पूरे दिन है कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

पटना, 22 मार्च. नवरात्र मातृशक्ति की आराधना का सबसे महत्त्पूर्ण अनुष्ठान होता है. जिसमें माँ जगदम्बे के नौ स्वरूपों की नौ दिनों तक विधि-विधान से पूजा की जाती है. नौ दिनों की अवधि को नवरात्र कहा जाता है और नवरात्र में भक्त जगत जननी की भक्ति में लीन रहते हैं.

सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार वर्ष भर में 4 नवरात्र होते हैं. जिनमें दो उदय नवरात्र जबकि दो गुप्त नवरात्र होते हैं. उदय नवरात्र में से एक चैत्र नवरात्र के साथ नव संवत्सर की शुरुआत होती है. 22 मार्च, दिन बुधवार से मातृशक्ति की आराधना का महान पर्व चैत्र नवरात्र शुरू हो रहा है. नवरात्र के दौरान शक्ति के 9 स्वरूपों की उपासना की जाती है.




प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी
तृतीयं चंद्रघंटेति कूष्मांडेति चतुर्थकम्
पंचमं स्कंदमातेति षष्ठं कात्यायनीति च
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमं
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिताः

यानि शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता
कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री माँ के इन नौ स्वरूपों की पूजा-आराधना होती है

तो चलिए जान लेते हैं कि इस बार शारदीय नवरात्र का अनुष्ठान कैसे करें :

ब्रह्मपुर के बाबा ब्रह्मेश्वर नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी उमलेश पाण्डेय बताते हैं कि नवरात्र के पहले दिन विधि-विधान से कलश स्थापना करनी चाहिए. श्री संवत 2080 राजा बुध, मंत्री शुक्र है और कलश स्थापना सुबह से रात्रि तक एकम में नल नाम संवत्सर है.

मुख्य पुजारी(बाबा ब्रह्मेश्वर नाथ मन्दिर, ब्रह्मपुर)

कलश स्थापना से पहले गणेश और गौरी की षोडशोपचार पूजा करें. फिर कलश-स्थापना कर वरुण आदि देवताओं सहित सभी तीर्थों और पवित्र नदियों का आवाहन करें. कलश के पूजन के बाद षोडशमातृका और नवग्रह पूजन करें और फिर माँ जगदम्बा की पूजा-आराधना कर नवरात्र का अनुष्ठान प्रारंभ करें.


22 मार्च, बुधवार को विधिवत कलश-स्थापना कर नौ दिनों तक माँ की पूजा-आराधना करें और नवरात्र के अंतिम दिन हवन के बाद कन्याओं और ब्राह्मणों को भोजन कराकर अनुष्ठान का समापन करें.


इस बार 29 मार्च, दिन बुधवार को महाष्टमी है जबकि 30 मार्च को महानवमी है, उस दिन ही हवन संपन्न होगा और नवरात्र का अनुष्ठान संपन्न होगा.

नवरात्र में दुर्गा सप्तशती के पाठ का विशेष महत्त्व बतलाया गया है.तो आप भी इस चैत्र नवरात्र में आस्था और श्रद्धा के साथ माँ की आराधना करें और माँ की कृपा प्राप्त करें.

Related Post