हॉलैंड के पॉप स्टार की भोजपुरी को बचाने के लिए मुहीम

By Amit Verma Apr 14, 2017

पॉप में कर रहे हैं भोजपुरी का प्रयोग
चौथी पीढ़ी को याद आया गाँव

विदेश का नाम लेते ही मन में यही जिज्ञासा उठती है कि काश हम विदेश घूम आते. लेकिन क्या आप जानते हैं कि विदेशों में रहने वालों को भी अपने वतन जाने की यही लालसा होती है. जी हां और लालसा और भी तीव्र हो जाती है जब किसी को 4थी पीढ़ी बाद पता चले कि उसका गाँव किसी दूसरे देश में है.
नीदरलैंड (हॉलैंड) के ‘युतरेख्त’ में रहने वाले पॉप स्टार ‘राज मोहन’ की कहानी कुछ ऐसी ही है.




राज मोहन के पूर्वज चार पीढ़ी पहले ब्रिटिश हुकूमत में गिरमिटिया मजदुर बनकर सूरीनाम गए थे. सूरीनाम से दूसरी पीढ़ी फिर नीदरलैंड और यहाँ जब दो पीढ़ियों ने अपना अस्तित्व कायम किया तो चौथी पीढ़ी में राज मोहन एक ऐसा सितारा बन निकला जो नीदरलैंड(हॉलैंड) का एक पॉप स्टार बन लोगों के दिल और दिमाग पर छा गया. अपनी पहचान बनाने के बाद राज ने अपने परिवार के मूल राज को खोजना शुरू किया तो उन्हें पता चला कि उनके पूर्वज बिहार के हैं.

सुरीनामी और भोजपुरी को जानने वाले राज अंग्रेजी, डच भी जानते हैं. राज से भोजीपुरी भाषा में ही गाना गाने की वजह जब पूछा गया तो उन्होने बताया कि मुझे ये साबित करना था कि मेरी भाषा कमजोर नहीं है.वे बातों ही बातों में ये भी कहते हैं कि भोजपुरी हम नहीं तो लता मंगेशकर आ कर गाएँगी? गजल गायकों और बॉलीवुड में ए आर रहमान के बॉम्बे फिल्म के गाने सुनने के बाद वो ये तलाशने लगे की भोजपुरी में ऐसे गाने क्यों नहीं हैं? फिर16 साल की उम्र में उन्होंने तय किया कि वे म्यूजिक सीखेंगे और फिर 21 साल की उम्र से संगीत सीखना चालू किया. वे लोकगीत से खासे प्रेरित हैं लेकिन बॉलीवुड ने उन्हें हमेशा आकर्षित किया है. भोजपुरी को इंटरनेशनल लेबल पर ले जाने के उद्देश्य से उन्होंने कुछ ऐसा फ्यूजन किया कि फिर सुनने वाले राज के गानो में खो गये और राज मोहन ने एक पॉप स्टार के रूप में हॉलेंड, जर्मनी, यूके, ब्रिटिश, सूरीनाम, फ्रांस, मॉरीशस, सहित भारत के मुम्बई में अपना शो कर अपने पूर्वजो के देश में पाँव पसार दिया. राज बताते हैं कि ये सब करने में उन्हें 21 साल लग गए. पपॉन को पसंद करने वाले राज भोजपुरी में चन्दन तिवारी का गाना सुनना चाहते हैं और टपोरी टाइप का अश्लील गाने वालों से वो नफरत करते हैं. साथ ही रामदेव चैतू के गाने उन्हें पसंद है.

