जब आत्माएं रो पड़ी उसके आने से

By pnc Sep 11, 2016

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सोशल मीडिया और सीवान 




सीवान में उसके पाँव पड़ते ही पटाखे छूटने लगे जश्न मनाया गया और कईयों की आत्मा रो पड़ी .उनमें से एक है चंदा बाबू उनके साथ भी बहुत जघन्य घटना घटी थी .जिसे आज भी याद कर के वो कांपने लगते हैं .चंदा बाबू का अब कानून पर से विश्वास उठ जाना लाज़मी था जब उसके दो  बेटों को इसी सुशासन की सरकार में मार दिया गया .दो को तेज़ाब से नहला कर एक की गोली मार कर हत्या कर दी गई । सजा किसी को नहीं .चंदा बाबू के लिए आज तमाम सोशल मीडिया पर लोग कराह रहे हैं पर उनकी बात सुनने को कोई तैयार नहीं है .क्या अब सरकार उनकी आर्थिक स्थिति को देखते हुए उन्हें सुप्रीम कोर्ट में लड़ने के लिए आर्थिक मदद देगी.हत्या किसने करवाई सब जानते है पर कानून को तो सुबूत चाहिए जिसे अब मार कर खत्म कर दिया गया .बिहार सरकार ने या किसी नेता ने कोई मदद दी नहीं न.सिर्फ इस लिए की अगर उन्होंने मदद की तो उन्हें भी मार दिया जाएगा. सिवान में पुलिस अधिकारियों को गोलियों से छलनी कर दिया गया .हुआ क्या कुछ भी नहीं .आज उन सबकी आत्मा रो रही है कि 37 से ज्यादा मुकदमें जिसके ऊपर हो वो कैसे न्यायालय से बरी कैसे ? ये सवाल आज देश दुनिया में पूछे जा रहे है.

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क्या है सीवान का तेजाब कांड…..

चंदा बाबू ने वर्ष 1996 में बड़हरिया स्टैंड के पास एक कट्ठा नौ धूर जमीन रामनाथ गौंड़ से रजिस्ट्री करायी.  इस जमीन पर छह दुकानें थीं, जो रजिस्ट्री के बाद खाली हो गयी. एक दुकान नागेंद्र तिवारी के कब्जे में थी, जो खाली नहीं कर रहे थे दुकान की दावेदारी काे लेकर नागेंद्र ने मुकदमा कर रखा था. दूसरी तरफ चंदा बाबू उस दुकान को खाली कराने के लिए दबाव बना रहे थे. मामला फंसता देख नागेंद्र ने फर्जी कागजात तैयार कराया और सिवान के ही मदन शर्मा (गाड़ी मिस्त्री) को जमीन रजिस्ट्री कर दी. वर्ष 2004 के अगस्त महीने से जमीन पर कब्जा करने की कवायद शुरू हुई. नागेंद्र ने दुकान में ताला लगा रखा था. उधर चंदा बाबू ने भी उसी दुकान में अपना भी ताला लगा दिया. अब अन्दर ही अन्दर टसल बढ़ने लगी . 16 अगस्त 2004 को कब्जा करने के नीयत से पहुंचे लोगों ने चंदा बाबू के परिवार से मारपीट की. इस दौरान अपने बचाव में चंदा बाबू के बेटे सतीश राज ने तेजाब फेंका, जो कुछ लोगों के ऊपर पड़ा. यहीं से विवाद बढ़ गया अौर 16 अगस्त को ही बारी-बारी से चंदा बाबू के तीनों बेटों का अपहरण किया गया, जिनमें से दो को उसी रात तेजाब से नहला कर मार दिया गया. बड़ा बेटा चंगुल से भाग निकला. वह कई साल तक लापता रहा. 6 जून, 2011 को उसने बतौर चश्मदीद गवाही दी. 16 जून, 2014 को उसकी भी सिवान में गोली मारकर हत्या कर दी गयी. 11 दिसंबर, 2015 को शहाबुद्दीन समेत चार लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी.

