अपनी कहो, कुछ मेरी सुनो-हिमांशु शेखर

अपनी कहो, कुछ मेरी सुनो

सुधि पाठकों, शुभ हो . आज का दिन आपके लिए अच्छी यादगार बने, आपको असीम ऊर्जा दे . नये विचार दे,. सेहत अच्छी रखे. शारीरिक-मानसिक शक्ति दे, प्रकृति से आपका नाता सलामत रहे.सुख- शांति- समृद्धि आपके घर-आंगन में सदा बनी रहे. आपका ‘गुलदस्ता’ आपके ईद-गिर्द खुशबू फैलाये, जिसमें सराबोर हो आप हर पल, हर क्षण निखरते चले जाएं. कामयाबी के रास्ते पर बढ़ते आपके कदम कभी लड़खड़ाये नहीं। आपकी आन बान-शान चौबीसों घंटे सलामत रहे,




आपसे संवाद शुरू करने के लिए एक ‘स्तम्भ ‘ शुरू करने का जब मैने विचार किया तो इसके नामकरण के लिए बहुत सोचा, मनन किया और तब जाकर ‘अंगना: हमारी-तुम्हारी कहानियां’ नाम रखने का आइडिया आया. मैंने , तत्क्षण इस नाम पर मुहर लगा दी. मेरा यह फैसला कितना उचित है, यह मैं आप ही पर छोड़ता हूँ. मेरा तो इस बारे में यही कहना है कि आज की ‘डिजिटल’ होती जा रही हमारी जीवन शैली के साथ ‘अंगना’ शब्द का कौंधना, उसे महसूस करना हमें गुजरे जमाने की उन खट्टी-मीठी यादों से जोड़ सुहाना कर देगा, जो पल कभी हमारी जिंदगी का हिस्सा थे. यूं कहें कि ‘अंगना’ के बगैर हमारा जीवन अधूरा रहता. अपनी परंपरा, रीति-रिवाज से दूर होते जाते और फिर हम कहीं के ना होते. ऐसे में ”अंगना: हमारी तुम्हारी कहानियाँ स्तंभ ना सिर्फ गुजरे दौर के ‘गौरव’ से हमारी सांठ-गांठ बढ़ायेगा, बल्कि हमारी आज की महानगरीय सभ्यता-संस्कृति के संग हमारे जीने की विवशता नयी शक्ल पाएगी.  नयी राह, नयी दिशा से नया आयाम ग्रहण करेगी. ‘अंगना’ की अनुभूति हमें सदा आनंद से तृप्त करती रहेगी…. यही मेरा विश्वास है.

आज की सुबह क्यों ना चाय की ‘चुस्की’ लेते हुये दिवंगत सुर साम्राज्ञी, बुलबुले हिन्द, कोकिल कंठ -लता मंगेशकर की बात की जाए, उन्हें याद कर, उनको नमन कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाए. लता दी अब हमारे बीच नहीं रहीं, मगर उनके कोकिल कंठ से गाये अनगिनत सदाबहार मधुर गाने सुनते हुए हम हमेशा सुकून पाते रहेंगे. लता दी को हम वाकई कभी भुला नहीं पाएंगे. जब कभी भी सुनेंगे उनके गीत, संग संग हम भी गुनगुनायेंगे. हां, हम उन्हें कभी भुला ना पायेंगे . दोस्तों, लता मंगेशकर को याद करते हुये उनके गाये दो युगल गीत का मैं जिक्र कर रहा हूं जिन्हें मैं अक्सर उनके जीते जी भी गुनगुनाया करता रहा और अनंत सफर पर उनके चले जाने के बाद आज भी गुनगुना रहा हूँ…. उन्हें नमन कर रहा हूं. पहला युगल गीत पार्श्व गायक तलत महमूद के साथ गाया संगीतकार सी. रामचन्द्र ( चितेलकर रामचंद्र )की कम्पोजिंग में ढली पुरानी फिल्म ‘परछाई’ का है.

