किसी रिश्ते का न होना भी एक रिश्ता है : त्रिपुरारि

त्रिपुरारि कुमार शर्मा ,देबोजीत साहा और ध्रुबज्योती पॉल [बाएं से ]
बिहार के समस्तीपुर ज़िले में जन्मे त्रिपुरारि कुमार शर्मा युवा शायर, गीतकार और स्क्रिप्ट रायटर हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी से लिटरेचर की पढ़ाई की. युवा शायर के रूप में लोकप्रिय हैं. इन दिनों मुम्बई में रहते हुए टीवी/फ़िल्म इंडस्ट्री में काम कर रहे हैं. साहित्य अकादमी, दिल्ली से किताब भी आने वाली है. पेश है त्रिपुरारि कुमार शर्मा से रवीन्द्र भारती की बातचीत का एक हिस्सा:

सवाल: ज़ी टीवी के सीरियल संयुक्त का टायटल सॉन्ग लिखने का मौक़ा कैसे मिला?




त्रिपुरारि: एक दिन मैं अपने दोस्त ध्रुवज्योति पॉल के साथ स्टूडियो जा रहा था, जहाँ ‘मैं हूँ बेफ़िकर’ गाने की मिक्सिंग हो रही थी. अचानक ध्रुव को सारेगामा प्रोडक्शन हाउस से एक मीटींग के लिए कॉल आई. वहाँ जाने पर पता चला कि उसे सन्युक्त के लिए टायटल सॉन्ग और थीम्स बनाने हैं. क्योंकि ध्रुव के साथ मैं भी वहाँ मौजूद था, सो सीरियल के प्रोड्यूसर/डायरेक्टर अमरप्रीत छावड़ा जी और क्रिएटिव हेड रेणु राणा जी ने मुझे भी गाने का ब्रीफ़ दिया. …कि गाना किस तरह का होना चाहिए, क्या फील होना चाहिए, क्या मूड होगा, सिचुएशंस क्या क्या हैं, वग़ैरह. मुझे ख़ुशी इस बात की है कि मैंने जो लिखा और ‘ध्रुवज्योति-देबोजीत’ ने जो कम्पोज़ किया उसे एक बार में ही सलेक्ट कर लिया गया. सीरियल के लीड किरन कुमार जी भी बहुत तारीफ़ कर रहे थे गाने की. काम की तारीफ़ हो, तो अच्छा लगता है. (स्माइल)

सवाल: मैं पूछने ही वाला था, आपने ज़िक्र कर दिया ‘मैं हूँ बेफ़िकर’ का. उसके बारे में कुछ बताएँ?

त्रिपुरारि: मैं हूँ बेफ़िकर… ये एक सिंगल सॉन्ग है, जिसे टी सीरीज़ ने रीलीज़ किया है. इस गाने को भी कम्पोज़ किया है ‘ध्रुवज्योति-देबोजीत’ की जोड़ी ने. इसे बनाते हुए बहुत लुत्फ़ मिला. और जब ये गाना रीलीज़ के लिए टी-सीरीज़ में गया. उन्होंने गाना सुनते ही पसंद कर लिया. उन्होंने बड़ी तारीफ़ की इस गाने की. असली मज़ा तो तभी आता है जब आपके काम को पहचाना जाता है. ये गीत दरअसल, ख़्वाबों का एक सफ़र है, जो हर एक लड़की का हक़ है. ये गीत लिखते हुए मुझे एक लड़की की तरह सोचना पड़ा. सच कहूँ तो, लड़की हो जाना पड़ा. बाक़ी आपने गाना तो सुना ही होगा. लोग इसे पसंद कर रहे हैं…और क्या चाहिए?

सवाल: ध्रुवज्योति-देबोजीत के साथ काम करने का कैसा अनुभव रहा?