पटना नाउ ने जब राज से चौथी पीढ़ी में अपने गाँव को याद करने का कारण पूछा तो राज थोड़े ठिठके और आँखे डबडबा उठीं. उन्होंने बताया कि उनको किसी ने बताया ही नहीं कि उनका गाँव कहाँ है. उनके पिताजी और उनके पहले की पीढ़ियाँ 100 सालों तक बस कठिन मेहनत कर अपने घर और परिवार के सदस्यों के जिंदगी की गाड़ी सेट करने में लगे रहे. राज ये भी कहते हैं कि खाली पेट कला संस्कृति और साहित्य की बात नहीं होता है. उनके पूर्वजो ने पेट भरने के व्यवस्था तक कोई बात नहीं की. राज मोहन का एक एक यु ट्यूब पर गाना है जिसकी लाइने कुछ ऐसी हैं-
जब बंधले तू ताकत और कर ले इरादा
उतरले जब पगड़ी, न सोचले नतीजा
गाँव फिन तू लौटिए ना लौटिए
पलवार फिनु देखिये ना देखिये
कोई आंसू पी के रह गए
कोई आड़े में सुसके है
रोये है माई बाबा, तिहा मन में धरे है
निकर ले सरनाम के ओरे
नवा नवा ताकदिर से नाता जोड़े
कइसन हवा अब चली
दुई मुठ्ठी एक दिन के मजुरी…..
कैसे भला वो चली, खर्चा हियाँ और खर्चा हूँवा
नप्ले सब तोहके,सब ऊपर से नीचे
की हाथ गोड़ में जांगड़ बा और पीठि भी जबर है
हौसला भी मन में दबल है
साथ में इरादा भी अटल है
अब दुःख रही न चिंता, जेबी रही न खाली
घर आँगन अपन रहेगा, रहि जिनगी में खुशहाली
निकर रे श्रीनाम के ओरे,
बाकि चिंता भी हिया भारी
गिरेमिट खड़ा अग्वारी,
मँझा के अंधेर से भला के हिम्मत न हारी
बान्हल तोरा आजादी, तू कांत्राक्ट में बान्हल बाटे
कुछ कौड़ी खाति, तू कइसन हाल में आज दबावल बाटे
है अलबत्त मजुरी बाकि खड़ा है कुछ दूरी
कैसे भला अब चली….दुई मुठ्ठी एक दिन के मजुरी


अब आप खुद ही इन लाइनों से उनकी स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं जब हमारे पूर्वज अपनी स्थिति को सुधारने के लिए एक एग्रीमेंट के तौर पर टापुओं और दूसरे देश गए, जो लौट तो नहीं पाए लेकिन गिरमिटिया मजदूर के तौर पर जाने गए. उनकी पीढियां आज उन देशों में प्रधानमंत्री और गांधी तक की उपाधि अपने मेहनत और काबिलियत के बल पर लिया.

1894 में पूर्वज गए थे सूरीनाम
25 जनवरी 1894 को राज के पूर्वज रामखेलावन एंगल शिप एर्न-II में सवार हो सूरीनाम के लिए कॉन्ट्रेक्ट पर गए. कुर्मी जाति के रामखेलावन 82 दिन बाद 14 अप्रैल 1894 को सूरीनाम की राजधानी पारामैरिबो पहुँचे. कॉन्ट्रेक्ट नम्बर-W-399 के अनुसार रामखेलावन का नम्बर 536 था. ये संख्या गिरमिटिया मजदूरों को ब्रिटिशों द्वारा दिया गया एक नम्बर था जिससे वे इन्हें पहचानते थे. मजदूर की इन संख्याओं को वे मॉन्स्टर नम्बर लिखते थे. उन्हें वहाँ बर्मदेव के यहाँ ईख के खेतों में काम करने के लिए ले जाया गया था.

