आप भी मिलिए “भटके हुए देवता” से

By Amit Verma Apr 28, 2017

भटके हुए लोगों को हम अक्सर देवालय और भगवान् की शरण में ले जाने की बात करते हैं या परामर्श देते हैं. लेकिन क्या आपने सोचा है कि देवता ही भटक जाये तो क्या होगा ?  क्यों, चक्कर खा गए न ? जी हां लेकिन ये हकीकत है और भटके हुए देवता का मंदिर भी है भारत में.




अब आपके मन में ये उत्सुकता हो रही होगी कि ये मंदिर आखिर है कहाँ. तो चलिए आपकी जिज्ञासा को शांत कर देते हैं हम… ये मंदिर है देवों की नगरी हरिद्वार में. हरिद्वार में अवस्थित शांतिकुंज में माँ गायत्री का प्रसिद्ध मंदिर है और इस मंदिर प्रांगण में ही अवस्थित है भटके हुए देवता का मंदिर भी. गायत्री मंदिर के पश्चिम दिशा की ओर स्थित इस मंदिर के बाहर ही लिखा है “भटका हुआ देवता”.

इस मंदिर में नहीं है कोई मूर्ति

भटका हुआ देवता का बोर्ड देखते ही सबकी नजरें इस भटके हुए देवता को खोजने के लिए व्याकुल हो उठती हैं. हमने भी कोशिश की भटका हुआ देवता की तस्वीर या मूर्ति को खोजने की. लेकिन यहाँ घंटों खोजने के बाद भी लोगों को नहीं मिलते हैं ये भटके हुए देव, सो हमें भी नहीं मिले भटके हुए देवता. लोगों के जेहन में यही बात रहती है कि आखिर कहाँ हैं ये देव ? क्योंकि यहाँ किसी भगवान् की मूर्ति या तस्वीर है ही नहीं. अगर है तो बस 5 आदमकद  आइने लगे हुए हैं.

     

आइनों में ढूंढते हैं भगवान

यही आइने दरअसल इस भटके हुए देवता की पहचान कराते हैं यहां. इन आदम कद आइनो में आये लोग भगवान् को ढूंढते हैं लेकिन अब जो भटक गया हो वो भला क्या आइना में मिलेगा? यहाँ तो  कबीर दास की बात याद आती है जिसमें उन्होंने कहा है कि “मोको कहाँ ढूंढे बन्दे मैं तो तेरे पास में”… पटना नाउ ने भी इन आइनो में इस भटके हुए भगवान को खोजने की कोशिश की लेकिन इन आइनो को देखने के बाद तो अपनी ही तस्वीर दिखती थी.

तभी हमें इन आइनो के पास लिखे हुए कुछ संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी के शब्द मिले. लेकिन इससे पहले कबीर दास की याद ने ये एहसास दिला दिया था कि ये भटका हुआ देवता कोई और नहीं बल्कि हम इंसान ही हैं. इन आदमकद आइनो के ऊपर लिखा हुआ है – सोsहम, शिवोsहम, सच्चिदानंदोह्म, अयात्मा ब्रह्म, तत्त्वमसि. इन शब्दों का अर्थ भी पास लगे बोर्ड पर लिखा हुआ है. जब इन आइनो को देखने पर खुद का चेहरा दिखता है तब पता चलता है कि ये खोया हुआ देवता कोई और नहीं बल्कि हम इंसान ही है. अब सवाल ये उठता है कि इंसान की तुलना देवता से कैसे की जा सकती है. तो शांतिकुंज के पंडित श्याम बिहारी दुबे कहते हैं कि मनुष्य भगवान की संतान है अतः भगवान की संतान भगवान ही होगी न, इसलिए इंसान भी भगवान अर्थात देवता ही है.

बहुत सारे संतो ने भी तो यही बात कही है, अपने अंदर खोजने की बात . इन बातों को मजबूती और मिलती है जब सोsहम और अन्य शब्दों का अर्थ लिखा हुआ इन आइनो के बीच और नीचे की पट्टिकाओं पर मिलता है. कहने का मतलब यह है कि आइना में दिखते अपने रूपों के साथ जब “मैं ही वो हूँ, मैं ही शिव हूँ, मैं ही आत्म ब्रह्म हूँ, मैं ही सच्चिदानन्द हूँ और वह तुम ही हो” जैसे भाव मिलते हैं तब लगता है कि सचमुच कोई और नहीं बल्कि हम इंसान ही भटके हुये देवता हैं. आप इन पट्टियों पर लिखे हुए संदेशों को खुद देखिये इन तस्वीरों में…

तो अब इन भटके हुए देवताओं को खोजने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अब आशा है कि आप भी जान गए होंगे कि कौन है यह भटका हुआ देवता ?

 

हरिद्वार से ओपी पांडे

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