कुछ तफ्तीश से क्या और कैसे 

6 जून 2011 को इस घटनाक्रम में महत्वपूर्ण मोड़ आया जब 2004 में अपहृत गिरीश व सतीश के बड़े भाई राजीव रौशन ने चश्मदीद गवाह की हैसियत से विशेष अदालत में अपना बयान दर्ज कराया.उसने अपने बयान में खुलासा किया कि अपहरण उसके दो भाइयों का ही नहीं बल्कि उसका (राजीव रौशन) भी किया गया था. उसके दोनों भाइयों की हत्या उसकी आंखों के सामने पूर्व सांसद मो.शहाबुद्दीन के पैतृक गांव प्रतापपुर में शाम के धुंधलके में तेजाब से नहलाकर की गई थी. हालांकि घटना के वक्त मो.शहाबुद्दीन सिवान मंडल कारा में बंद थे लेकिन राजीव रौशन ने दावा किया था कि उसके दोनों भाइयों की हत्या उनकी उपस्थिति में ही की गई. चश्मदीद ने यह भी बयान दिया कि वह किसी तरह वहां से जान बचाकर भागा था और गोरखपुर में लुक छिपकर अपना गुजर-बसर कर रहा था.

राजीव रौशन के उक्त बयान के आलोक में तत्कालीन विशेष लोक अभियोजक सोमेश्वर दयाल ने मामले में अपहरण के अलावे हत्या और षड्यंत्र को ले नवीन आरोप गठन करने का निवेदन विशेष अदालत से किया. लेकिन तत्कालीन विशेष सत्र न्यायाधीश एस के पाण्डेय की अदालत ने विलंब से किए गए उक्त निवेदन को अनुचित और विचारण को बाधित करने वाला बताकर अस्वीकृत कर दिया. बाद में पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर विशेष अदालत में एक मई 2014 को पूर्व सांसद मो.शहाबुद्दीन के विरुद्ध हत्या और षड्यंत्र को लेकर नए आरोपों का गठन भादसं की धारा 302 एवं 120 बी व 201 के अंतर्गत किया गया. नए सिरे से आरोप गठन के पश्चात पुन: विचारण आरंभ हुआ. इस क्रम में चश्मदीद राजीव रौशन का पुन: साक्ष्य होना था तभी उसकी हत्या 16 जून 14 को सिवान में डीएवी मोड़ पर ओवरब्रिज के पास गोली मारकर कर दी गई. इस मामले में राजींव रौशन के पिता चन्द्रकेश्वर प्रसाद के बयान पर शहाबुद्दीन के अलावे उनके पुत्र ओसामा के विरुद्ध नगर थाना में प्राथमिकी नगर थाने में कांड संख्या 220/14 के रूप में दर्ज की गई.

अबतक विशेष अदालत के फैसले

8 मई 2007 : तत्कालीन विशेष सत्र न्यायाधीश ज्ञानेश्वर श्रीवास्तव की अदालत को छोटेलाल गुप्ता अपहरण कांड (सत्रवाद 67/04) में मो.शहाबुद्दीन को आजीवन कारावास की सजा दी.

30 अगस्त 2007 : वर्ष 1996 में पुलिस कप्तान एसके सिंघल पर गोली चलाने के मामले (सत्रवाद 320/01) में दस वर्ष की सजा। इस मामले में शहाबुद्दीन के अंगरक्षक हवलदार जहांगीर खां व सिपाही खालिद खां को भी बराबर सजा मिली थी।

26 सितंबर 2007 : विशेष सत्र न्यायाधीश ज्ञानेश्वर श्रीवास्तव की अदालत से प्रतापपुर में छापेमारी के दौरान प्रतिबंधित विदेशी हथियार मिलने के मामले (सत्रवाद 18/02) में दस साल के सश्रम कारावास की सजा।

जिनमें बरी हुए

26 सितंबर 2008 : आंदर थाना के दारोगा संदेश बैठा पर कातिलाना हमला कर हत्या के एक आरोपी मुन्ना साईं को छुड़ाने के मामले (सत्रवाद 99/97) में साक्ष्य के अभाव के आधार पर उन्हें रिहा किया गया।

जब सीवान समेत पूरा बिहार और यूपी का पूर्वांचल इलाका भी शहाबुद्दीन के खौफ से दहशत में था तो बिहार के एक आईएएस और आईपीएस ने इस बाहुबली को काबू में किया. ऐसे में हरेक के जेहन में सवाल उठना लाजमी है कि भला इस बाहुबली नेता को किस अधिकारी ने काबू में लिया और इस गंभीर वारदात में आरोपी बनाने की हिम्‍मत जुटाई.

