विकास-प्लस-राजनीति दोनों कोणों से चर्चा तेज़
गुरुवार, 17 जुलाई 2025
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घोषणा की है कि 1 अगस्त 2025 से बिहार के पात्र घरेलू उपभोक्ताओं को प्रति माह पहले 125 यूनिट तक बिजली मुफ़्त मिलेगी. सरकार का अनुमान है कि इससे लगभग 1.67 करोड़ परिवारों को सीधा लाभ होगा. इसके समानांतर राज्य ने अगले तीन वर्षों में 10,000 मेगावॉट सौर ऊर्जा क्षमता विकसित करने की मंशा जताई है, जिसमें सबसे गरीब परिवारों के लिए पूर्ण समर्थन (जैसे ‘कुटीर ज्योति’ जैसी लक्षित सहायता) और बाक़ी उपभोक्ताओं के लिए अनुदान/साझा-वित्त पोषण मॉडल पर विचार शामिल है. यह निर्णय बिहार विधानसभा चुनावों से ठीक पहले आया है, जिससे नीति पर विकास-प्लस-राजनीति दोनों कोणों से चर्चा तेज़ है.

125 यूनिट तक मुफ़्त बिजली निम्न-आय तथा छोटे उपभोग वाले परिवारों के ऊर्जा व्यय को उल्लेखनीय रूप से घटा सकती है—विशेषकर ग्रामीण व शहरी ग़रीब जिनका बिजली बिल मासिक आय का बड़ा अंश ले लेता है. हिमाचल प्रदेश में 2022 से शुरू 125-यूनिट मुफ़्त बिजली योजना ने प्रारम्भिक वर्षों में उपभोक्ताओं को राहत दी; बाद में वित्तीय दबाव के चलते आंशिक पुनरीक्षण करना पड़ा, जो यह दिखाता है कि लाभ लोकप्रिय होते हैं पर लागत प्रबंधन जरूरी है.
बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) आँकड़े दर्शाते हैं कि 2015-16 से 2021-22/2022-23 के बीच बिहार में गरीबी में तेज़ गिरावट आई लेकिन स्तर अभी भी ऊँचा है (लगभग 33% के आसपास के आकलन उद्धृत). गरीब परिवारों के लिए यूटिलिटी व्यय में कटौती प्रत्यक्ष सामाजिक सुरक्षा-जैसा प्रभाव दे सकती है.मुफ़्त बिजली सब्सिडी, यदि उपभोग ऊपरी स्लैब में सीमित न हुई, तो वार्षिक सब्सिडी बोझ तेज़ी से बढ़ा सकती है—अन्य राज्यों के अनुभव चेतावनी देते हैं. पंजाब में 300-यूनिट मुफ़्त बिजली व अन्य सब्सिडियों ने राजस्व दबाव व ऊँचे ऋण-जीएसडीपी अनुपात को बढ़ाया; केंद्रीय ऊर्जा मंत्री ने भी चेतावनी दी थी कि उधार लेकर मुफ़्त बिजली देना राज्यों को ऋण-जाल में धकेल सकता है.
बिहार बजट 2025-26 (PRS विश्लेषण) और बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 संकेत देते हैं कि राज्य का व्यय आकार बड़ा है, राजस्व पर केंद्र-निर्भरता ऊँची है, तथा 2024-25 संशोधित अनुमानों में राजकोषीय घाटा जीएसडीपी के ~9% तक उछला (अनुमानित). कुल व्यय 2023-24 में ~₹2.52 लाख करोड़ रहा और 2024-25 में बढ़ने का अनुमान है; अत: अतिरिक्त सब्सिडी के लिए सुव्यवस्थित वित्तीय स्रोत की आवश्यकता होगी ताकि घाटा नियंत्रण में रहे.आर्थिक निष्कर्ष: परिवारों को तात्कालिक राहत मिल सकती है, पर राज्य को चरणबद्ध रोलआउट, उपभोग कैप, लक्ष्य-आधारित सब्सिडी, तथा केंद्र/कार्बन-फंडिंग/आरईसी राजस्व जैसे वित्तीय बैकस्टॉप ढूँढने होंगे ताकि दीर्घकालिक बोझ असंतुलित न हो.

घोषणा में सबसे गरीब परिवारों (उदाहरणतः ‘कुटीर ज्योति’ जैसे लक्षित कार्यक्रमों की तर्ज़ पर) के लिए पूर्ण वित्तपोषण/सोलर इंस्टॉलेशन सहायता का संकेत है, जबकि अन्य श्रेणियों को आंशिक सहायता दी जा सकती है—यह स्तरीकृत मॉडल सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है.बिहार में बिजली कनेक्शन का विस्तार हुआ है, पर विश्वसनीय आपूर्ति व गुणवत्ता चुनौती बनी रही; राज्य की ऊर्जा जरूरतों में बड़े पैमाने पर केंद्रीय उत्पादकों (NTPC आदि) पर निर्भरता रही है—जिससे वितरण लागत व असमान आपूर्ति पैटर्न उत्पन्न होते हैं. पिछली रिपोर्टें बताती हैं कि राज्य ने अपने तापीय संयंत्रों को NTPC को स्थानांतरित किया और वितरण कंपनियों की बिजली खरीद का बड़ा हिस्सा केंद्रीय आवंटनों से आता है. सामाजिक निष्कर्ष: यदि योजना में स्मार्ट-मीटर आधारित सत्यापन, लक्षित सब्सिडी और ग्रामीण सौर मिनी-ग्रिड/रूफ़टॉप विकल्प जुड़ते हैं तो यह ग्रामीण गरीबों की जीवन-गुणवत्ता व उत्पादक उपयोग (पानी पम्प, सूक्ष्म-उद्यम) को बढ़ा सकती है.
