परिवार समेत मिटा दिया मतदाता सूची से नाम
आरा, 24 अगस्त। लोकतंत्र की नींव वोटर पर टिकी होती है। लोकतंत्र का मतलब ही है “जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा संचालित सरकार”। यानी असली ताकत जनता के पास है। जनता अपने वोट से तय करती है कि कौन उसकी सरकार चलाएगा। लेकिन जब इस वोट देने के अधिकार को ही जनता से छिन्न लिया जाय तो जनता लोकतंत्र के लिए कुछ भी रह जाती।
जनता के ऐसे ही अधिकार छीनने का काम भोजपुर मुख्यालय आरा का है जहां वोटर लिस्ट से खुद के मृत होने की सूचना पाकर शिक्षिका फफक पड़ी ।

यही नहीं उनके बेटो के भी नाम स्थानांतरित कर नाम काट दिया गया है। खबर आरा के वार्ड नंबर 12 से है जो लोकतंत्र को शर्मसार करने वाली और लापरवाही की है। जीवनभर वोट डालकर लोकतंत्र को मजबूत करने वाली , चुनाव आयोग की प्रक्रिया में “मृत” घोषित कर दी गईं।
आरा की 74 वर्षीय शिक्षिका मेरी टोप्पो, जो मोंटेसरी स्कूल में शिक्षिका रह चुकी हैं, का कहना है कि वे आज भी जीवित हैं और हर चुनाव में वोट डालती रही हैं।

वे अपना दुख जताते हुए फफक पड़ी और कहा कि “मैं सामने बैठी हूं, मुझे मृत घोषित कर देना सरकार की गलती है। यह मेरे अधिकार पर सीधा हमला है।” सरकार कागज पर एक जिंदा इंसान को मार रही है। हैरानी की बात यह है कि सिर्फ उन्हें ही नहीं, बल्कि उनके तीन बेटों के नाम भी मतदाता सूची से हटा दिए गए हैं।
50 वर्षों से आरा में रह रही हैं कागज में मृत शिक्षिका
मेरी टोप्पो की शादी झारखंड निवासी सिल्वेस्टर टोप्पो से हुई थी और वे पिछले 50 वर्षों से आरा में रह रही हैं। बावजूद इसके, मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण अभियान (SIR) के दौरान उनका और उनके बेटों का नाम हटा दिया गया।
सबसे बड़े बेटे चंदन टोप्पो (40) दिल्ली में नौकरी करते हैं, दूसरा बेटा आलबर्ट टोप्पो किसी काम से वाराणसी गया है, जबकि सबसे छोटा बेटा क्लारेंस टोप्पो (38) आरा में रहते हैं। क्लारेंस का कहना है – “हमसे किसी BLO ने मुलाकात कर सत्यापन नहीं किया। अचानक मां को मृत और हम तीनों भाइयों को मतदाता सूची से बाहर कर दिया गया। यह चुनाव आयोग की गंभीर चूक है।”
क्लारेंस के मित्र अभिषेक द्विवेदी ने बताया कि मामला यादव विद्यापीठ प्लस टू हाई स्कूल के बूथ संख्या 223 से जुड़ा है।

उन्होंने कहा कि सुबह सूची देखने पर मेरे मित्र के परिवार का नाम कटा हुआ पाया। जब इस बाबत BLO से पूछा गया तो उन्होंने “ट्रेस न होने” की बात कही। अभिषेक का आरोप है कि “यह सीधे तौर पर गरीब और अनुसूचित जाति-जनजाति से जुड़े लोगों के साथ अन्याय है।”
यह मामला चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है कि आखिर बिना जांच-पड़ताल किए किसी जीवित मतदाता को मृत घोषित कर पूरे परिवार को मताधिकार से कैसे वंचित किया जा सकता है।
BLO ने कहा बहुत खोजा नहीं मिले
जब इस बात की खबर BLO विनोद कुमार यादव से ली गई तो उन्होंने कहा कि मैने बहुत खोजा यहां तक कि पूर्व के वार्ड पार्षद और वर्तमान के वार्ड पार्षदों से भी संपर्क किया पर किसी ने कुछ नहीं बताया।
चुनाव के वक्त पर्ची पहुंच जाता है लेकिन हम नहीं मिले?
क्लारेंस ने कहा कि हंसी आती है यह सुनकर कि किसी ने पहचान नहीं बताया। जबकि इलेक्शन के समय पूरे परिवार का लिस्ट और क्रमांक वोट देने के लिए इन्हीं पार्षदों द्वारा घर पर भेज दिया जाता था।

अगर वे मुझे या मेरी फैमिली को जानते नहीं तो फिर ये पर्ची कैसे आ जाते थे अबतक?
सवाल बहुत है लेकिन इस एक खामी ने यह तो साबित कर दिया कि वोटर पुनरीक्षण के काम में कहीं न कहीं जवाबदेह व्यक्ति द्वारा चूक हुई है। यह चूक क्यों और कैसे हुई है यह तो जांच का विषय है लेकिन एक सवाल तो जरूर खड़ा करता है कि क्या अब वार्ड पार्षद जैसे व्यक्तियों की भी पहुंच अपने वार्ड के लोगों तक भी नहीं रह गई है जो BLO को सही सूचना मुहैया नहीं करा पा रहे हैं? ऐसे में जन के प्रतिनिधि लोक के किस काम के? अब देखना यह है कि अल्पंसख्यक (ईसाई) होने के बाद भी इनका नाम फिर से जुड़ता है या नहीं.

BLO विनोद कुमार यादव
