आहटें फिर से आने लगी हैं- पवन श्रीवास्तव

By pnc Jan 13, 2017

रंगकर्मी, साहित्यकार और समाजसेवी  पवन श्रीवास्तव की लेखनी में वर्तमान की पीड़ा और भविष्य के प्रति सजकता दिखती है उनकी कवितायें हो या ग़ज़ल लोग पसंद करते हैं . वर्तमान में पवन श्रीवास्तव राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन से जुड़े है और आरा में रहते हैं ,जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई है. प्रस्तुत है उनकी दो गज़लें ….

आहटें फिर से आने लगी हैं




-पवन श्रीवास्तव                                                                                                               

आहटें फिर से आने लगी हैं

कोशिशें सुगबुगाने लगी हैं

कोई आवाज़ देने लगा है

चुप्पियाँ गुनगुनाने लगी हैं

कोई हलचल है सागर के तल में

कश्तियाँ डगमगाने लगी हैं

देखना कोई आंधी उठेगी

चींटियाँ घर बनाने लगी हैं

मेरे आवारगी के तज़ुर्बे

पीढ़ियाँ आज़माने लगी हैं

 

मैं ग़ज़ल हो गया

-पवन श्रीवास्तव

 

दिन गुज़रने का मसला तो हल हो गया

तुम कथा हो गई, मैं ग़ज़ल हो गया

मैंने रोज़ी कमाई, न रोज़े रखे

देखते-देखते, ‘आज’, ‘कल’ हो गया

एक पल को ठिठक-सी गई पुतलियाँ

कोई ऐसा मेरे साथ छल हो गया

इसके पहले कि मेरा बयाँ दर्ज़ हो

फैसला भी हुआ और अमल हो गया

पर कतरने की साज़िश चली रात भर

और हवाओं से मैं बेदख़ल हो गया

 

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