आखर के “भोजपुरी कला यात्रा” में बच्चों ने बनाये 400 भोजपुरी पेंटिंग्स

By om prakash pandey Jul 9, 2018

12 घण्टे में 76 प्रतिभागियों ने बनाये 400 पेंटिंग
घरों से गायब हो रही है लोक संस्कृति, बच्चों ने कहा पेंटिंग के जरिये जाना हर संकेत का महत्व

भोजपुरी पेंटिंग की कार्यशाला से स्पेशल रिपोर्ट:-




कोइलवर, 9 जुलाई. भोजपुरी पेंटिंग की धरोहर को संरक्षित करने और प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से “आखर” द्वारा आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला सह प्रदर्शनी “भोजपुरी कला यात्रा” का समापन रविवार को कोइलवर के प्रखण्ड कृषि भवन में सम्पन्न हुआ. कार्यक्रम की अध्यक्षता भोजपुरी भाषाविद बिमलेन्दु पांडेय ने की तथा मुख्य अतिथि पी राज सिंह,प्राध्यापक,जयप्रकाश विश्वविद्यालय थे. बिमलेन्दु पांडेय ने अपने सम्बोधन में कहा कि कोइलवर से शुरू हुई इस यात्रा ने भोजपुरी आंदोलन को नई दिशा प्रदान की है.

वही पी राज सिंह ने भोजपुरी कला की धरोहर को सहेज कर रखे जाने की आवश्यकता बताई. उन्होंने बच्चों की कलाकृतियों को देखने के बाद अपने संबोधन में कहा कि कोहबर संस्कृत के कोष्ठ से बना है. आदि काल मे गुफाओं की आकृतियो से इसकी शुरुआत हुई थी, जिसे लोगों ने फिर घरों में व्यवहार में लाया. उन्होंने कहा कि आखर अब भाषा के साथ कला और संस्कृति के पड़ाव के सहारे आगे बढ़ रहा है जो बहुत ही सुंदर पहल है. उन्होंने बच्चों को भोजपुरी भाषा मे अश्लीलता के खिलाफ भी आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया और बच्चों को नारा दिया- “भोजपुरी के मान बढ़ाई, ना फूहड़ सुनी आ ना सुनाईं.”


वरीय साधनसेवी राजाराम प्रियदर्शी ने भोजपुरी कला में भोजपुरी समाज के चित्रण को रेखांकित किया. आरपीपीएस स्कूल के निदेशक रविकांत राय ने ऐसे कार्यक्रमों को भविष्य में और स्थानों पर आयोजित किये जाने पर बल दिया.

बक्सर की निवासी और अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त युवा महिला चित्रकार किरण कुमारी ने उपस्थित विद्यार्थियों और अभिभावकों को पेंटिंग को कैरियर के रूप में प्रोत्साहन देने की बात की. कार्यशाला के मुख्य प्रशिक्षक संजीव सिन्हा ने बताया कि भविष्य में भोजपुरी कला यात्रा अन्य जिलों के दूर दराज के इलाकों में आयोजित की जाएगी, वहीं इस कार्यशाला की उत्तम कृतियों को भोजपुरी स्वाभिमान सम्मेलन पंजवार में प्रदर्शित किया जाएगा.

इस कार्यक्रम में उपस्थित विशिष्ट अतिथियों को स्मृति चिन्ह एवं गमछा देकर आखर परिवार द्वारा सम्मानित किया गया. इस अवसर पर सभी प्रतिभागी छात्रों को प्रमाणपत्र प्रदान किया गया. आखर सदस्य मनोज दुबे,कृष्णा जी,चन्द्रभूषण पांडे, दीपक गुप्ता, अरविंद, अभिषेक,शेखर,सुनील,आलोक,रवि प्रकाश सूरज,रवि,ओ पी पांडे ने इस मौके पर आयोजित विचार गोष्ठी, में भोजपुरी गीतों में फैलती अश्लीलता का विरोध करने की नीतियों पर चर्चा की. मौके पर अभिभावक, स्थानीय विद्यालयों के संचालक और बड़ी संख्या में ग्रामीणों के अलावा मीडियाकर्मी भी उपस्थित थे. मंच संचालन आखर सदस्य रवि प्रकाश सूरज ने जबकि धन्यवाद ज्ञापन नरेंद्र स्वामी ने किया. वही कार्यक्रम के दौरान थानाध्यक्ष पंकज सैनी को आखर स्वाभिमान कैलेंडर भेंट किया गया.

इधर कार्यशाला में उपस्थित 76 प्रतिभागियों की कृतियों के प्रदर्शन औऱ आयोजन स्थल पर भोजपुरी भाषा के समर्थन और अश्लीलता के विरोध में लगाये गए नारों औऱ पोस्टरों को स्थानीय जनता ने खूब सराहा.

