बिहार में फिल्‍मों की जड़ें गहरी : हिमांशु कटुआ  

By pnc Nov 19, 2016

‘फिल्‍म महोत्‍सव तो बहुत जगहों पर होते हैं लेकिन ऐसे थीम बेस्‍ड रीजनल फिल्‍म फेस्टिवल का आयोजनबताता है कि बिहार में फिल्मों की जड़ें कितनी गहरी हैं. आज जब ग्‍लोबल युग में लोग अपने राज्‍य को छोड़कर दूसरे राज्‍य जाते हैं, तब वो दूसरे राज्‍य के समाज और कल्‍चर से अनिभिज्ञ होते हैं. यहां फिल्‍म ही ऐसा माध्‍यम है, जिसके जरिए दो राज्‍यों के बीच सामाजिक, सांस्‍कृतिक और आर्थिक परिचय मिल पाएगा.’ ऐसा मानना है ओडिया फिल्‍म क्रांतिधारा के निर्देशक हिमांशु कटुआ का. बिहार राज्‍य फिल्‍म डेवलपमेंट वित्त निगम लिमिटेड द्वारा आयोजित रीजनल फिल्‍म फेस्टिवल 2016 उन्‍होंने इस आयोजन को महत्‍वपूर्ण बताया.

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इससे पहले छह दिनों तक चलने वाले रीजनल फिल्‍म फेस्टिवल 2016 के चौथे दिन की शुरूआत सुसांत मिसरा निर्देशित फिल्‍म विश्‍वप्रकाश से हुई. जो एक ब्राह्मण पृष्‍ठभूमि से आने वाले लड़के की कहानी है. जिसका पढ़ाने – लिखने केे बजाय मछली व्‍यवसाय को चुनता है. और फिर पारिवारिक और सामाजिक अंतर्विरोध का दौर चलता है. इसके बाद दूसरी फिल्‍म डॉ सब्‍यसाची महापात्रा निर्देशित और अटल बिहारी पांडा अभिनीत फिल्म आदिम विचार और अंत में हिमांशु कटुआ की फिल्म क्रांतिधारा का प्रदर्शन हुआ. ओडिया की तीनों फिल्‍में दर्शकों को बहुत पसंद आई. वहीं फिल्‍म के बाद ओपेन हाउस डिसकशन सत्र में  ओडिया से आए निर्देशकों और अभिनेताओं ने लोग से फिल्‍म एवं अन्‍य विषयों पर विस्‍तार से चर्चा की. इस दौरान बिहार राज्‍य फिल्‍म डेवलपमेंट वित्त निगम लिमिटेड के एमडी गंगा कुमार, अटल बिहारी पांडा (अभिनेता, आदिम विचार), डॉ सब्‍यसाची महापात्रा (निर्देशक, आदिम विचार), समरेश राउत्रे ( अभिनेता, क्रांतिधारा), हिमांशु कटुआ (निर्देशक, क्रांतिधारा),  सुसांत मिसरा (निर्देशक, विश्‍वप्रकाश), पूर्व आईएएस आर एन दास, रविराज पटेल, फिल्‍म समीक्षक विनोद अनुपम, कमल नोपाणी, राजेश बजाज, मीडिया प्रभारी रंजन सिन्‍हा, सर्वेश कश्‍यप आदि लोग मौजूद रहे है. वहीं, पूर्व आईएएस आर एन दास ने सभी आगंतुकों को बुके, शॉल और स्‍‍मृति चिन्‍ह देकर सम्‍मानित किया.

अटल बिहारी पांडा (अभिनेता, आदिम विचार) – पटना में रीजनल फिल्‍म महोत्‍सव के आयोजन से काफी खुशी मिली है. मैं रीजनल फिल्‍म फेस्टिवल 2016 के आभार व्‍यक्‍त करता हूं बिहार सरकार और इसके आयोजकों का. उन्‍होंने अपने अभिनय करियर  पर चर्चा करते हुए उन्‍होंने कहा कि उम्र कला और कलाकार के लिए बाधक नहीं है. कलाकार को इश्‍वर में विश्‍वास होना चाहिए. उन्‍होंने बताया कि अभिनय और लेखन मेरी जिंदगी का हिस्‍सा है. शुरूआती दौर में मंच के लिए नाटक लिखता था, अब अभिनय भी करता हूं. लेकिन उम्र कभी मेरेे लिए बाधा नहीं है. उन्‍होंने कलाकारों को हमेशा खुश और मजबूत रहने का मंत्र दिया.

