आरoटीoआईo – हत्यारा या सुरक्षित कानून

By Nikhil Apr 5, 2018
पटना (अनुभव सिन्हा)। सूचना का अधिकार कानून वर्ष 2005 में लागू किया गया. इस कानून के जरिए भ्रष्ट व्यवस्था के कई मामले सामने लाए गए लेकिन ऐसी संवेदनशील जानकारियों को सामने लाने वालों के लिए आजतक सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं की जा सकी है. बुधवार को गोरौल में एक चाय की दुकान पर आरटीआई कार्यकर्ता कुमार जयंत की हत्या इसीका नतीजा है.
  कुमार जयंत की मां श्रीमती सावित्री देवी पंचायत समिति सदस्य हैं. कुमार जयंत की पहचान एक सक्रिय आरटीआई कार्यकर्ता के रूप में थी और उनकी हत्या से लोगों में काफी नाराजगी है. लेकिन वैशाली के पुलिस अधीक्षक राकेश कुमार ने  उनके आरटीआई कार्यकर्ता होने की जानकारी से इंकार किया है. वैशाली एसपी के अनुसार कुमार जयंत अपराध के आठ मामले में नामजद थे और उन्हें तीन बार जेल भेजा गया. वैशाली एसपी ने बताया कि कुमार जयंत को जिलाबदर करने का भी प्रस्ताव था.
कुमार जयंत

एसपी राकेश कुमार के इस वक्तव्य से भी लोगों में नाराजगी है. लोगों की नजर में एक आरटीआई कार्यकर्ता को सुरक्षा देने का कोई प्रावधान नहीं होने के कारण रसूखदारों के दबाव में पुलिस ने उनकी छवि को आपराधिक बनाने की कोशिश की है. कुमार जयंत ग्रामीण इलाकों में भ्रष्टाचार के मामलों को आरटीआई के जरिए प्रमुखता से उजागर करते रहे थे और इसलिए कई सफेदपोशों की निगाह में भी थे.

   बहरहाल, 2005 में सूचना का अधिकार कानून लागू होने के बाद बिहार में अबतक छह आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है. काॅमनवेल्थ ह्यूमन राईट्स इनिशिएटिव्स के ट्रैकर  attacksonrtiusers.org  में इसकी जानकारी दी गई है.
   खबरी लाल के नाम से मशहूर हो चुके 35 वर्षीय शशिधर मिश्रा के रूप में किसी आरटीआई कार्यकर्ता की पहली हत्या 14 फरवरी 2010 को हुई थी. इस कानून के अस्तित्व में आने के पांच वर्षों के दौरान उन्होंने 1000 से ज्यादा जानकारियां मांगी थीं जिनमें अधिकांश पंचायतों एवं जिला स्तरीय अधिकारियों के भ्रष्टाचार से जुड़ी थीं. आरटीआई कार्यकर्ताओं की सक्रियता ग्रामीण अंचलों में ज्यादा रही है. छह आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या से यह तथ्य भी सामने आता है कि ग्रामीण स्तर पर विद्यमान भ्रष्टाचार को समाप्त करने में राज्य सरकार ने कभी दिलचस्पी नहीं दिखाई जिसके कारण राज्य के ग्रामीण अंचल अवरूद्ध विकास के प्रमाण बने हुए हैं.
    यह बेहद दिलचस्प है कि आरटीआई कार्यकर्ताओं के बारे में राज्य सरकार ने अपनी प्राथमिकता नहीं बताई है लेकिन प्रशासनिक स्तर पर इन्हें किस नजर से देखा जाता है उसके उदाहरण हैं कुमार जयंत. वर्ष 2013 में उन्हें मुजफ्फरपुर पुलिस ने गिरफ्तार किया और शहर में उन्हें घुमाया. उनके सीने और पीठ पर तख्तियां लगी हुई थीं जिनपर लिखा था कि, “महिलाओं से छेड़खानी करना मेरी आदत है”. हालांकि पुलिस ने जब अदालत में पेश किया तब उन्हें जमानत मिल गई।




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