राज्य का 10 GW सौर लक्ष्य, यदि तीन वर्षों में आंशिक रूप से भी प्राप्त हुआ, तो आयातित/केंद्रीय थर्मल पर निर्भरता घटेगी, वितरण नुक़सान कम करने हेतु स्थानीय उत्पादन बढ़ेगा और कार्बन फुटप्रिंट घटेगा. घोषणा में यह स्पष्ट कहा गया कि अगले तीन वर्षों में वैकल्पिक स्रोत (मुख्यतः सौर) से 10,000 मेगावॉट क्षमता लाई जाएगी.
रिपोर्टें बताती हैं कि बिहार में बड़े नवीकरणीय प्रोजेक्ट्स को भूमि उपलब्धता बाधित करती है; रूफ़टॉप, फ्लोटिंग या विकेन्द्रित सौर विकल्प अधिक व्यवहार्य हो सकते हैं. राज्य की नवीकरणीय प्रगति लक्ष्यों से पीछे रही है (2023 तक ~415 MW बनाम कहीं अधिक लक्षित क्षमता), जो दर्शाता है कि आकांक्षा व निष्पादन में अंतर है—पर यही अंतर अब नए लक्ष्य को प्रेरित भी करता है. बिहार की मुख्यमन्त्री ग्रामीण सौर स्ट्रीट लाइट योजना समय पर लक्ष्य हासिल नहीं कर सकी; भुगतान, गुणवत्ता व स्थानीय स्वीकृति की चुनौतियों ने प्रगति धीमी की. यह बड़े पैमाने की किसी भी नवीकरणीय पहल (जैसे 10 GW) के लिए महत्त्वपूर्ण सबक है—ठोस कार्यान्वयन ढाँचा, गुणवत्ता निगरानी लैब, अग्रिम भुगतान तंत्र आदि आवश्यक होंगे. पर्यावरण/ऊर्जा निष्कर्ष: लक्ष्य महत्वाकांक्षी पर दिशात्मक रूप से सकारात्मक है; सफल होने के लिए रूफ़टॉप/विकेन्द्रित मॉडल, भंडारण (BESS) व ग्रिड-अपग्रेड निवेश की आवश्यकता होगी.
घोषणा विधानसभा चुनावों से पहले आई है; मुफ़्त बिजली जैसी लोक-कल्याणकारी योजनाएँ मतदाताओं को प्रभावित करती रही हैं ,सब्सिडी बिल समय के साथ तेज़ी से बढ़ा, यद्यपि प्रारंभिक चरण में यह बजट पर बहुत अधिक बोझ नहीं था. अन्य रिपोर्टों के अनुसार राज्य की विपक्षी पार्टियों (जैसे आरजेडी) ने भी मुफ़्त बिजली वादे किए थे; नीतीश सरकार की घोषणा को “पोल पावर प्ले” के रूप में देखा जा रहा है. यह कदम राजनीतिक रूप से समर्थन समेकित कर सकता है, बशर्ते क्रियान्वयन विश्वसनीय हो.
नीतिगत पलट (policy flip-flop) का जोखिम रहता है; अन्य राज्यों में वित्तीय दबाव से योजनाओं में कटौती (जैसे हिमाचल में संशोधन) हुआ है—यदि बिहार में भी राजस्व दबाव बढ़ा तो सीमा, लक्ष्य-समूह या दर संरचना बदली जा सकती है, जिससे भरोसा प्रभावित होगा. बिहार ने हालिया क्षेत्रीय ऊर्जा बैठक में स्काडा आधारित निगरानी, बड़े पैमाने बैटरी ऊर्जा भंडारण, तथा अतिरिक्त केंद्रीय आवंटन की माँग उठाई—यह दर्शाता है कि राज्य को वितरण-ग्रिड उन्नयन व भंडारण में निवेश चाहिए ताकि मुफ़्त सप्लाई व सौर एकीकरण व्यावहारिक हो.
अल्पकालिक रूप से, यह कदम लोकप्रिय और समावेशी दोनों दिख सकता है—ऊर्जा गरीबी झेल रहे परिवारों को वास्तविक राहत देगा, यदि क्रियान्वयन समय पर हुआ. मध्यम अवधि में वित्तीय अनुशासन की परीक्षा होगी; सब्सिडी बिल नियंत्रण से बाहर गया तो राज्य की विकास व्यय क्षमता सिमट सकती है (अन्य राज्यों और केंद्र की चेतावनियाँ सीख देती हैं). दीर्घकालिक सफलता काफी हद तक 10 GW सौर (विशेषकर रूफ़टॉप/विकेन्द्रित मॉडल) को ठोस आधार पर खड़ा करने, ग्रिड उन्नयन, और पारदर्शी लक्ष्यीकरण पर निर्भर करेगी. शुभ संकेत यह है कि राज्य ने सौर प्रचार, गरीब-केंद्रित सहायता और ग्रिड-आधुनिकीकरण के मुद्दे एक साथ उठाए हैं. यदि ये घटक समन्वित होकर चलते हैं तो पहल बिहार को ऊर्जा-सुरक्षा, हरित विकास और सामाजिक न्याय के नए चरण में पहुँचा सकती है.