शहाबुद्दीन के घर से मिले थे पाकिस्‍तानी हथियार

एसपी रत्न संजय और डीएम सीके अनिल की संयुक्‍त छापेमारी में शहाबुद्दीन के घर से पाकिस्‍तान में बने हथियार बरामद हुए थे. इतना ही नहीं उसके घर से बरामद एके-47 राइफल पर पाकिस्‍तानी ऑर्डिनेंस फैक्‍ट्री के छाप (मुहर) लगे थे. ये हथियार केवल पाकिस्‍तानी सेना के लिए होते हैं.

इस बाहुबली नेता के घर से अकूत जेवरात और नकदी के अलावा जंगली जानवरों शेर और हिरण के खाल भी बरामद हुए थे. इस छापेमारी के बाद उस वक्‍त के डीजीपी डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन के पाकिस्‍तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ से संबंध होने की बात स्‍वीकारी थी. साथ ही इसे साबित करने के लिए सौ पेज की रिपोर्ट पेश की थी.

शहाबुद्दीन के इस काले कारनामे पर से पर्दा हटाने वाले ओझा का तत्‍कालीन बिहार सरकार ने तुरंत से तबादला कर दिया था. मालूम हो कि 2001 में भी बिहार पुलिस शहाबुद्दीन के गिरेबान तक पहुंचने की कोशिश में उसके प्रतापपुर वाले घर पर छापेमारी की थी, लेकिन अंजाम बेहद दुखद हुआ था.

शहाबुद्दीन के गुर्गों ने बेखौफ होकर पुलिस पर फायरिंग की थी. करीब तीन घंटे तक दोनों तरफ से हुई इस गोलीबारी में तीन पुलिस वाले मारे गए थे. इसके बाद पुलिस को खाली हाथ बैरंग लौटना पड़ा था. इस संगीन वारदात के बाद भी शहाबुद्दीन के खिलाफ कोई मजबूत केस नहीं बनाया गया था.

आंकड़े  साभार – आईबीएन ,जागरण ,फेसबुक ट्विटर व् अन्य .

आप सबकी क्या है राय? चंदा बाबू क्या करें  अपनी प्रतिक्रिया इसमें जोड़ें लिखें  [email protected]  

