दिलों को झकझोरती अरुण शीतांश की कविताएँ
भोजपुर ही नहीं देश विदेशों में भी लोग अरुण शीतांश की कविता,कहानी और अन्य रचनाओं को बहुत पसंद किया जाता है.अरुण जी देसज पत्रिका के सम्पादक भी है. युवा कवि के रूप में अपनी कड़ी मेहनत और लगनशीलता का परिचय सृजनशीलता से दिखाया है प्रस्तुत है उनकी दो कविताएँ…
देखना तो ऐसे देखना
मेरी बच्ची सुबह सुबह उठना
लेकिन कसाई का मुँह मत देखना
देखना तो कसाई की बेटी को देखना
खून न देखना
मेरी बच्ची उस ठेहे को बिल्कुल मत देखना
बेहोश मत होना
लाईन में लगे उन जीवों पर दया करना
जैसे एक चिड़िया अपने बच्चे को समय से चोंच में दाना भर उड़ जाती है
तुम कुछ भी मत देखना
जिससे तुम्हारे गर्भ में पल रहे बच्चे पर
असर हो
एक पिता होने के नाते तुम्हें कह रहा हूँ
लेकिन तुम कसाई के भूख को जरुर जानना
जिसके बच्चे देश के भविष्य हैं …
रात:2 बजे 5 सितम्बर 16
दो दोस्त
चलो साथ चलतें हैं
तुम्हारे हाथ के फूल किसके लिए हैं
यह सवाल का उत्तर फूल जानता है
नहीं
फूल भी नहीं जानता
और मैं भी नहीं जानता
बीज को पता है
नहीं
बीज को कैसे पता?
धरती जानती है कि
मिट्टी के निकट फूल रहेगा
और दोस्त आसमान की तरह
यार! धरती और आसमान से दूर हो रहें हैं हम…
-अरुण शीतांश