जाति का भेद देश में ही मिट गया था

भारत जो एक धर्मनिरपेक्ष राज के रूप में जाना जाता है. जहाँ कई जाति और समुदाय के लोग रहते हैं, जहाँ अपने संस्कारों और रीतियों के लिए आपस में तकरार होती रहती है वहां अंग्रेजों की हुकूमत में देश छोड़ने से पहले ही जाति का भेद भाव मिट गया था. कारण जब गिरमिटिया मजदूरों मतलब एग्रीमेंट पर जाने वाले भारतीय मजदूरों को कोलकाता से शिप द्वारा भेजने से पहले उन्हें लिए डिपो पर रखा जाता था. इस दौरान सिमित मात्रा में संसाधन उन्हें जाति की लड़ाई से दूर कर देती थी. पानी के जहाज पर चढ़ने से पहले सबका सफेद लिबास रहता था इस कारण सब एक भाव के हो जाते थे और शिप पर तो और भी संसाधन सिमित हो जाता था. इस तरह देश छोड़ने से पहले ही जाति का भेदभाव मिट जाता था. सूरीनाम और बाकि ऐसे देशों में जाने के बाद जो वापस नहीं आये उनकी बस एक ही जाति पहचान रह गयी और वो थी गिरमिटिया मजदूर की पहचान. अपने घर वापस लौटने की आस छोड़ चुके इन गिरमिटिया लोगों ने वहाँ रहने वाले इन्ही गिरमिटिया और नीग्रो लोगों से शादी की और अपने अस्तित्व को जीवित रखा. यही करना है कि आज चौथी पीढ़ी में उनके वंशज को देखते हैं तो जातियों का अंतर देखने को मिलता है. सूरीनाम में निग्रिन थे और उनका कल्चर आज भी जिन्दा है. पूर्वजो ने अपनी भाषा को अपनाए रखा जिसे आज चौथी पीढ़ी भी जानती है. सूरीनाम में जाति नहीं बल्कि पूर्वजों के नाम और टाइटल ही समझिये जाति बन गए.

भोजपुरी गजल गायक और पॉप स्टार राज मोहन के दो दोस्त पवन राजवंशी और सूरज शिवलाल की भी कहानी ऐसी ही हैं. बस अंतर है तो अलग राज्य का. पवन राजवंशी के पिताजी मेरठ से और माँ बस्ती से हैं. पवन डॉक्यूमेंट्री मेकर हैं और साथ ही भारत का एक पुराना वाद्य जो अब भारत में लुप्तप्राय हो गया है- ‘दंड-ताल’ बजाते हैं. सामान्यतः साधू महात्माओं के पास रहने वाले छड़ और उसमें लटकता एक छोटा छड़ का आकार ही दंड-ताल कहलाता है. पवन जब यह वाद्य बजाते हैं तो यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि इस छड़ से इतना सुंदर आवाज भी निकल सकता है.

राज के दूसरे मित्र सूरज शिवलाल हैं जो ढोलक वादक हैं और शास्त्रीय संगीत के ज्ञाता हैं. इनके पूर्वज 1890 में सूरीनाम गए थे. जिनके परिवार के मिले कागज़ में समसीतापुर जिला जौनपुर कोलकाता लिखा हुआ है. अब ये समझना मुश्किल होगा कि 1894 में क्या यूपी भी कोलकाता का हिस्सा था या फिर कोलकाता का कोई जौनपुर जिला है.

18 अप्रैल को होगा आरा में कार्यक्रम


राज भारत में राज मोहन इण्डिया टूर “सात समंदर पार” से कई जगह कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे हैं इसी क्रम में वे 18 अप्रैल को नागरी प्रचारिणी में भी अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे जिसमे पवन और सुरज भी इनके साथ युगलबंदी करेंगे. राज मोहन ने अश्लील गाने वालों को खुली चुनौती देते हुए कहा है कि मैं भोजपुरी के अच्छे गाने से सिद्ध कर दूंगा कि अश्लीलता कभी जीत नहीं सकती. राज भोजपुरी को फ्यूजन कर नए तरीकों से इंटरनेशनल स्तर पर श्रोता बनाने में लगे हैं. अश्लीलता के खिलाफ उनकी गायकी है. उन्होंने अम्बा के कार्यो की सराहना की और कहा कि वो अम्बा के इस पुनीत कार्य के लिए हमेशा संकल्पित हैं. उन्होंने साथ ही शहर के प्रतिष्ठित शख्शियत डॉ मदन मोहन द्विवेदी का भी शुक्रिया अदा किया.

विशेष रिपोर्ट- आरा से ओपी पांडे

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