‘सरिता-महेश का सब्दो-प्रयोग’

By pnc Jan 22, 2017

सामूहिक खेती और सामुदायिक विकास के अनेकानेक प्रयोग 

पैंतालीस किलोमीटर में फैले हदहदवा पइन एवं उसकी शाखाओं तथा उससे जुड़े अनेक आहरों का जीर्णोद्धार




कुछ गाँवों में शराबबंदी, आपसी झगड़ों का निबटारा 

मृतप्राय पइनों के जीर्णोद्धार के काम  —-पुष्पेन्द्र कुमार 

सरिता और महेश ने लंबे समय से आर्थिक-सामाजिक अन्याय और अराजकता की चपेट में पड़े बिहारी समाज को निजात दिलाने की दृष्टि से सामूहिक खेती और सामुदायिक विकास के अनेकानेक प्रयोग किये थे. उन्होंने फतेहपुर, गया में लगभग चार वर्षों तक काम करके तकरीबन चालीस गाँवों को अपना कार्यक्षेत्र बनाया था. उनके प्रयासों से करीब पैंतालीस किलोमीटर में फैले हदहदवा पइन एवं उसकी शाखाओं तथा उससे जुड़े अनेक आहरों का जीर्णोद्धार, कुछ गाँवों में शराबबंदी, आपसी झगड़ों का निबटारा, स्वच्छता, बच्चों एवं व्यस्कों की शिक्षा, ग्राम संगठनों का निर्माण, महिलाओं के ऊपर हिंसा का निवारण, गाँवों में बिजलीकरण, एक गाँव सब्दों में सामूहिक खेती और सामूहिक मछलीपालन, भूमिहीन भुइयां परिवारों को जमीन पर कब्जा दिलवाना, विकलांगों का पुनर्वास, आदि काम किये गये. कुछ काम अधूरे भी रह गये. सामूहिक पशुपालन और सामूहिक डेयरी के कार्यों तथा आसपास की दूसरी कई मृतप्राय पइनों के जीर्णोद्धार के काम को उनकी हत्या के कारण अंतिम रूप नहीं दिया जा सका.

इन कामों के लिए उन्होंने श्रमदान, ग्राम समितियों का गठन और सामूहिकता को बढ़ावा देने को अपना बुनियादी उसूल बनाया था. विकास मद के सरकारी पैसों को सीधे ग्राम समितियों को स्थानांतरित कराने और सरकारी स्कीमों में व्याप्त भ्रष्टाचार का खात्मा कराने का प्रयास किया गया. इससे सरकारी पैसों का बंदरबांट करने वाले तथा गाँव के आपसी झगड़ों एवं वैमनस्य का लाभ उठानेवाले अपराधी, राजनीतिज्ञ और प्रशासन के गंठजोड़ के स्वार्थों पर चोट पहुँची. इसी का परिणाम हुआ कि 24 जनवरी 2004 को इन दो जाँबाज, समर्पित, साहसी कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गयी जिन्होंने बेहतर समाज बनाने की ईमानदार कोशिश की थी.

