तो इसके दायरे में आने वाली राशि 72 लाख, इससे कम या फिर इससे अधिक.. जो भी कही गई हो.. निष्कर्ष यही कि डीएम जांच के आदेश देते हैं. तीन तरह के जांच एक साथ हो रहे.. ऐसा कहना है संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों का. समिति सदस्यों की शिकायत की जांच, मीडिया में हुए खुलासे की जांच और प्रमुख के जाति प्रमाणपत्र के लिए जांच. पहली दो जांच सरकारी कोष के निकासी से जुड़ी हुई है.

15 जून 2022 को डीएम जांच के आदेश देते हैं. 7 अक्टूबर 2022 को मीडिया के खुलासे पर डीएम जांच का नया आदेश जारी करते हैं. डीआरडीए निदेशक गणेश कुमार को जांच कर रिपोर्ट देनी थी. राशि 15 वीं वित्त आयोग से जुड़ी हैं.21 अक्टूबर 2022 को एक बार फिर डीएम ने जांच के आदेश दिए. समिति सदस्य गुड्डी देवी के दुबारा शिकायत करने के आलोक में डीएम का ये आदेश आया. तत्कालीन कृषि मंत्री को दिए आवेदन की छायाप्रति को ही आधार बना कर डीएम को आवेदन दिया गया. इसमें पंचायत समिति मद के दुरुपयोग की नियमानुसार जांच का आदेश दिया गया है.

आपको बता दें कि पंचायत समिति के अध्यक्ष प्रखण्ड प्रमुख होते हैं जबकि सचिव कार्यपालक पदाधिकारी. इस मामले में सचिव के प्रभार में बीडीओ थे. इन दोनों के संयुक्त हस्ताक्षर से राशि ट्रांसफर हुई. आरोप लगाने वाले कहते कि प्रमुख खुद वेंडर हैं और राशि उनके नाम वाले खाते में गई. इसी में घोटाला सूंघा जा रहा है वहीं किसी को इसमें कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट नजर आता है.गुड्डी देवी का कहना है कि प्रभावकारी लोगों की मंशा ठीक नहीं. उन्हें लीपापोती की आशंका सता रही है. वे अंदेशा जताती हैं कि वित्तीय हेराफेरी की जांच ठंडे बस्ते में न चली जाए. वे कहती हैं कि अभी तक कोई निष्कर्ष नहीं निकला है.

दरभंगा प्रशासन जाति प्रमाणपत्र मामले में अंदरखाने अपनी पीठ थपथपा रहा है. सूत्रों का कहना है कि मामले में जांच प्रतिवेदन राज्य चुनाव आयोग को भेजा गया है. लेकिन पंचायत समिति मद के राशि गबन के आरोपों की जांच मामलों में प्रशासनिक महकमा ने चुप्पी ओढ़ ली है. अभी तक जो दिखा है उसका मजमून यही है कि डीएम कार्यालय से रिमाइंडर भेजा जाता है. डीपीआरओ यानि जिला पंचायती राज पदाधिकारी की तरफ से डीआरडीए निदेशक को रिमाइंडर भेजे जाते हैं. और डीआरडीए स्वीकार कर चुके हैं कि बीडीओ जांच से जुड़े कागजात नहीं देते. उनके मुताबिक रिमाइंडर पर रिमाइंडर भेजे गए लेकिन जरूरी सहयोग नहीं मिला. यानि फुटबाल के गेंद की तरह जांच के नाम पर जिम्मेदारी एक दूसरे के पाले में डाले जा रहे.

अब जरा इस खबर में लगी तस्वीर को गौर से देखें. इसमें बीडीओ अलख निरंजन दिख रहे हैं. संतोष का भाव है चेहरे पर. उन्हें जांच टीम को संबंधित फाइल्स उपलब्ध कराने थे. तस्वीर में प्रमुख के एक संबंधी भी मौजूद हैं. उनके चेहरे पर राहत के भाव हैं. इन दोनों के साथ में खड़े हैं कई शिकायतकर्ता. ये तस्वीर दिवाली से ऐन मौके पहले 18 अक्टूबर की है. दरअसल विभिन्न पक्षों के बीच पंचैती कराई गई थी. उसके बाद ये तस्वीर ली गई थी. यानि जांच के बदले पंचैती! और इसके लिए आयोजित बैठक में बीडीओ ने खासी दिलचस्पी ली.खबर है कि जांचकर्ता बदले जा रहे. जून में जांच शुरू और अभी दिसंबर. इंडिया सावधान!

By pnc

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