त्रिपुरारि: ध्रुवज्योति पॉल और देबोजीत साहा दोनों पार्टनर हैं. दोनों बहुत टैलेंटेड, बहुत क्रिएटिव और बेहतर इंसान हैं. ध्रुवज्योति कई सालों तक ‘इंडियन आइडल’ के म्युज़िक सुपरवाइज़र/कास्टिंग प्रोड्युसर रह चुके हैं. सावधान इंडिया सहित कई सीरियल्स/एल्बम्स के लिए इन्होंने कम्पोज़ किया है. और देबोजीत साहा Zee Tv के सिंगिंग कॉम्पिटिशन शो सारेगामा चलेंज 2005 के विनर रह चुके हैं. फ़िल्मों के लिए भी प्लेबैक किया है. म्युज़िक को लेकर इन दोनों की समझ बहुत ग़ज़ब की है. इनके काम में वेरायटी है, वेरिएशंस हैं और इनके पास अनुभव है, जज़्बा है. मेरा इनके साथ एक लम्बा एसोसिएशन रहा है. कई काम हमने साथ में किए हैं. उम्मीद करता हूँ कि बाक़ी गाने जल्द ही रीलीज़ होंगे.

सवाल: आपकी नज़्म ‘हमसफ़र’ पर एक पोएट्री फ़िल्म बनी. इसकी प्लानिंग कैसे हुई?

त्रिपुरारि: क़रीब एक साल पहले की बात है. फ़िल्म के डायरेक्टर ऋषि पाठक, मैं और कुछ दोस्त एक शाम दिल्ली के मंडी हाउस में बैठे थे. ‘प्ले एंड पोएट्री’ पर चर्चा हो रही थी. उसी शाम मैंने ये नज़्म ‘हमसफ़र’ सुनाई थी. वो नज़्म उनके ज़ेहन में कहीं अटक गई. फिर हमलोग अपनी-अपनी ज़िंदगी और काम में मसरूफ़ हो गए. पिछले महीने, एक दिन अचानक ऋषि का फोन आया. बोले- ‘वो नज़्म जो मंडी हाउस में सुनाई थी, उस पर मैं फ़िल्म बनाना चाहता हूँ.’ ज़ाहिर है… हम मिले और बाक़ी बातें डिस्कस हुईं. और रिज़ल्ट आपके सामने है.

सवाल: इससे पहले आपने क्राफ्ट्सविला के लिए भी पोएट्री एड फ़िल्म लिखी थी.

त्रिपुरारि: हाँ, वो एक अच्छा काम था. बहुत मज़ा आया. हुआ यूँ कि एक मुलाक़ात के दौरान उस प्रोजेक्ट के प्रोड्युसर कश्यप स्वरूप ने एक दिन ज़िक्र किया कि पोएट्री लिखनी है और पैसे भी मिलेंगे. मुझे बड़ा अच्छा लगा. क्योंकि पोएट्री लिखने के लिए मुझे अब तक किसी ने पैसे ऑफ़र नहीं किए थे. मैंने एक नज़्म कही और कश्यप को भेजा. सन्योग से उनको अच्छा लगा. फिर उन्होंने क्राफ्ट्सविला को अप्रुवल के लिए भेजा. वहाँ भी पसंद किया गया. फिर बन गई फ़िल्म. अच्छी बात ये रही कि फ़र्स्ट डाफ़्ट ही फ़ायनल ड्राफ़्ट था. पोएट्री को लेकर कश्यप की समझ बहुत अच्छी है. यही वजह है कि हम अच्छे दोस्त भी हैं.

सवाल: आपने टीवी के लिए और भी काम किए जैसे अन्नू कपूर का शो.

त्रिपुरारि: हाँ, पिछले साल की बात है ये. सोनी मिक्स चैनल पर एक नॉन-फ़िक्शन शो आया था- ‘कुछ बातें कुछ यादें विद अन्नू कपूर.’ उसकी स्क्रिप्टिंग की थी मैंने. अनु जी बहुत अच्छे इंसान हैं. शूटिंग के दौरान बहुत मज़ा आया. कमाल के ऐक्टर हैं, आप सब जानते हैं. एक और नॉन-फ़िक्शन शो लिखा है मैंने ज़ी टीवी के लिए. वो भी जल्द ही आएगा.

