क्यों खास है असम का कामाख्या मंदिर

By Amit Verma Apr 5, 2017

नवरात्र का जिक्र हो और माँ भगवती की बात न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता है. चैत्र मास में होने वाली नवरात्रि में माँ भगवती के काली रूप की पूजा की जाती है. यह पूजा हिन्दू धर्म को मानने वाले प्रातः सभी घरों में की जाती है. चलिए इस बार हम पुरे देश में मनाये जाने वाले नवरात्रि पूजा की विशेष अनुष्ठान और सिद्धि के साथ पूरे ब्रह्मांड का केंद्र माने जाने वाले माँ भगवती के एक रूप का दर्शन करने ले चल रहे हैं आदिकाल से प्रसिद्ध तंत्र-पीठ कामख्या-मंदिर.




  

प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध पूर्वोत्तर राज्य जो अपने बेहद खूबसूरत और अपनी एक अलग संस्कृति लिए जाने जाते हैं. पूर्वोत्तर भारत का प्रवेश द्वार कहा जाने वाला गुवाहाटी असम का सबसे बड़ा शहर है. ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे पर स्थित यह शहर प्राकृतिक सुंदरता से ओत-प्रोत है. यहां पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र की विविधता साफ तौर पर देखी जा सकती है. संस्कृति, व्यवसाय और धार्मिक गतिविधियों का केन्द्र होने के कारण आप यहां विभिन्न नस्लों, धर्म और क्षेत्र के लोगों को एक साथ रहते देखा जा सकता हैं. यूं तो इस शहर में घूमने और देखने के लिए बहुत कुछ है. शहर पर्यटन स्थलों से भरा पड़ा है लेकिन यदि आपने यहां का रहस्यमय कामाख्या मंदिर नहीं देखा और उसके दर्शन नहीं किये तो समझ लीजिये आपकी यात्रा अधूरी है. भारत के 12 बेहद रहस्यमय मंदिरों में कामाख्या मंदिर गुवाहाटी का मुख्य धार्मिक अट्रैक्शन है.

कामाख्या मंदिर असम के गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से लगभग 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है. देवी कामाख्या का यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है जो सबसे पुराना शक्तिपीठ है. पौराणिक मान्यता है कि जब सती के पिता दक्ष ने अपनी पुत्री सती और उसके पति शंकर को यज्ञ में बिना बुलाये जाने पर अपमानित किया और भगवान् शिव को अपशब्द कहा, तो सती ने दुःखी हो कर आत्म-दहन कर लिया. सती के इस आत्म-दहन के पश्चात भगवान शिव ने सती के मॄत-देह को उठा कर संहारक नृत्य किया. जिसके बाद सती के शरीर के 51 हिस्से अलग-अलग जगह पर गिरे जो 51 शक्ति पीठ कहलाये. कहा जाता है सती का योनिभाग कामाख्या में गिरा. उसी स्थल पर कामाख्या मन्दिर का निर्माण किया गया. मंदिर के गर्भ-गृह में योनि के आकार का एक कुंड है जिसमे से जल निकलता रहता है. यह योनि कुंड कहलाता है. यह योनि कुंड लाल कपडे व फूलो से ढका रहता है.

तांत्रिक और औघोरियों का है सिद्धि स्थल

कामाख्या मंदिर तंत्र साधना का एक प्रमुख स्थल है. इस तंत्र साधना के लिए साधक और देश-विदेश के तंत्र रिसर्चर यहाँ आकर महीनो साधना करते हैं. इस मंदिर में प्रतिवर्ष अम्बुबाची मेले का आयोजन किया जाता है. इसमें देश भर के तांत्रिक और अघौरी हिस्सा लेते हैं. ऐसा मान्यता है कि ‘अम्बुबाची मेले’ के दौरान मां कामाख्या रजस्वला होती हैं, और इन तीन दिन में योनि कुंड से जल प्रवाह कि जगह रक्त-प्रवाह होता है . अम्बुबाची मेले को कामरूपों का कुंभ भी कहा जाता है.

कई विशेष पूजा होती है माँ कामाख्या की

वैसे तो भक्तों द्वारा माँ की रोजाना पूजा होती है लेकिन मां कामाख्या देवी की इसके अतिरिक्त भी साल में कई बार कुछ विशेष पूजा की जाती है. विशेष पूजन में पोहन बिया, दुर्गाडियूल, वसंती पूजा, मडानडियूल, अम्बूवाकी और मनसा दुर्गा पूजा प्रमुख हैं.

दुर्गा पूजा:
हर साल सितम्बर-अक्टूबर के महीने में नवरात्रि के दौरान इस पूजा का आयोजन किया जाता है.
अम्बुबाची पूजा:
ऐसी मान्यता है कि अम्बुबाची पर्व के दौरान माँ कामाख्या रजस्वला होती है. इस दौरान तीन दिन तक मंदिर बंद कर दिया जाता है. चौथे दिन जब मंदिर खुलता है तो इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है.

पोहन बिया:
पूस मास के दौरान भगवान कमेश्वर और कामेश्वरी की प्रतीकात्मक शादी के रूप में यह पूजा की जाती है.

दुर्गाडियूल पूजा: यह पूजा फाल्गुन के महीने में कामाख्या मंदिर में की जाती है.

