रामचरितमानस पर शिक्षा मंत्री का विवादित बयान से गरमायी राजनीति, चहुओर निंदा




मनु स्मृति, रामचरित मानस और बंच ऑफ थॉट्स नफरत फैलाने वाला

महंत जगतगुरु परमहंस ने शिक्षा मंत्री के जिह्वा काटने पर 10 करोड़ का रखा इनाम

पटना, 13 जनवरी(ओ पी पांडेय).भारत के बहुसंख्यक हिंदुओ की भावनाओ को ध्यान में रखे बिना हिंदूओं के पवित्र और धार्मिक ग्रंथ रामचरितमानस को लेकर बिहार के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर द्वारा की गई टिप्पणी पर विवाद खड़ा हो गया है. विवाद ने इतना तूल पकड़ लिया है कि राज्य ही नही बल्कि पूरा देश शिक्षा मंत्री का बहिष्कार कर उनके इस्तीफे के साथ उन्हें दण्डित करने की भी मांग कर रहा हैं. ट्वीटर पर विवाद के #शिक्षा मंत्री गुरुवार को टॉप ट्रेंडिंग में था.

धर्मग्रंथ पर विवादस्पद बयान के बाद सबसे पहले बिहार विधानसभा के नेता विपक्ष द्वारा जोरदार हमला बोला गया है. विजय कुमार सिन्हा ने कहा है कि, किसी भी राज्य के शिक्षा मंत्री के द्वारा इस तरह की बातें कहना कहीं से भी न्यायसंगत नहीं है.इनको अपने इस बयान के लिए माफ़ी मांगनी चाहिए. उन्होंने कहा कि बिहार के शिक्षा मंत्री पर IPC की धारा 295 A के तहत ऊपर मुकदमा दर्ज होना चाहिए. धर्म निंदा, ईश्वरनिंदा पर भारतीय कानून में सजा का प्रावधान है. जिसमें एक साल से लेकर तीन साल तक करावस की सजा का प्रावधान है. उन्होंने यह भी कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री से चाहिए कि ऐसे लोगों को नीति धर्म का पालन करते हुए मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाएँ. इनके बयान ने देश के करोड़ों हिंदुओं की भावना को आहात किया है.

क्या कहा था बिहार के शिक्षा मंत्री ने

बिहार के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने नालंदा खुला विश्वविद्यालय के 15वें दीक्षांत समारोह में छात्रों को संबोधित करते हुए रामचरितमानस को समाज को बांटने और नफरत फैलाने वाला ग्रंथ बता दिया. इतना ही नहीं उन्होंने बाबा साहेब अंबेडकर का नाम लेकर भी इसका उदाहरण दिया और मनु स्मृति, रामचरितमानस और बंच ऑफ थॉट्स नफरत फैलाने वाला बता दिया. उन्होंने रामचरित मानस के दोहे “अधम जाति में विद्या पाए, भयहु यथा अहि दूध पिलाए,” का हवाला देते हुए यह रामचरित मानस नफरत फैलाने वाला ग्रंथ करार दिया है. शिक्षा मंत्री का तर्क था कि अधम का मतलब होता है ‘नीच’. दुनिया के लोगों सुनो, आपके माध्यम से कहना चाहता हूं कि नीच जाति के लोगों को शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार नहीं था. उसमें कहा गया है कि नीच जाति के लोग शिक्षा ग्रहण करने के बाद जहरीले हो जाते हैं. जैसे कि सांप दूध पीने के बाद हो जाता है.

उन्होंने कहा कि बाबा साहेब अंबेडकर ने भी इन ग्रंथों को नफरत फैलाने वाला बताया था. मैं इसलिए ये बात कहता हूं क्योंकि इसी को बाबा साहेब अंबेडकर ने दुनिया के लोगों को कोट कर के कहा था कि ये जो ग्रंथ है नफरत को बोने वाले, एक युग में मनु स्मृति, दूसरे युग में रामचरितमानस और तीसरे युग में गुरू गोलवलकर के बंच ऑफ थॉट्स. ये तीनों चीजें हमारे देश में नफरत फैलाने का काम करती है. ये इसलिए मैं कह रहा हूं क्योंकि नफरत देश को महान नहीं बनाएगा, जब भी कभी महान बनाएगा, मोहब्बत ही बनाएगा. इतना ही नही 11 जनवरी को दीक्षांत समारोह में उक्त बातें कहने के बाद जब लोगों ने उनसे माफी मांगने की अपील की तो उन्होंने 12 जनवरी को मीडिया में पुनः बयान दिया कि वे अपने कहे बात पर अडिग हैं. वे उस राम की पूजा करते हैं जो सबरी का जूठा बैर खाते हैं, उस राम की पूजा करते हैं, जो केवट को गले लगाते हैं, लेकिन उक्त धर्मग्रंथ को उन्होंने नफरत फैलाने वाला ही करार दिया.

सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारे तक आग बबूला हुए लोग

चहुओर से घिरते देखने के बाद राजद की ओर से प्रवक्ता ने बयान दिया कि रामचरित मानस को लेकर शिक्षा मंत्री का बयान उनका निजी है इससे पार्टी का कोई लेना देना नही है या पार्टी की तरफ से यह बयान नही है. वही इस मुद्दे पर देश के चर्चित युवा कवि व राम कथा वाचक डॉ कुमार विश्वास ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि बड़े दुख की बात है कि एक प्रदेश के शिक्षा मंत्री रामकथा को विद्वेष फैलाने वाला और जहर फैलाने वाला बताएं.

वह भी उस विद्यालय में जो ज्ञान का आदि स्रोत रहा है. हमारे यहां तक्षशिला और नालंदा ज्ञान के पुराने स्रोत रहे हैं और वहां के दीक्षांत समारोह में शिक्षण मत्री द्वारा दिया गया बयान अशोभनीय है. उन्होंने कहा कि देश में सहिष्णुता की हर बार परीक्षा देने वाले हिन्दुओं से यह खिलवाड़ न करें. शिक्षा मंत्री ने जिसप्रकार हिन्दू के धार्मिक ग्रन्थ को लेकर विवादित बयान दिया है यदि किसी अन्य धर्म के गर्न्थो के खिलाफ बोल सकते थे? बोलने के बाद मंत्री छोड़िए उनके बचे रहने की संभावना होती? डॉ विश्वास ने कहा कि राम चरित मानस उन्होंने पढ़ा नही है, मेरी आग्रह है कि वे इसे पहले पढ़े फिर विवेचना करें. डॉ विश्वास में उन्हें आमंत्रण भी दिया कि वे आएं और मुझसे रामकथा पर बात कर लें मेरी कोशिश अपने ज्ञान से उन्हें संतुष्ट करने की होगी. उन्होंने बिहार के नीतिपरक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और युवा उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से आग्रह किया कि वे ऐसे व्यक्ति को अपने मंत्रिमंडल से बाहर करें और उन्हें माफी मांगने के लिए कहें.

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लेकिन मजेदार बात यह है कि बिहार में समाधान यात्रा पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस प्रकरण के बारे में कोई जानकारी नही है. राजद ने तो उक्त बयान को शिक्षा मंत्री का निजी बयान बता अपना पलड़ा झाड़ लिया. बिहार में जातिगत जनगणना चल रही है ऐसे में इस बयान के राजनीतिक मायने देखे जा रहे हैं. आलम यह है कि सोशल मीडिया पर इस बात को लेकर घमासान चल रहा है. लेकिन वे निडर अपने बयान पर अडिग है. सोशल मीडिया पर लोगों ने कहा कि देश मे रहने वाले बहुसंख्यक समाज की सहिष्णुता को बार-बार ऐसे लोगों द्वारा ललकार कर उन्हें बदनाम करने की यह साजिश है. शिक्षा मंत्री के इस वमन गरल के बाद उनके इस्तीफे की तत्काल मांग BJP संसद रविशंकर,गिरिराज सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी समेत कई नेताओं ने की है वही औरंगाबाद पहुँचे नहर के गाद सफाई के लिए पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी से जब इसपर प्रतिक्रिया ली गयी तो उन्होंने जवाब देने की जगह मीडिया पर भड़कते हुए सवाल को हंसुआ के बियाह में खुरपी का गीत करार दिया.

लेकिन सबसे बड़ी बात अयोध्या के महंत जगतगुरु परमहंस ने दिया है. उन्होंने बिहार सरकार से मांग की है कि शिक्षा मंत्री को एक सफ्ताह के भीतर बर्खास्त करे और माफी मांगे. अन्यथा उसके बाद वे उसके बाद शिक्षा मंत्री की जिह्वा काट कर लाने वाले को 10 करोड़ का इनाम देंगे. महंत के इस बयान के बाद भी राजनीति गरमा गई है.

अब कुछ भी हो लेकिन मोहब्बत से समाज को जोड़ने की बात करने वाले शिक्षा मंत्री के बयान ने ऐसा विष उगला है कि मोहब्बत वालों के बीच नफरत का धुंआ देखने को मिल रहा है. अब ये धुँआ विरोध और प्रतिकार के रूप में सोशल मीडिया से सड़कों तक आ जाये तो इसमें कोई शक नही. क्योंकि कई संगठन शिक्षा मंत्री के पुतला दहन का मन बना चुके हैं.

photo curtsey : ANI n social media

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