‘CBSE घोटाले का हब है बिहार’

By Amit Verma Jun 18, 2017

बिहार CBSE घोटाले का सबसे बड़ा हब है. बिहार में हर साल CBSE का 500 करोड़ का अवैध कारोबार है. जन अधिकार पार्टी के संरक्षक और सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्‍पू यादव ने आरोप लगाया है कि सैकड़ों CBSE मान्‍यता प्राप्‍त निजी स्‍कूल इस गोरखधंधे में लगे हुए हैं. उन्‍होंने पटना में पत्रकारों से कहा कि इस घोटाले की सीबीआई जांच होनी चाहिए. साथ ही सीबीएसई मान्‍यता प्राप्‍त स्‍कूलों के संचालकों और मालिकों की संपत्ति की भी जांच होनी चाहिए.




पप्पू यादव ने इस संबंध में CBSE निेदेशक और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री को भेजे पत्र की कॉपी मीडिया को जारी करते हुए कहा कि अधिकतर निजी स्‍कूल CBSE के तय मानकों को पूरा नहीं करते हैं. इसके बावजूद उन्‍हें मान्‍यता प्रदान कर दी जाती है. अधिकतर CBSE विद्यालय सिर्फ परीक्षा फार्म भरवा कर परीक्षा लेते हैं और अच्‍छे अंकों से पास करवाने की गारंटी भी देते हैं. उन्‍होंने कहा कि इन स्‍कूलों के बैंक अकाउट और छात्रों की उपस्थिति की जांच कर ली जाए तो कई घोटालों का खुलासा हो जाएगा. CBSE घोटाले का स्टिंग भी उन्‍होंने पत्रकारों को दिखाया और कहा कि बिहार बोर्ड के समान CBSE बोर्ड भी घोटाले में डूब गया है. छात्रों के भविष्‍य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. निजी स्‍कूलों के संरक्षण में कोचिंग का कारोबार भी बढ़ता जा रहा है.

   

सांसद ने अपने भेजे पत्र में कई स्‍कूलों के नामों की चर्चा करते हुए आरोप लगाया है कि राज्‍य सरकार CBSE की मान्‍यता के तय मानकों की अनदेखी कर अनुशंसा करती है और NOC देती है. उन्‍होंने कहा कि मान्‍यता प्राप्‍त करने के लिए तय मानकों का उल्‍लंघन कर निजी स्‍कूल छात्रों का नामांकन करते हैं, परीक्षा फार्म भरवाते हैं और पास होने की गारंटी भी देते हैं. सांसद पप्पू यादव ने कहा कि वे इस मामले को संसद में भी उठाएंगे.

पप्पू यादव ने आरोप लगाया कि मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी और समाज सुधार की आड़ में शिक्षा व्‍यवस्‍था की मूलभूत समस्‍याओं से भाग रहे हैं. यही कारण में शिक्षा व्‍यवस्‍था में अराजकता, अव्‍यवस्‍था और भ्रष्‍टाचार बढ़ रहा है. उन्‍होंने कहा कि नीतीश सरकार किसानों की समस्‍याओं के प्रति गंभीर नहीं है. किसानों के साथ बैठ कर भोजन करने से किसानों की बदहाली दूर नहीं होगी. बिहार कृषि प्रधान राज्‍य है, लेकिन सरकार कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने  में नाकाम रही है. बिहार में कृषि विकास दर शून्य तक पहुंच गया है.

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