बिहार का रिक्शा चलाने वाला बना कैब कंपनी का सीईओ

समाज में इज्जत पाने के लिए जेब में पैसे होने चाहिए




चपरासी की भी नहीं मिली थी नौकरी

आज दे रहा पांच सौ को रोजगार

बिहार में नहीं मिली नौकरी तो चलाने लगा रिक्शा

4000 कारों का नेटवर्क बनाया

बिहार में नौकरी नहीं मिली तो दिल्ली की सड़कों पर रिक्शा खींचने वाला लड़का आज दो कंपनियां खड़ी कर चुका है. दोनों कंपनियों के जरिए वह कई सौ लोगों को रोजगार दे रहा है. और देश के हजारों-लाखों लोग उसे जानने लगे हैं. यह कहानी है, बिहार के एक गांव के बेहद गरीब परिवार में पैदा हुए लड़के की, जिसे कभी चपरासी की जॉब से भी रिजेक्ट कर दिया गया था. इस युवक का नाम है दिलखुश कुमार. दिलखुश, आर्या गो नाम की कंपनी के फाउंडर और मैनेजिंग डायरेक्टर रह चुके हैं. इसके बाद इन्होंने रोडबेज  कंपनी की स्थापना की है जिसके जरिए बिहार में सस्ते रेट में कैब सर्विस देते हैं. दिलखुश ने बताया कि इसी साल रोडबेज कंपनी शुरू करने के बाद शुरुआती 4 महीने में ही उनके साथ 4000 कारों का नेटवर्क बन गया है. वहीं, दिलखुश, आर्या गो कंपनी को जीरो से लेकर 11.6 करोड़ रुपये के टर्नओवर तक पहुंचाने में सफल रहे थे. दिलखुश बताते हैं कि आर्या गो के जरिए इस वक्त करीब 500 लोगों को रोजगार मिल रहा है.

दिलखुश कभी दिल्ली में कार ड्राइवर की नौकरी करने आए थे. उनके पिता बिहार के सहरसा जिले में बस ड्राइवर थे और नहीं चाहते थे कि बेटा ड्राइवर बने. लेकिन बेटे ने उनसे जिद करके ड्राइविंग सीख ली थी. इससे पहले दिलखुश ने पटना में चपरासी की नौकरी के लिए इंटरव्यू दिया था. लेकिन रिजेक्ट हो गए थे. फिर वह नौकरी की तलाश में दिल्ली पहुंचे.

दिल्ली के कार मालिकों ने उन्हें ड्राइवर की नौकरी देने से यह कहते हुए मना कर दिया कि उन्हें यहां की सड़कों और ट्रैफिक नियमों की जानकारी नहीं है. ऐसे में उन्हें कार देना मुनाफे का सौदा नहीं रहेगा. तब स्मार्टफोन और गूगल मैप सर्विस आज की तरह लोकप्रिय नहीं थी.जब दिलखुश को कैब ड्राइवर की नौकरी नहीं मिली तो उसने अपने परिचितों से एक साइकिल मांगी ताकि वह दिल्ली की सड़कों को देख-समझ सके. लेकिन जो भी लोग थे, वे खुद साइकिल से अपने दफ्तर जाया करते थे, इसलिए किसी ने साइकिल नहीं दी.18 साल के दिलखुश ने तब तय किया कि कुछ दिन वह पैडल वाली रिक्शा ही चलाएंगे. उन्हें पता चला था कि 25 रुपये में दिन भर के लिए रिक्शा मिल जाती है. फिर शरीर से दुबला-पतला लड़का दिल्ली की सड़कों पर रिक्शा चलाने लगा.

कुछ दिन रिक्शा चलाने के बाद तबीयत बिगड़ गई. तब परिवार वालों ने उन्हें वापस घर लौट जाने का सुझाव दिया. लेकिन बिहार लौटने के बाद कई साल तक दिलखुश की जिंदगी आसान नहीं हुई.लेकिन अब 29 साल के हो चुके दिलखुश, बिहार में दो कैब कंपनियां स्थापित कर चुके हैं.दिलखुश ने कहा कि उनके पिता बस ड्राइवर के रूप में महज 3200 रुपये की सैलरी पाते थे. इसकी वजह से उनकी अच्छी पढ़ाई-लिखाई नहीं हो पाई. दिलखुश, 12वीं में सेकंड डिवीजन और 10वीं में थर्ड डिविजन से पास हुए थे. इसी दौरान करीब 18 साल की उम्र में ही दिलखुश की शादी भी करा दी गई. दिलखुश बताते हैं कि गांव-समाज में लोग यह कहा करते थे कि लड़का काम नहीं कर रहा है तो शादी करा दो, खुद ब खुद काम करने लगेगा.

समाज में इज्जत पाने के लिए जेब में पैसे होने चाहिए. दिलखुश के हाई स्कूल जाने के लिए मां ने एक बार 3 लोगों से 550 रुपये कर्ज लेकर सेकंड हैंड साइकिल खरीदी थी.दिलखुश ने फिर पटना में मारुति 800 चलाने की नौकरी की. दिलखुश अपनी सफलता के पीछे की वजह बताते हुए कहते हैं कि उन्होंने लगातार आगे बढ़ने की कोशिश की. वे कहते हैं कि उन्होंने रिस्क से इश्क किया. अगर उन्हें 5-6 हजार की नौकरी मिली तो 4-6 महीने में उनकी कोशिश होती थी कि कोई और काम करें ताकि पैसे बढ़ सके.

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