संक्षिप्त जीवन परिचय

महेशकांत

महेशकांत का जन्म 16 मार्च 1968 को हरियाणा में हुआ था. हाईस्कूल तक की शिक्षा बिहार के पूर्णिया जिले में हुई. इसके बाद इन्होंने एरोनोटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की जिसे उन्होंने अधूरा छोड़ दिया. बाद में मगध विश्वविद्यालय से बी.ए. की डिग्री हासिल की. महेश को सामाजिक कामों में हाथ बंटाने का शौक बचपन से था. लिहाजा, व्यवसाय के जरिए धनोपार्जन कर सामाजिक कामों में लगाते रहे. 1996 में व्यवसाय छोड़ समाजकर्म में पूरी तरह रम गये. लोक कल्याण गुरु बाजार नाम से एक संस्था बनायी और अपनी जमापूँजी लगाकर, बिना किसी बाहरी मदद के, छपरा और पटना में स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई काम किये. 2001 में गुजरात भूकम्प के बाद अहमदाबाद एवं भुज में सरिता समेत एक टीम के साथ एक महीने तक राहत कार्य में लगे रहे. सरिता के साथ हुए परिचय का असर यह हुआ कि लौटकर वे फतेहपुर में इंस्टीच्यूट फाॅर रिसर्च ऐन्ड ऐक्शन (इरा) के कामों में शामिल हो गये. फिर तो वे फतेहपुर के ही होकर रह गये. यही उनकी कर्मभूमि बनी. वे इरा के संयोजक बने. फतेहपुर में उनके कार्यों के कारण उनके जीवन को खतरा था. यह समझते हुए भी उन्होंने कदम पीछे नहीं हटाये.
महेशकांत अपने दोस्तों में खासे लोकप्रिय, दिल के साफ, सीधे और अत्यंत निर्भीक थे. गुरु, माता-पिता और परिवार के प्रति असीम श्रद्धा एवं स्नेह रखनेवाले महेश को न तो फतेहपुर के लोग भुला पाये और न ही देश भर में उन्हें जानने वाले.

सरिता

सरिता का जन्म 19 नवम्बर 1970 को पटना जिले के एक गांव, जमालुद्दीनचक गाँव, खगौलमें हुआ था. पिता रेलवे में ड्राइवर थे. वे बाद में नक्सलवादी आंदोलन में पूर्णकालिक कार्यकत्र्ता बने. वे 1976 में भागलपुर में जेल तोड़कर निकलते वक्त पुलिस की गोलियों से शहीद हुए. भूमिहीनता और निर्धनता के बीच परिवार ने अपनी आस्था नहीं खोयी. जब सरिता ने स्कूली जीवन मंे ही जन-संघर्षों में शिरकत की तो परिवार ने प्रोत्साहन ही दिया. जुल्म का विरोध और निर्भीकता रग-रग में रची-बसी थी. पहले ‘हिरावल’ सांस्कृतिक दस्ता, फिर प्रगतिशील महिला मंच एवं आई.पी.एफ. तथा सी.पी.आई. माले की सदस्यता के तहत जन-संघर्षों के बीच सात साल बिताये. इसी बीच बी.ए. तक की शिक्षा पूरी की. माले से अलग होने के बाद अपनी पसंद से पुष्पेन्द्र से अंतर्जातीय विवाह किया. 1993-94 में पटना की झुग्गी-झोपड़ियों में छोटे बच्चों की शिक्षा तथा स्वच्छता को लेकर व्यक्तिगत तौर पर काम किया. फिर पति के साथ मसूरी में 1996 से 1998 तक का समय बिताया जहाँ बच्चों, मजदूर बस्तियों की महिलाओं तथा कामकाजी महिलाआंे के उत्थान एवं आजीविका को लेकर खासी सक्रिय रहीं. 1999 में पटना लौटकर आने के बाद ‘इरा’ की स्थापना की और फतेहपुर का रुख किया. फिर वहीं अपना जीवनोत्सर्ग कर दिया.सरिता के व्यक्तित्व के और कई पहलू थे – दूसरों की मदद के लिए हरदम तत्परता, अथक सक्रियता, राजनीतिक सूझबूझ, अध्ययनशीलता तथा कला के प्रति अभिरुचि.

 

24 जनवरी 2017, ३ बजे दिन को कालिदास रंगालय, गाँधी मैदान, पटना
सरिता-महेश स्मृति आयोजन समिति की ओर से कार्यक्रम
प्रो. राम पुनियानी का व्याख्यान. 
विषय – भारतीय प्रजातंत्र: समकालीन चुनौतियाँ 
 शाम 6 बजे ‘प्रेरणा’ द्वारा नाटक ‘मोटे राम का सत्याग्रह’ का मंचन.

 

Related Post