पटना,17 जुलाई( ओ पी पाण्डेय). पटना के पारस अस्पताल में गैंगस्टर चंदन मिश्रा की हत्या ने राजधानी के अपराध जगत में सनसनी फैला दी है. लेकिन इस सनसनी के बीच एक वायरल वीडियो—जिसमें चंदन “प्यार से समझावतानी, समझ जाईये नहीं तो रेल दिया जाएगा” गाने के बैकग्राउंड में छत पर टहलते दिख रहा है- ने नया मोड़ दे दिया है.




सोशल मीडिया पर यह वीडियो तेज़ी से वायरल हो रहा है, और इसके साथ ही कई सवाल भी उठ खड़े हुए हैं: क्या सोशल मीडिया ही चंदन की हत्या की वजह बना?

बीमारी से पीड़ित, फिर भी हीरोगिरी जारी

चंदन को फिस्टुला की बीमारी थी। वीडियो में साफ़ दिखता है कि वह चलने में असहज है। वह घर की छत पर टहल रहा है, जहां उसके कुछ साथी भी मौजूद हैं.

अनुमान है कि यह वीडियो खुद चंदन की जानकारी के बिना ही बनाया गया था, लेकिन यह उसके फेसबुक और इंस्टाग्राम पेज पर भी अपलोड किया गया था.

पिछले 12 वर्षों से जेल में बंद चंदन को अदालत से 15 दिन की पेरोल मिली थी. यह मौका उसके लिए खुली हवा में सांस लेने जैसा था, लेकिन यही खुलापन उसके लिए खतरा बन गया.

रील से मिलती रही ‘लोकेशन’

पेरोल पर बाहर आने के बाद चंदन ने पटना एम्स, अपने घर और पारस अस्पताल सहित कई जगहों पर वीडियो शूट कराए. एक वीडियो में वह एम्स के बाहर लाल टीशर्ट में टहलता नजर आता है.

पारस अस्पताल में भी रील शूट किए गए, जिन्हें बाद में डिलीट कर दिया गया.

इन रीलों में सिर्फ चंदन नहीं, बल्कि उसके करीबी भी शामिल थे.कुछ वीडियो में पार्टी करते हुए दिखना, कुछ में धमकाने वाला अंदाज़ और बाकी में उसकी हीरोगिरी…यह सब मिलाकर सोशल मीडिया पर एक नई छवि गढ़ी गई.

लेकिन यही छवि उसके लिए जानलेवा साबित हुई. पुलिस सूत्रों के मुताबिक, ये वायरल रील्स और फोटो लगातार उसकी लोकेशन को सार्वजनिक कर रही थीं, जिससे विरोधी गुटों को उसकी हर हरकत की जानकारी मिलती रही.

सोशल मीडिया बना मौत की वजह?

जानकार मानते हैं कि गैंगवार की दुनिया में ‘लो प्रोफाइल’ रहना ही बचाव है,लेकिन चंदन के करीबी, शायद अनजाने में, उसे बार-बार सोशल मीडिया पर एक्सपोज़ करते रहे. उसकी बढ़ती डिजिटल मौजूदगी ने उसके विरोधियों को निशाना साधने का अवसर दे दिया.

कौन था चंदन?

चंदन मिश्र का नाम पहली बार 2000 के दशक की शुरुआत में सुर्खियों में आया था. 2007 में उसने पहली हत्या की. वह बिहार खासकर बक्सर के आपराधिक जगत में एक उभरता चेहरा बन गया था,

खासकर हत्या, रंगदारी, सुपारी और ज़मीन कब्जा जैसे मामलों में. 2012 में उसकी गिरफ्तारी के बाद वह जेल में था, लेकिन जेल के भीतर से भी उसका नेटवर्क चलता रहा.

पुलिस की नजरबंदी में चूक या मिलीभगत?

बड़ा सवाल यह भी उठता है कि जब चंदन को पुलिस सुरक्षा के साथ पेरोल मिला था, तो वह इतने आराम से वीडियो कैसे बनाता रहा?

क्या इसमें सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मियों की लापरवाही थी या जानबूझकर छूट दी गई?

अब रील पर अफसोस जता रहे दोस्त

चंदन की मौत एक चेतावनी है — न सिर्फ अपराधियों के लिए, बल्कि उनके समर्थकों और सोशल मीडिया को हथियार की तरह इस्तेमाल करने वालों के लिए भी.अपराध की दुनिया में पब्लिसिटी अक्सर मौत की भूमिका निभाती है. ‘रेल दिया जाएगा’ जैसी रील शायद मनोरंजन के लिए बनाई गई हो, लेकिन अब वह हत्या की कहानी की अहम कड़ी बन गई है.जिसे अफसोस के साथ उसके दोस्त भी स्वीकार कर रहे थे.

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