लोककलाओं को नही बतला रही है पीढ़ियां

6-8 जुलाई तक चले 3 दिवसीय इस पेंटिंग कार्यशाला में रोजाना 11-3 बजे तक 4 घण्टे बच्चे भोजपुरी पेंटिंग की बारीकियों और उसकी शैलियों को सीखते थे. इस तरह कुल 12 घंटे में जो पेंटिंग की सीख बच्चों ने ली उसमें 400 पेंटिंग प्राप्त हुए. महज तीन दिनों में बच्चों ने जो पेंटिंग के तत्वों को जाना उसे बड़े ही खूबसूरती से अपनी कल्पनाओं को कनवास पर एक आकार दिया.

बच्चों से बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला से पूर्व उन्हें किसी प्रकार से कोहबर या पीडिया के बारे में नही जाना था. लेकिन जितनी आसानी और सहजता के साथ प्रशिक्षक ने इसे बनाना सिखाया इसके तत्वों को जानने की इच्छा सताने लगी. कई बच्चों और बच्चियों ने कोहबर और पीडिया पेंटिंग में रंग भरने के तरीकों को बताया तो उसमें बनने वाले हाथी, घोड़ा, ऊँट, कछुआ, मछली इत्यादि के बारे में बताया कि इनका क्या महत्व है. लोक कला, लोक पेंटिंग या लोक संस्कृति में हर पहलुओं का महत्व, और कारण है, जिसे बच्चे इस कार्यशाला के माध्यम से सीखकर उसे एक दूसरे को समझाएंगे.

पटना नाउ ने बच्चों से बातचीत के दौरान ये पाया कि घर मे कई मौके,पर्व-त्योहारों और लोक-संस्कारो में उपयोग होने वाले प्रतीकों और तरीको को घर के वरिष्ठ सदस्य बच्चों को बता ही नही रहे है. जिसके कारण उनके घरों में होने वाले आयोजन बच्चे देखते तो हैं पर वह क्यो, कैसे और कब किया जाता है, वे नही जान पाते हैं. संस्कारो और संस्कृति को सहेजने का काम कला ही करती है. भोजपुरी पेंटिंग्स के साथ भोजपुरी भाषा का महत्व, मातृभाषा और इसके बिगड़ते स्वरूपों को भी प्रतिभागियों ने जाना. छोटे उम्र के बावजूद जिस बेवाकी से वे भोजपुरी पेंटिंग और भोजपुरी भाषा के बारे में बता रहे थे उससे यही लगा कि आने वाले दिनों में इस कला यात्रा से उतपन्न बीज भोजपुरी को समृद्ध करने के लिए एक वरदान साबित होगा.

कोईलवर से ही क्यों हुआ कला यात्रा का आगाज?


आखर परिवार के सदस्य और रंगकर्मी व टीवी अभिनेता आलोक कुमार सिंह से जब पटना नाउ ने भोजपुरी कला यात्रा की शुरुआत कोईलवर से ही क्यों पूछा तो उन्होंने बताया कि कोईलवर दो संस्कृतियों का मिलन बिंदु है. सोन और गंगा के मिलन के कारण यहाँ सोन के उस पार जहाँ मगही भाषा की शुरुआत होती है तो इस पार भोजपुरी भाषा की. यही कारण है कि इसे भोजपुरी का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है. भोजपुरी के इस प्रवेश द्वार से इस कला यात्रा के द्वारा भोजपुरी का संवर्द्धन प्रारंभ किया गया है जो यहाँ से बढ़ते हुए छपरा,रोहतास, बक्सर, कैमूर बालियां आदि जगहों पर जाएगा.

वही आखर सदस्य सुनील पांडेय ने कहा कि इस कला यात्रा का उद्देश्य भोजपुरी को विस्तार देना है. जिस तरह मिथिला में स्टेशन पर मिथिला भाषा मे अनाउंसमेंट होता है वैसे ही भोजपुरी क्षेत्र में भी होना चाहिए. यह तभी होगा जब इसका विस्तार होगा.

क्या कहा प्रशिक्षक संजीव सिन्हा ने?


राष्ट्रीय स्तर तक भोजपुरी पेंटिंग और अपनी विशिष्ट शैली के जरिये पहचान बनाने वाले चित्रकार संजीव सिन्हा इस कार्यशाला से काफी प्रसन्न हैं. उन्होंने पटना नाउ से बातचीत करते हुए बताया कि बच्चे काफी संवेदनशील और ग्राह्य थे. वे तेजी गति से चीजो को सीखते थे और इनमें सीखने की जिज्ञासा का मुख्य कारण भोजपुरी था. उनकी वो भाषा जो घरो में बोली जाती थी उसके पेंटिंग और शैली के बारे में जानना उनके कौतूहल का विषय था. बच्चों ने काफी मेहनत किया. आयोजन समिति के सदस्यों और पूरी टीम के मेहनत का फल जो मिला है उससे सभी काफी उत्साहित हैं और अगले पड़ाव तक इसे और आगे ले जाने का प्रयास होगा.

कोईलवर से कला यात्रा की ग्राउंड रिपोर्ट
रिपोर्ट: अमोद कुमार व ओ पी पांडेय

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