वसंती पूजा:
यह पूजा चैत्र के महीने में कामाख्या मंदिर में आयोजित की जाती है.

मडानडियूल पूजा:
चैत्र महीने में भगवान कामदेव और कामेश्वरा के लिए यह विशेष पूजा की जाती है.

कामाख्या से जुडी किंवदंती

कामाख्या के शोधार्थी एवं प्राच्य विद्या विशेषज्ञ डॉ. दिवाकर शर्मा कहते हैं कि कामाख्या के बारे में किंवदंती है कि घमंड में चूर असुरराज नरकासुर एक दिन मां भगवती कामाख्या को अपनी पत्नी के रूप में पाने का दुराग्रह कर बैठा था. कामाख्या महामाया ने नरकासुर की मृत्यु को निकट मानकर उससे कहा कि यदि तुम इसी रात में नील पर्वत पर चारों तरफ पत्थरों के चार सोपान पथों का निर्माण कर दो एवं कामाख्या मंदिर के साथ एक विश्राम-गृह बनवा दो, तो मैं तुम्हारी इच्छानुसार पत्नी बन जाऊँगी और यदि तुम ऐसा न कर पाये तो तुम्हारी मौत निश्चित है.


गर्व में चूर असुर ने पथों के चारों सोपान प्रभात होने से पूर्व पूर्ण कर दिये और विश्राम कक्ष का निर्माण कर ही रहा था कि महामाया के एक मायावी कुक्कुट (मुर्गे) द्वारा रात्रि समाप्ति की सूचना दी गयी, जिससे नरकासुर ने क्रोधित होकर मुर्गे का पीछा किया और ब्रह्मपुत्र के दूसरे छोर पर जाकर उसका वध कर डाला. यह स्थान आज भी `कुक्टाचकि’ के नाम से विख्यात है. बाद में मां भगवती की माया से भगवान विष्णु ने नरकासुर असुर का वध कर दिया.
कामाख्या के दर्शन से पूर्व महाभैरव उमानंद, जो कि गुवाहाटी शहर के निकट ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य भाग में टापू के ऊपर स्थित है, का दर्शन करना आवश्यक है. इस टापू को मध्यांचल पर्वत के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहीं पर समाधिस्थ सदाशिव को कामदेव ने कामबाण मारकर आहत किया था और समाधि से जाग्रत होने पर सदाशिव ने उसे भस्म कर दिया था.
इस पुरे मंदिर परिसर में कामाख्या देवी के मुख्य मंदिर के अलावा और भी कई मंदिर है इनमे से अधिकतर मंदिर देवी के विभिन्न स्वरूपों के है. पांच मंदिर भगवान शिव के और तीन मंदिर भगवान विष्णु के है. यह मंदिर कई बार टुटा और बना है. इसे 16वीं सदी में नष्ट किया गया था जिसका पुनः निर्माण 17 वी सदी में राजा नर नारायण द्वारा किया गया.

इस मंदिर न सिर्फ साधक बल्कि राजनीतिज्ञ और देश के जाने माने शख्सियतें भी कामाख्या माँ के लिए दर्शन करने आते है. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नवरात्रि उपवास के दौरान इस मंदिर का दर्शन कर चुके हैं.

कामाख्या मंदिर की कुछ खास बातें

  • देवी की कोई तस्वीर या मूर्ति गर्भ-गृह में नहीं है बल्कि गर्भगृह में सिर्फ योनि के आकार का है पत्थर.
  • तांत्रिक सिद्धि के लिए है ये बेहतरीन स्थान माना जाता है.
  • 51 शक्तिपीठों में एक है यह
  • मां भगवती के योनि रूप का है ये अनूठा मंदिर.
  • दुनियाभर के तांत्रिकों का है ये पूज्य स्थान
  • देवी की महामुद्रा कहलाता है योनि रूप
  • पूरे ब्रह्मांड का केंद्र बिंदु माना जाता है यह मंदिर
  • हर माह तीन दिनों के लिए बंद होता है मंदिर
  • दस महाविद्या, काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला की पूजा भी कामाख्या मंदिर परिसर में की जाती है.
  • यहां बलि चढ़ाने की भी प्रथा है. इसके लिए मछली, बकरी, कबूतर और भैंसों के साथ ही लौकी, कद्दू जैसे फल वाली सब्जियों की बलि भी दी जाती है.
  • पूस के महीने में यहां भगवान कामेश्वर और देवी कामेश्वरी के बीच प्रतीकात्मक शादी के रूप में पूजा की जाती है.
  • मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा जमीन से लगभग 20 फीट नीचे एक गुफा में स्थित है.

    कामाख्या मंदिर के मुख्य पुजारी काली बाबा उर्फ़ कृष्णकांत पाण्डेय के अनुसार पूरे वर्ष में 4 नवरात्र होते हैं. सनातन धर्म के इन नवरात्रों के दौरान मातृ-शक्ति की उपासना के लिए लोगों की यहाँ भारी भीड़ होती है. ऐसा मानना है कि इन नवरात्रों में मातृ-उपासना से देवी भक्त पर प्रसन्न हो उन्हें मनचाहा वरदान देती हैं.

कामाख्या मंदिर से ओ पी पाण्डेय के साथ मंगेलश तिवारी

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