जंगल गाथा की विषय वस्तु

यह किताब झारखण्ड/बिहार के जंगलों और उनसे जुड़े मुद्दों पर केन्द्रित है, यही स्थिति पूरे देश के जंगलों की है. मंडल और सारंडा जैसे जंगलों का नाश, जानवर, अविकास, अंधविश्वास, आदिवासी, नक्सल, पर्यावरण, प्रदूषण, भ्रष्टाचार, विस्थापन, डायन-हत्या, प्राकृतिक सम्पदा का निर्मम दोहन – देश के कई इलाकों में आम मुद्दे हैं.




झारखण्ड एक परखनली है. इसमें पूरे देश के जंगलों, जंगली जीवों और वनवासियों के विनाश की प्रक्रिया देखी जा सकती है. इसकेे लेखक गुंंजन सिन्हा कहते हैं-

“इस गंभीर विषय में मेरा दखल बस इतना है कि मेरे पिता एक वन अधिकारी थे, सो बचपन से मुझे जंगलों में जाने, जीने, उन्हें देखने-जानने के मौके मिले. मेरे पास बस कुछ अनुभव हैं जंगल से इसी भावात्मक सम्बन्ध के.

प्रकृति हमारे निजी जीवन, उसके सुख दुःख को स्पर्श करती है. प्रकृति की सबसे आकर्षक अभिव्यक्ति है जंगल. यह तन और मन दोनों को चंगा करता है. नदियों, पहाड़ों, जंगलों में रहने वाले इंसानों और जीव-जंतुओं को लगातार नष्ट कर प्रकृति की अमूल्य देन को खत्म किया जा रहा है. लेकिन आम लोग ऐसे व्यवहार कर रहे हैं, मानो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. कहीं कोई प्रभावकारी विरोध नहीं है.
दुनिया भर के लोगों ने ग्रेटा थनबर्ग के रुंधे हुए गले से उनकी बातें सुनीं, आंसू देखे, कुछ देर सोचा और फिर रोजमर्रे की ओर बढ़ लिए.
आप रुकें और देखें अपने आस पास – आपका रुकना, देखना, बोलना और गलत का विरोध करना ज़रूरी है.

Gunjan Sinha

किसी इलाके में उग्रवाद तभी बढ़ता है, जब व्यवस्था का भ्रष्टाचार और ऐय्याशी बढ़ती है, या फिर तब, जब किसी प्रशासनिक या प्राकृतिक कारण से लोगों का जीना कठिन हो जाए. अन्यथा आम तौर पर आम लोग शांतिप्रिय और सीधे ही होते हैं.
यह किताब भारत में जंगलों के प्रति प्राचीन मध्यकालीन और आधुनिक काल मेंं समाज के नज़रिये और वन प्रबंधन का संक्षिप्त विहंगावलोकन करती है.

आप इसे ऑर्डर करके मंगवा सकते हैं. प्रकाशक का पता है-
अखंड पब्लिशिंग हाउस,
L 9A, प्रथम तल,
गली नम्बर 42,
सादतपुर एक्सटेंशन,
दिल्ली 110094.
फ़ोन 996828081
9555149955
9013387535
email- [email protected]
[email protected]
मूल्य 200/ रुपए.

Gunjan Sinha

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