आज़ादी अभी अधूरी है-अटल बिहारी बाजपेयी

‘गिलगित से गारो पर्वत तक आज़ादी पर्व मनाएँगे ‘ जैसी दूरदर्शी सोंच रखने वाले पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी बाजपेयी की कविता इन दिनों सोशल मीडिया में पढ़ी और सुनी जा रही है आप भी पढ़े और सुने …..

पंद्रह अगस्त की पुकार




पंद्रह अगस्त का दिन कहता download

आज़ादी अभी अधूरी है।

सपने सच होने बाकी है,

रावी की शपथ न पूरी है।।

जिनकी लाशों पर पग धर कर

आज़ादी भारत में आई।

वे अब तक हैं खानाबदोश

ग़म की काली बदली छाई।।

 

कलकत्ते के फुटपाथों पर

जो आँधी-पानी सहते हैं।

उनसे पूछो, पंद्रह अगस्त केatal-bihari-vajpayee-

बारे में क्या कहते हैं।।

 

हिंदू के नाते उनका दु:ख

सुनते यदि तुम्हें लाज आती।

तो सीमा के उस पार चलो

सभ्यता जहाँ कुचली जाती।।

 

इंसान जहाँ बेचा जाता,atal-bihari-vajpayee

ईमान ख़रीदा जाता है।

इस्लाम सिसकियाँ भरता है,

डालर मन में मुस्काता है।।

 

भूखों को गोली नंगों को

हथियार पिन्हाए जाते हैं।

सूखे कंठों से जेहादी

नारे लगवाए जाते हैं।।

 

लाहौर, कराची, ढाका परatal jee

मातम की है काली छाया।

पख्तूनों पर, गिलगित पर है

ग़मगीन गुलामी का साया।।

बस इसीलिए तो कहता हूँ

आज़ादी अभी अधूरी है।

कैसे उल्लास मनाऊँ मैं?atal4

थोड़े दिन की मजबूरी है।।

 

दिन दूर नहीं खंडित भारत को

पुन: अखंड बनाएँगे।

गिलगित से गारो पर्वत तक

आज़ादी पर्व मनाएँगे।।

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उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से

कमर कसें बलिदान करें।

जो पाया उसमें खो न जाएँ,

जो खोया उसका ध्यान करें।।

– अटल बिहारी वाजपेयी

(पंद्रह अगस्त 1947 को रचित)