डिजिटल युग में पश्चिमी नियंत्रण

बढ़ती तकनीकी निर्भरता और ऑनलाइन गेमिंग का प्रचलन




ई.रवि आनंद

आधुनिक जीवनशैली और बदलते सामाजिक ढाँचे के बीच बच्चों के व्यवहार और मानसिक स्वास्थ्य में चिंताजनक बदलाव देखने को मिल रहे हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, माता-पिता के व्यस्त होते जीवन और तकनीक के बढ़ते उपयोग ने बच्चों का एक बड़ा हिस्सा स्क्रीन पर निर्भर बना दिया है. टीवी, मोबाइल, टैबलेट और कंप्यूटर बच्चों के लिए मनोरंजन का प्रमुख माध्यम बन चुके हैं, जिनमें ऑनलाइन गेमिंग सबसे अधिक आकर्षक और प्रभावी साबित हो रही है.

हालाँकि, ऑनलाइन गेमिंग का यह आकर्षण अब कई गंभीर समस्याओं का कारण बन रहा है. विभिन्न शोधों और मौजूदा सामाजिक घटनाओं के आधार पर यह स्पष्ट हो रहा है कि डिजिटल गेमिंग की लत बच्चों में अकेलापन, अवसाद, व्यवहारिक विकार, चिड़चिड़ापन, हाइपरएक्टिविटी और सामाजिक अलगाव जैसी समस्याओं को जन्म दे रही है. पहले जहाँ बच्चों में मोटापा और निष्क्रियता मुख्य चिंता के विषय थे, अब स्थितियाँ कहीं अधिक जटिल और खतरनाक रूप ले चुकी हैं.

गेमिंग की लत से बच्चों में बढ़ रहा नशे का खतरा

जमीनी स्तर पर किए गए अवलोकनों से पता चलता है कि गेमिंग की लत से उत्पन्न तनाव और मानसिक दबाव बच्चों को नशे की ओर धकेल रहा है. मादक पदार्थों, ड्रग्स और शराब की लत स्कूल स्तर पर ही तेजी से फैलती दिख रही है. चिंताजनक बात यह है कि कक्षा 10 तक पहुँचते-पहुँचते कई बच्चे किसी न किसी नशे के संपर्क में आ चुके होते हैं.

अपराध की ओर बढ़ते कदम

नशे की इस आदत को पूरा करने के लिए बच्चे चोरी, स्नैचिंग और यहाँ तक कि साइबर-जालसाजी जैसी गतिविधियों में शामिल होते पाए जा रहे हैं. कई मामलों में देखा गया है कि किशोर वित्तीय धोखाधड़ी में लिप्त अपराधी गिरोहों का आसानी से हिस्सा बन जाते हैं. विशेषज्ञ इसे “मोरल ब्रेकडाउन” यानी नैतिक पतन की स्थिति बताते हैं, जहाँ बच्चे सही-गलत के बुनियादी अंतर को भी नजरअंदाज करने लगते हैं.

समाजशास्त्रियों के अनुसार, बच्चों में नशे और अपराध की ओर बढ़ती यह प्रवृत्ति आने वाले समय में गंभीर सामाजिक संकट का रूप ले सकती है. यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो यह समस्या न केवल बच्चों के भविष्य, बल्कि पूरे समाज की संरचना को प्रभावित कर सकती है. और इन सब के मूल में हैं technology तकनीक

पुरानी तकनीक, नया संकट: मनोरंजन की मशीन बनते बच्चे और समाज पर उभरता खतरा

तकनीक हमारे जीवन का हिस्सा कब बनी और कैसे आम जन तक पहुँचीयह समझने के लिए इतिहास में झाँकना जरूरी है. आज ट्रेन में सफर करना जितना सहज और सामान्य लगता है, उतना ही असंभव यह विचार 100 वर्ष  पहले के लोगों के लिए था. उस समय ट्रेनें आम जनता नहीं, बल्कि साम्राज्यवादी शक्तियों की संपत्ति थीं. ब्रिटिश शासन के दौरान रेलवे का उपयोग मुख्यतः उपनिवेशों के संसाधनों के दोहन के लिए किया जाता था, न कि आम लोगों की सुविधा के लिए.

स्टीम इंजन के जनक ने संभवतः यह कभी नहीं सोचा होगा कि उनका आविष्कार एक दिन दुनिया भर के लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन जाएगा. लेकिन इतिहास का सिद्धांत स्पष्ट है- जब किसी तकनीक में विश्व की महाशक्तियाँ निवेश करती हैं, उसका सर्वाधिक लाभ पहले वे स्वयं उठाती हैं, और जब उसकी रणनीतिक उपयोगिता घटने लगती है, तब वह तकनीक धीरे-धीरे आम जन के हाथों पहुँचती है.

