कला जागरण ने शनिवार को पटना के कालिदास रंगालय में मधुकर सिंह लिखित हास्य नाटक “बाबूजी का पासबुक” का मंचन किया. जिसकी परिकल्पना और निर्देशन सुमन कुमार ने की. यह नाटक ताम्र पत्र से सम्मानित एक स्वतन्त्रता सेनानी के परिवार के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसे उन्हीं की जुबानी कहा भी गया है. नौकरी के बाद अवकाश प्राप्त व्यक्ति किस तरह वॉलीबॉल की तरह मारा फिरता है यह नाटक बखूबी दर्शाता है.




बाबूजी के तीन बेटे और बहुएं हैं जो उनके पासबुक पर निगाह टिकाये रखते हैं और तरह-तरह के हथकंडे अपनाकर उसे पाने की नित जुगाड़ में रहते हैं. यही नहीं, बाबूजी की बेटियाँ और दामाद भी एक सूत्री काम की तरह इसी जुगाड़ में रहते है. परिवार के किसी सदस्य को उनकी हेल्थ और बीमारी की फ़िक्र नहीं रहती. समाज में व्याप्त इस हैवानियत और नीच सोंच को हास्य-व्यंग्य के जरिये नाटक अपने सफल प्रस्तुति के साथ कह जाता है और वह भी सहजता से छूकर तब और गुजरता है जब सुमन कुमार जैसे सधे निर्देशक इसकी कमान संभालते हैं.

संवेदनाओं को हास्य-व्यंग्य के जरिये दर्शकों में पिरोने का यह श्रेय निर्देशक को जाता है. कालकारो ने भी अपने अभिनय से निर्देशक को निराश नहीं किया. विभिन्न भूमिकाओं में अखिलेश्वर प्रसाद सिन्हा, सरविंद कुमार, नितीश कुमार, नितेश कुमार चार्ली,तृप्ति कुमारी, सृष्टि मंडल, मिथलेश कुमार सिन्हा,गुंजन कुमार,विभा सिन्हा और रंगोली पाण्डेय ने अपने अभिनय से नाटक के पात्रों को जीवंत कर दिया.

वही मंच के पीछे उपेंद्र कुमार और हीरालाल ने मेकअप, रोहित कुमार ने प्रस्तुति संयोजन, गुंजन कुमार और हीरा लाल राय ने संगीत प्रभाव से नाटक को जीवंत करने में भरपूर योगदान दिया.

 

ओपी पांडे

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