डॉ सब्‍यसाची महापात्रा (निर्देशक, आदिम विचार) – रीजनल फिल्‍म फेस्टिवल 2016 पर चर्चा करते हुए उन्‍होंने कहा कि 20 साल पहले तक ओडिसा में भी क्षेत्रीय फिल्‍मों का चलन था. मगर कुछ वजहोंं से ओडिसा में अब ऐसे आयोजन नहीं हो पा रहे हैं. हालांकि ओडिसा में का कल्‍चर बहुत रीच रहा है. 1936 के बाद आज त‍क ओडिया सिनेमा अलग – अलग दौर से गुजरा. फिल्‍मों पर चर्चा के दौरान उन्‍होंने बताया कि कहानी के डिमांड के हिसाब से फिल्‍में बनती है. एक सवाल के जवाब में डॉ महापात्रा ने कहा कि मैं मेरी फिल्‍मों में इमोशनल टच इसलिए होता है, क्‍योंकि मैं महिलाओं और समाज के अन्‍य संवदेनशील मुद्दे पर सिनेमा बनाता हूं.

समरेश राउत्रे ( अभिनेता, क्रांतिधारा) – रीजनल फिल्‍म फेस्टिवल का ये कांसेप्‍ट अब तक देश में हो रहे आयोजनों से बिलकुल अलग है. आयोजक इसके लिए धन्‍यवाद के पात्र हैं. मुझे लगता है कि जब रीजनल फिल्‍म का जिक्र होता है तो पहले यही समझ बनती है कि इसमें अपनी भाषा की ही फिल्‍म दिखाई जाएगी. मगर यहां इस फेस्टिवल में इस धारना को बदला गया है. मैं इस महोत्‍सव से बहुत प्रेरित हुआ और उम्‍मीद करता हूं कि ओडिसा में भी ऐसे आयोजनों का चलन शूरू हो. वहां भी बिहार समेत अन्‍य राज्‍यों की फिल्‍में दिखाई जाएगी. इससे लोगों को दूसरे राज्‍यों की कहानी देखने को मिलेगी.

हिमांशु कटुआ (निर्देशक, क्रांतिधारा) – बिहार के बारे में एक समझ बनती है कि यह राजनीतिक रूप से सक्रिय राज्‍य है. लेकिन इस तरह के आयोजन बताते हैं कि राजनीति के अलावा यहां कल्‍चर और फिल्‍मों के प्रति लोगों में जागरूकता है. उन्‍होंने कहा कि फिल्‍म के क्षेत्र में जो यह महत्‍वपूर्ण प्रयास शुरू हुआ है, उम्‍मीद करता हूं, वो आगे बढ़े. उन्‍होंने कहा कि लगातार फिल्‍मों की स्‍क्रीनिंग और वर्कशॉप से लोगों में फिल्‍म के प्रति जागरूकता आएगी. उन्‍होंने कहा कि कई राज्‍यों की अपनी फिल्‍म पॉलिसी है, जिससे वहां फिल्‍म मेकरों को आर्थिक अनुदान मिलता है. इसलिए सभी राज्‍यों में अपनी फिल्‍म पा‍ॅलिसी होने से मेकरों को अच्‍छी फिल्‍में बनाने में सहयोग मिलेगा.

सुसांत मिसरा (निर्देशक, विश्‍वप्रकाश) – छह दिनों तक चलने वाली रीजनल फिल्‍म फेस्टिवल 2016 एक अच्छी् शुरूआत है. बिहार में ऐसा आयोजन हो रहा है ये और भी अच्‍छी बात है. फिल्‍म पर चर्चा करते हुए कहा कि अच्‍छी फिल्‍मों के लिए कई चीजों की जरूरत है, जिसमें तकनीक, कहानी और लोगों की मेहनत भी है. एक सवाल के जवाब में कहा कि फिल्‍म बनाते समय मेकर यह पता नहीं होता है कि उनकी फिल्‍म आवार्ड विनिंग फिल्म है. यह दर्शकों पर निर्भर करता है. तकनीक के विकास से अब शॉर्ट फिल्‍मों का भी चलन बढ़ा है. खास कर युवा अब इसकी तरफ आकर्षित हो रहे हैं, जो सिनेमा के लिए अच्‍छी बात है.

 

 

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