पटना।। बिहार में कायस्थों की नाराजगी कम होती नहीं दिख रही. अब सार्वजनिक तौर पर बिहार बीजेपी से जुड़े नेताओं का विरोध भी होता नजर आ रहा है. कुम्हरार विधानसभा में अरुण कुमार सिन्हा का टिकट कटने के बाद जिस तरह किसी कायस्थ प्रत्याशी की बजाय अन्य को टिकट दिया गया उसके बाद कायस्थों की नाराजगी भाजपा के लिए मुसीबत बनती नजर आ रही है. कायस्थ अब सार्वजनिक रूप से इसका विरोध दर्ज कर रहे हैं.

पटना में चित्रगुप्त पूजा के बाद मूर्ति विसर्जन के मौके पर पहुंचे भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री ऋतुराज सिन्हा को कायस्थों की नाराजगी झेलनी पड़ी. मौके पर उपस्थित लोगों ने ऋतुराज सिन्हा से सीधा सवाल किया कि आखिर क्यों कुम्हरार विधानसभा सीट पर अरुण सिन्हा का टिकट कटने के बाद किसी कायस्थ उम्मीदवार को भाजपा ने टिकट नहीं दिया. ऋतुराज सिन्हा ने वहां मौजूद लोगों को समझाने की कोशिश की लेकिन वे लोग उनकी बातों से सहमत नहीं दिखे.

वहां उपस्थित कायस्थ समाज के लोगों ने दो टूक कहा कि वह अब भाजपा को वोट नहीं देंगे. उन्होंने यहां तक कह दिया कि भाजपा के इस कदम का असर पूरे बिहार में कायस्थों के वोट बैंक पर पड़ेगा. संयोग से इस दौरान वहां जनसुराज के प्रत्याशी प्रोफेसर केसी सिन्हा भी मौजूद थे. वहां मौजूद कायस्थ जाति के लोगों ने प्रोफेसर केसी सिन्हा के समर्थन में नारे लगाए और कहा कि वह अब भाजपा की बजाय जनसुराज के उम्मीदवार प्रोफेसर केसी सिन्हा को वोट देंगे. लोगों की नाराजगी देख ऋतुराज सिन्हा को आनन-फानन में वहां से निकलना पड़ा.
इस पूरे मामले में अब सीधा फायदा जनसुराज उम्मीदवार प्रोफेसर केसी सिन्हा को होता दिख रहा है. के सी सिन्हा बिहार की जानी मानी शख्सियत हैं. जानकारी के अनुसार कायस्थों ने उन्हें ही इस बार वोट देने का मन बना लिया है.

क्या है पूरा मामला!
कुम्हरार पटना ही नहीं बल्कि बिहार की हॉट सीट मानी जाती है. इस विधानसभा सीट पर लंबे समय से भाजपा का कब्जा है. इसकी वजह यह है कि ये कायस्थ-बहुल सीट है. यहां के चुनाव नतीजों पर कायस्थों का वोट निर्णायक साबित होता रहा है. निवर्तमान विधायक अरुण सिन्हा (जो 2010 से लगातार विधायक रहे और 2020 में भी जीते) का टिकट काटना और उस स्थान पर गैर-कायस्थ उम्मीदवार को लाना, राजनीतिक रूप से जोखिम भरा निर्णय माना जा रहा है. कई राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि कुम्हरार में कायस्थ मतदाताओं की निर्णायक संख्या लगभग सवा लाख से भी अधिक है. इसके अलावा, मोतिहारी, मुजफ्फरपुर, आरा, गया, छपरा, गोपालगंज और भागलपुर जैसे जिलों में भी यह समाज निर्णायक भूमिका में है.
यह सीधा संकेत देता है कि राजनीतिक दल, संभवतः भाजपा, कायस्थ समाज को अपना ‘मजबूरन सपोर्टर’ समझने की गलती कर रहे हैं. यदि पार्टी कायस्थों को केवल संख्यात्मक दृष्टिकोण से कमतर आंकती है, तो यह ‘गुणात्मक दृष्टिकोण’ की अनदेखी है. यह वही गलती हो सकती है, जिसकी ओर राजनीतिक विश्लेषक’अस्तित्व विहिन’ होने की चेतावनी देते हैं.
OP Pandey