बहुत-बहुत प्यारे और मधुर इस गीत के बोल है…’ अपनी कहो, कुछ मेरी सुनो, क्या दिल का लगाना भूल गये.. क्या भूल गये, रोने की आदत ऐसी पड़ी हंसने का तराना भूल गये, हां भूल गए….. दूसरा युगल गीत पार्श्व गायक मोहम्मद रफी के साथ गाया फिल्म शोला और शबनम का है। संगीतकार खय्याम की कम्पोजिंग में बने इस मेलोडियस सांग के बोल है..’जीत ही लेंगे बाजी हम-तुम, खेल अधूरा छूटे ना, प्यार का बंधन, जनम का बंधन, जनम का बंधन छूटे ना, प्यार का बंधन टूटे ना …’ पहले युगल गीत “अपनी कहो, कुछ मेरी सुनो’ में तीन अंतरा हैं , जबकि दूसरे युगल गीत ‘जीत ही लेंगे बाजी हम-तुम में सिर्फ दो ही अंतरा हैं . मैं इन दोनों गीतों के अंतरा पेश कर रहा हूं जो आपको उनकी याद दिलायेंगे, मधुर स्मृतियों को तरोताजा कर देंगे. आपने इन्हें ना भी सुना हो तो भी आपको यकीनन अच्छे लगेंगे….प्रेरणा देंगे.

 ‘अपनी कहो, कुछ मेरी सुनो ? गीत का पहला अंतरा है … काली रातें बीत गईं फिर चांदनी रातें आयी हैं, फिर चांदनी रातें आयी है, दिल में नहीं उजियारा मेरे, गम की घटायें छायी है, गम की घटायें छायी है, प्रीत के वादे याद करो, क्या प्रीत निभाना भूल गये, क्या भूल गये. दूसरा अंतरा है  ‘भूला हुआ है राह मुसाफिर बिछड़ा हुआ है मंजिल से, बिछड़ा हुआ है मंजिल से, खोये हुए रस्ते का पता तुम पूछ लो खुद अपने दिल से, तुम पूछ लो खुद अपने दिल से… चलते-चलते इतना थके मंजिल का ठिकाना भूल गये, हां भूल गये. तीसरा अंतरा है … नजदीक बढ़ो, नजदीक बढ़ो ये मौसम नहीं फिर आने का, ये मौसम नहीं फिर आने का .. नजदीक शमा के जाने से क्या हाल हुआ परवाने का, क्या हाल हुआ परवाने का…. मिटने का फसाना याद रहा, जलने का फसाना भूल गये, क्या भूल गये .. अपनी कहो कुछ मेरी सुनो, क्या दिल का लगाना भूल गये क्या भूल गये.

दूसरे युगल गीत ‘जीत ही लेंगे बाजी हम-तुम’ का पहला अंतरा है… मिलता है जहां धरती से गगन, आओ वहीं हम जाएं। तू मेरे लिए मैं तेरे लिए, तू मेरे लिए मैं तेरे लिए इस दुनिया को ठुकरायें, इस दुनिया को ठुकरायें, दूर बसा लें दिल की जन्नत, जिसको जमाना लूटे ना ,प्यार का बंधन, जनम का बंधन, जनम का बंधन छूटे ना, प्यार का बंधन टूटे ना. दूसरा अंतरा है, मिलने’ की खुशी, ‘ना मिलने’ का गम, खत्म ये झगड़े हो जायें, मैं मैं ना रहूँ, तू-तू ना रहे, मैं मैं ना रहूँ, तू – तू ना रहें, एक-दूजे में खो जायें, एक दूजे में खो जायें, मैं भी ना छोडूं पल भर दामन, तू भी मुझसे रूठे ना,प्यार का बंधन जनम का बंधन, जनम का बंधन छूटे ना,प्यार का बंधन टूटे ना… जीत ही लेंगे बाजी हम- तुम, खेल अधूरा छूटे ना.

दोस्तों आज आज की बातें,मुलाक़ात बस इतनी कर लेना बातें कल चाहे जितनी ….

हिमांशु शेखर

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