मिनियेचर का जेंट वर्क

क कला दीर्घा में 3 दिवसीय कला प्रदर्शनी ‘गदकारी’

वाराणसी,21 दिसंबर. कभी कभी छोटी चीजों में बड़ा अर्थ छुपा होता है. जब ये छोटी चीजें अर्थपूर्ण होती हैं तो बड़ों पर भी भारी पड़ती हैं. कुछ ऐसा ही देखने को मिला वाराणसी के लंका में स्थित छोटी सी कला दीर्घा ‘क’ में. मौका था चित्रसूत्र ग्रुप द्वारा 18-20 दिसंबर तक लगने वाली कला प्रदर्शनी का. युवा चित्रकारों द्वारा छोटी सी कला दीर्घा में लगभग दर्जन भर युवा चित्रकारो द्वारा बनाई गई मिनियेचर पेंटिंग कमाल की और बहुत ही आकर्षक थी. छोटे चित्रों में बड़ा अर्थ दिखा.




छोटी उम्र में कलाकारों की बड़ी सोच और रंगो का समायोजन के साथ फिनिशिंग कमाल की दिखी. सबसे खास बात यह रही कि आधुनिक युग में जहां कृत्रिमता ने सभी को जकड़ रखा है वैसे में इन युवा कलाकारों ने अर्थ कलर का उपयोग कर प्राकृतिक विरासत को सहेजने के लिए न सिर्फ रास्ता दिखा दिया बल्कि अपने इस प्रयोग से फिर नई पीढ़ी को बता दिया कि इन रंगों का प्रभुत्व ही लंबे समय तक करने की जरूरत है.

क्या है गदकारी?

प्राकृतिक रंगो को बारीक घिसने के बाद इसे लिक्विड बनाने और उसे बारीक कपड़ो द्वारा छानकर जो कलर तैयार किया जाता है उसे ही गदकारी कहते हैं. दरअसल गदकारी की पद्धति में समय अधिक लागता है इसलिए इसे हर कोई नही अपनाना चाहता है. लेकिन इस पद्धति से तैयार रंगो की अपनी एक अलग चमक और प्रभाव देते हैं जिसे देखने के बाद ही फर्क समझा जा सकता है.

कला दीर्घा में BFA और MFA के स्टूडेंट के अलावा एक ऐसी कलाकार का पेंटिंग भी लगा था जो फाइन आर्ट की स्टूडेंट तो नही थी लेकिन उसके पेंटिंग और रंगो ने उसकी क्लात्मकता का प्रमाण गैलरी में जरूर दिया था.

कला गैलरी का उद्घाटन जहां मुख्य अतिथि के रूप में सुरेश के. नायर, दृश्य कला संकाय, बीएचयू, वाराणसी ने किया वही गैलरी में लगे पेंटिंग को देखने के लिए एस. प्रणम सिंह, प्रमुख चित्रकला विभाग, दृश्य कला संकाय, बीएचयू, वाराणसी और सदस्य या सलाहकार समिति, राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, नई दिल्ली, कौशलेश कुमार राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चित्रकार एवं कला शिक्षक केंद्रीय विद्यालय बीएचयू वाराणसी जैसी शख्सियतों की उपस्थिति भी देखी गई.

वाराणसी से ओ पी पांडेय की रिपोर्ट

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