आज हम ट्रेन में बैठकर खुश होते हैं, पर उसके पीछे शताब्दियों की राजनीति, नियंत्रण और तकनीकी निवेश की कहानी दबी हुई है.

टेक्नोलॉजी नई नहीं होती, केवल उसका उपयोग बदलता है

आज हम जिस युग में जी रहे हैं, उसे सामान्यतः “संचार क्रांति” का युग कहा जाता है. मोबाइल, लैपटॉप, 5G यह सब हमें नई और अत्याधुनिक तकनीक प्रतीत होती है, जबकि वास्तविकता यह है कि टेलीफोन, ई-मेल, GPS, सिमुलेशन, उपग्रह तकनीक, सुपर कंप्यूटर इन सभी का जन्म कई दशक पहले हो चुका था.

दुनिया कभी अमेरिका जैसे देशों की ओर ताकती थी GPS लोकेशन के लिए, सैटेलाइट तस्वीरों के लिए,
संचार तकनीक के लिए. दुनिया भर की सेनाएँ और सरकारें इन तकनीकों पर निर्भर थीं. लेकिन जब इन तकनीकों की रणनीतिक महत्वता  कम होने लगी, तब इन्हें सार्वजनिक उपयोग के लिए जारी किया गया. वही GPS, जो कभी युद्धक्षेत्रों में प्रयोग होता था, आज टैक्सी बुलाने और खाना ऑर्डर करने का साधन बन चुका है. वही सैटेलाइट तकनीक अब मोबाइल गेम्स में “रियल वर्ल्ड मैप” दिखा रही है.

तकनीक मनोरंजन बनकर आई और अब संकट बनकर उभर रही है

जब अत्याधुनिक तकनीक आम आदमी तक पहुँची, तो उसका सबसे तेज़ विकास मनोरंजन के क्षेत्र में हुआ. मोबाइल फोन, हाई-स्पीड इंटरनेट और गेमिंग प्लेटफ़ॉर्म बच्चों और युवाओं के लिए एक आसान ‘डोपामिन मशीन’ बन गए.

लेकिन यही मनोरंजन अब समाज के लिए गंभीर समस्या का रूप ले रहा है.

विशेषज्ञों की मानें तो
• गेमिंग की लत,
• बिना रोक-टोक स्क्रीन टाइम,
• डिजिटल निर्भरता

बच्चों में मानसिक और सामाजिक क्षरण का कारण बन रहे हैं. पहले मोटापा और शारीरिक निष्क्रियता बड़ी समस्याएँ थीं, पर अब यह नशे, अकेलेपन, व्यवहारिक विकार, सामाजिक अलगाव और अपराध जैसे खतरनाक रूप ले चुका है.

 “भारतीय तरीका”: विकास भी, पर नैतिकता के साथ

अब सवाल उठता है – इससे उबरने का रास्ता क्या है?

जवाब सामने है, लेकिन उसे पहचानना कठिन है.
क्योंकि वह जवाब उस दर्शन में छिपा है जिस पर सदियों से धूल जमी हुई है – भारत का उन्नति-दर्शन, “Indian Way of Development”.

भारत ने शून्य से लेकर खगोल विज्ञान तक अनगिनत खोजें कीं.
परंतु इन सबकी विशेषता यह रही कि भारतीय विकास ने हमेशा नैतिकता को केंद्र में रखा.
किसी भी तकनीक, किसी भी ज्ञान का उपयोग समाज के हित में होगा या नहीं, इसका विचार पहले से किया जाता था. इसलिए भारत की कोई खोज कभी समाज के लिए संकट नहीं बनी.

यह समय है कि हम सनातन मूल्यों, भारतीय ज्ञान-परंपरा और उसके नैतिक ढांचे को फिर से खोजें, पढ़ें, समझें और समाज में प्रसारित करें.

अंतिम चेतावनी

समय का चक्र लगातार चल रहा है.यदि मानव स्वयं को अनुशासित नहीं करता, यदि तकनीक की दिशा और उपयोग पर नियंत्रण नहीं रखता, तो समय उसे कुचलते हुए आगे निकल जाएगा.मानवता का भविष्य  आपका, मेरा, और इस ग्रह पर संपूर्ण मानव जाति का  तभी सुरक्षित है जब विकास के केंद्र में केवल प्रगति नहीं, नैतिकता और संयम भी हों.

By editor

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