वरिष्ठ पत्रकार अजीत  अंजुम  जी फेसबुक पर लिखते हैं –

मुझे शहाबुद्दीन की महानता और महत्ता का इल्म नहीं था . अब हो गया है . मैं सार्वजनिक रूप से उनकी अहमियत और हैसियत को स्वीकार करता हूँ ..सलाम करता हूँ …आपकी हाँ में हाँ मिलाकर खुद को आपकी भीड़ में शामिल करता हूँ …शाहबुद्दीन एक महात्मा हैं, जिनपर दर्जनों मुकदमें ठोक दिए गए …सिवान के तीन भाइयों को हवा ने मारा और इस महान नेता को नामजद कर दिया गया …तीन बेटों की मौत पर उस पिता का मानसिक संतुलन बिगड़ गया और वो रहनुमा सरीखे शहाबुद्दीन पर इल्ज़ाम लगा बैठे ..उन्हें इलाज की ज़रूरत है ताकि वो संतुलित होकर एक रहनुमा की रहनुमाई कबूल करें और अपने बेटों के क़त्ल को ऊपर वाले की कारस्तानी मानकर अपना रुदन बंद करें …जेल से रंगदारी और सुपारी के झूठे इल्जाम लगाने वाले लोग आत्मग्लानि के साथ प्रायश्चित करें कि उन्होंने सिवान के महान को बदनाम करने की साजिश रची ,जिसकी वजह से उन्हें 11 साल सलाखों के पीछे काटना पड़ा ….शहाबुद्दीन को बेगुनाह साबित करने के लिए जो गवाह सबकुछ देखकर भी मुकर गए ,उन्हें आत्मज्ञान हुआ कि जो उन्होंने देखा/समझा था ,वो उनकी दृष्टि का दोष था , मृगतृष्णा थी . तभी तो गवाह बनने के अपने गुनाह से प्रायश्चित करने के लिए या तो वो अदालत पहुंचने से पहले गुम हो गए या फिर अपनी भूल को सुधार कर अदालत में आखिरी सच बता दिया कि कैसे शहाबुद्दीन जैसे जनसेवक को फंसा दिया गया.. वो तमाम लोग ,जो उनके खिलाफ लिखते बोलते रहे हैं , भूल सुधार करें …जयकारा जगाएं कि साहब बाहर आए हैं क्योंकि वो देश / काल और परिस्थिति की ज़रूरत हैं ..देखिए न , हजारों लोग जिसके स्वागत में उमड़े हों , सैकड़ों गाड़ियों का काफिला जिसके पीछे हो , इतने तोरण द्वार सजे हों , जिनकी गाड़ियों का सनसनाता क़ाफ़िला देखकर टोल नाकों के गेट अपने आप खुल गए हों …फेसबुक पर इतने पैरोकार हों , उन्हें आप गैंगस्टर और अपराधी कैसे कह सकते हैं …नीतीश सरकार को ये जांच करानी चाहिए कि एक जनसेवक पर 39 मुक़दमें कैसे लाद दिए गए …उन तमाम पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए ,जिनकी जांच की वजह से कई मामलों में उन्हें निचली अदालतों से सजा हुई . उन पुलिस वालों और सरकारी वकीलों का गांधी मैदान में अभिनन्दन होना चाहिए , जिनकी वजह से एक बेकसूर रिहा होकर सैकड़ों गाड़ियों के काफिले के साथ सिवान लौटा है …सिवान के इस रॉक स्टार को कोई गैंगस्टर कैसे कह सकता है

और हाँ , मैं अब से साहेब शहाबुद्दीन से लेकर ऐसे हर उस शख्स की बंदगी करना चाहता हूँ , जिन्हें कानून ने बहुत सताया फिर भी वो बरी होकर बाहर निकले …चाहे तो माननीय सूरजभान हों या रामा सिंह . सुनील पांडेय हों या मुन्ना शुक्ला और तो और आदरणीय अतीक अहमद और मुख़्तार अंसारी से लेकर बृजेश सिंह तक मेरा सलाम पहुंचे . हम जैसे कूढ़मगज और कमजर्फ लोगों ने इन्हें अब तक गलत समझा…जनता तो अपने जनसेवक को पहचानती ही है,तभी तो जेल से रिहा होने के बाद इतने तोरण द्वार सजते हैं , उनके इंतजार में भीड़ की शक्ल में हज़ारों लोग जमा होते हैं .उनकी एक झलक पाने को कोई पेड़ पर चढ़ जाता है तो कोई सेल्फी विथ शहाबुद्दीन के लिए भीड़ में सुराख़ करते हुए उन तक पहुँच जाता है ..कोई उनसे लिपट कर अपने मोबाइल के लैंस की जद में उन्हें खींचकर ले आता है…तो जयकारा लगाकर ही ख़ुश हो लेता है …सेल्फ़ी लेकर ख़ुद को धन्य समझने वाली जनता की नब्ज़ को हम नहीं समझ पाए तो क़सूर हमारा ही है न ?

अपने तीन बेटों के क़त्ल के बाद से मातम मना रहे चंदा बाबू को सिवान के चौक चौराहों पर छाती पीटकर क़बूल करना चाहिए कि उन्होंने साज़िशन शहाबुद्दीन सरीखे जनसेवक पर ग़लत इल्ज़ाम लगाया.उन्हें बदनाम किया …और अगर चंदा बाबू ऐसा न करें तो शहाबुद्दीन को मानहानि का मुक़दमा ठोक देना चाहिए …शहाबुद्दीन की बदनामी के लिए मीडिया के तमाम साथियों को क्या करना चाहिए …ये भी तय होना चाहिए. @fb

 

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