हिंदी साहित्‍य के मूर्धन्‍य विद्वान डॉ राम विनोद सिंह के निधन पर शोक

By pnc Jan 4, 2017
हिंदी साहित्य की  ख़ास कर उपन्यासालोचन की बहुत बड़ी क्षति-डॉ नीरज सिंह 
हिंदी साहित्‍य के मूर्धन्‍य विद्वान व पूर्व कुलपति डॉ राम विनोद सिंह के निधन पर बिहार के साहित्यकारों ने  शोक व्‍यक्‍त किया हैं.  डॉ राम विनोद सिंह  की आकस्‍मिक मृत्‍य समाज और साहित्‍य के लिए अपूरणीय क्षति है.डॉ सिंह  ने हिंदी और हिंदी साहित्‍य को समृद्ध करने के लिए ताउम्र संघर्ष करते रहे. वे जय प्रकाश नारायण विश्‍वविद्यालय, छपरा और बी एन मंडल विश्‍वविद्यालय मधेपुरा के कुलपति रहे. इसके पूर्व वे मगध विश्‍वविद्यालय बोध गया में हिंदी विभाग के विभागाध्‍यक्ष के अलावा कई सम्‍मानित पद पर रहे. आज भी उनकी रचनाएं समाज के लिए प्रासंगिक हैं. डॉ नीरज सिंह ने उनके साथ बिताए पल को कुछ यूँ बयां करते हैं .रामविनोद बाबू अपने विषय के बहुत बड़े विद्वान थे . आलोचना के क्षेत्र में , खासकर स्वातंत्र्योत्तर उपन्यासालोचन के क्षेत्र में उन्होंने अपनी एक विशिष्ट पहचान स्थापित की थी . उन्होंने आठवें और नवे दशक में प्रकाशित लगभग सभी उपन्यासों को पढ़ा था और उन पर बहुत सार्थक सटीक समीक्षात्मक लेखन किया था . वे आचार्य नलिन विलोचन शर्मा और प्रो केसरी कुमार के शिष्य थे . वे बहुत तन्मयता के साथ कक्षा में गोदान पढ़ाते थे और अपने छात्रों को मंत्रमुग्ध कर देते थे . पाश्चात्य आलोचना और साकेत का अध्यापन भी वे इतने ही प्रभावशाली ढंग से करते थे.

मुझे एम.ए में डा सिंह से पढ़ने का सौभाग्य मिला था. तब उन्हीं के निर्देशन में मैंने अपना लघु शोध प्रबंध भी लिखा था. नौकरी में आने के बाद मैंने पी-एच.डी.के लिए भी उन्हीं के निर्देशन में शोध कार्य किया. दूर दूर रहने के वावजूद मैं हमेशा उनका स्नेहपात्र बना रहा. इतनी निकटता का एकमात्र कारण उनका जनतांत्रिक सोच और व्यवहार था . वे अपने शिष्यों के साथ हमेशा मित्रवत व्यवहार करते थे. जब मैं 1992 में बिहार जलेस का सचिव बना तो मेरे अनुरोध पर जनवादी लेखक संघ के जयपुर सम्मेलन में भी उन्होंने भाग लिया था. बाद में वे बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के साथ सक्रिय रूप से जुड़ गए थे.
उन्होंने  ने नौ आलोचना पुस्तकें लिखी थीं और विविध विधाओं की लगभग दर्जन भर पुस्तकों का सम्पादन भी किया था. उनके नहीं रहने से हिंदी साहित्य की – ख़ास कर उपन्यासालोचन की बहुत बड़ी क्षति हुई है.रामविनोद बाबू अपने पाठकों , शिष्यों , मित्रों और चाहनेवालों के दिलों में हमेशा बने रहेंगे . इन्हीं शब्दों के साथ अपने आदरणीय गुरुदेव को विनम्र श्रद्धांजलि .

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