 

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त्रिपुरारि कुमार शर्मा और अभिनेता अन्नू कपूर

सवाल: आपके लेखन में गंभीरता झलकती है.

त्रिपुरारि: देखिए, होता ये है कि आपके लेखन को अगर गम्भीर लोग पसंद करते हैं तो उसे गम्भीर मान लिया जाता है. दरअसल, जब भी कोई रायटर लिखता है, तो वो अपने अनुभव के आधार पर ही लिखता है. अब किसी रायटर का अनुभव सतही होगा, तो वो सतही बातें लिखेगा. अगर उसका अनुभव गहरा होगा, तो वो गहरी बातें लिखेगा. जिसे शायद आप गम्भीर कह रहे हैं. जब आपका अनुभव गहरा होगा तो कुछ भी लिखेंगे, चाहे गीत हो या कविता, अनुभव का असर दिखना लाज़िमी है.

सवाल: सुना है, आपकी किताब भी आने वाली है?

त्रिपुरारि: जी सही सुना है. हिंदी कविताओं का एक संग्रह है- नींद की नदी. इसे साहित्य अकादमी, दिल्ली प्रकाशित कर रही है. दूसरी किताब (ग़ज़ल संग्रह) पर भी काम चल रहा है. जो कि हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में होगी. क्योंकि अब मैं उर्दू में भी लिखने लगा हूँ.

सवाल: क्या उर्दू के इस्तेमाल से गानों का शिल्प बदल जाता है?  

त्रिपुरारि: ये बड़ा अच्छा सवाल पूछ लिया आपने. दरअसल, क्या है कि उर्दू एक ऐसी भाषा है जिसके फ़ोनेटिक्स पर बहुत काम किया गया. यानी इस भाषा में कोई भी लफ़्ज़ ऐसा नहीं है जो कान को चुभता है. यही एक वजह है कि जब हम उर्दू पोएट्री सुनते हैं या उर्दू शायरों के लिखे फ़िल्मी गीत सुनते हैं तो हमें अलग सा एहसास होता है. ऐसा लगता है कि कोई कानों में चाशनी घोल रहा हो.

सवाल: कोई गीत या शायरी लिखते हुए आपकी इंस्पिरेशन क्या होती है?

त्रिपुरारि: दोनों दो बातें हैं. ग़ज़ल या नज़्म कहते हुए ज़ाहिर है कोई न कोई ख़याल मेरे ज़ेहन में ज़रूर होता है. और ये ख़याल उपजता है किसी सूरत से. ये सूरत किसी की भी हो सकती है. इंसान, तजरबा या दुनिया. मुझे इंसानी रिश्तों में बड़ी दिलचस्पी रहती है. मान लीजिए कि मेट्रो में सफ़र करते हुए आप किसी लड़की को बस एक नज़र देखते हैं. और उस लड़की की ज़िंदा आँखें आपको उम्र भर याद रह जाती हैं. फिर आप नज़्म/ग़ज़ल कहते हैं. अब इसे आप कौन सा रिश्ता कहेंगे? मेरे हिसाब से किसी रिश्ते का न होना भी एक रिश्ता है.

और जब मैं गीत लिखता हूँ तो मुझे उस गीत का सिचुएशन दिया जाता है. एक ट्युन दी जाती है. अब मुझे उस दी गई ट्युन और सिचुएशन पर वो लिखना होता है, जो दरअसल कैरेक्टर सोच रहा है. मुझे कैरेक्टर हो जाना पड़ता है. उस सिचुएशन को जीना पड़ता है. गीत लिखते हुए कैरेक्टर की तकलीफ़/ख़ुशी सब मेरी होती है. तब कहीं जा के एक अच्छा गीत सामने आता है.

सवाल: क्या किसी फ़िल्म प्रोजेक्ट पर भी काम चल रहा है?

त्रिपुरारि: हाँ… (मुस्कुराते हुए) काम तो चल रहा है. देखिए कब तक सामने आता है.

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